श्रीगंगानगर- केवल कृष्ण का रूप धरने मात्र से कोई कृष्ण बन सकता है? सवाल ही पैदा नहीं हो सकता। कृष्ण बन जाना। कृष्ण हो जाना,बहुत बड़ी और दुर्लभ बात है।ऐसा युगों युगों में कभी होता है। ठीक है, सच्ची का कृष्ण बनना असंभव है,लेकिन यह कोशिश तो हो ही सकती है कि कृष्ण बनने और बनाने वाले कृष्ण को समझें। अपने आचरण में कम से कम एक दो प्रतिशत तो कृष्ण को उतारें। और नहीं तो केवल प्रेम को ही ले आएं,यही बहुत है। क्योंकि जहां प्रेम हैं वहां कोई झंझट,संकट होता ही नहीं। इसमें किसी की जेब से कुछ नहीं लगता । अभिभावक अपने बच्चों को कृष्ण के परिधान पहनाने तक की सीमित ना रहें। वे बच्चे में कृष्ण से संबन्धित जानकारी दें। उसकी कथा,कहानियां बच्चों को बताएं। क्योंकि कृष्ण की तो हर उम्र में कोई ना कोई कथा है। उसकी हर लीला प्रेरणा है। कृष्ण ने हर कदम धर्म की स्थापना के लिए बढ़ाया। कौनसे कष्ट थे जो उसने नहीं सहे। बचपन से ही विपत्तियों का सामना करना कृष्ण ने शुरू कर दिया था। कृष्ण कर्म की प्रेरणा देते हैं। प्रेम का संदेश देते हैं। अपनों को भरोसा देते हैं।अन्याय बर्दाश्त नहीं करते। जुल्म का सामना करने से नहीं डरते।परिस्थिति कैसी भी हो अपने लक्ष्य को नहीं भूलते। सखा सुदामा जैसा निर्धन हो या अर्जुन जैसा राजकुमार,कृष्ण भेद नहीं करते। जो सुदामा को चाहिए था वह सुदामा दिया और जो अर्जुन को चाहिए था वह उसे। वे कूटनीति के ज्ञाता है। धर्म के अधिष्ठाता हैं। भाव को महत्व देते हैं। ऐसे कृष्ण का थोड़ा सा भी आचरण किसी बच्चे में आ गया तो समझो,हो गया समाज निहाल। इसमें कोई शक नहीं कि आज के युग में कृष्ण बन बन जाना असंभव है। लेकिन इसके बावजूद अभिभावकों और स्कूलों को केवल इतनी कोशिश तो करनी ही चाहिए कि कृष्ण बनने वाला बच्चा बिगड़े तो ना। मात्र प्रतियोगिता जीतने के लिए ही कृष्ण बनना या बनाना कोई महत्व नहीं रखता। नगर में कृष्ण के प्रति श्रद्धा,विश्वास, लगाव बढ़ा है या जन्माष्टमी पर बाजारवाद का असर है,मालूम नहीं,लेकिन ये सच है कि लोगों में अपने बच्चों में कृष्ण बनाने की होड़ लगी रहती है। शिशु से लेकर किशोर अवस्था तक तक के बच्चे हर आयोजन में कृष्ण बने नजर आते हैं। जन्माष्टमी के निकट सामाजिक,धार्मिक संगठन ही नहीं स्कूलों में भी कृष्ण बनाओ प्रतोयोगिताओं का आयोजन होने लगा है। परंतु इनकी सार्थकता तभी होगी जब अभिभावक और स्कूल बच्चों में अभी से कृष्ण का आचरण लाने के प्रयास करें।
Monday, August 18, 2014
कृष्ण की ड्रेस पहनने से कोई कृष्ण नहीं बनता
श्रीगंगानगर- केवल कृष्ण का रूप धरने मात्र से कोई कृष्ण बन सकता है? सवाल ही पैदा नहीं हो सकता। कृष्ण बन जाना। कृष्ण हो जाना,बहुत बड़ी और दुर्लभ बात है।ऐसा युगों युगों में कभी होता है। ठीक है, सच्ची का कृष्ण बनना असंभव है,लेकिन यह कोशिश तो हो ही सकती है कि कृष्ण बनने और बनाने वाले कृष्ण को समझें। अपने आचरण में कम से कम एक दो प्रतिशत तो कृष्ण को उतारें। और नहीं तो केवल प्रेम को ही ले आएं,यही बहुत है। क्योंकि जहां प्रेम हैं वहां कोई झंझट,संकट होता ही नहीं। इसमें किसी की जेब से कुछ नहीं लगता । अभिभावक अपने बच्चों को कृष्ण के परिधान पहनाने तक की सीमित ना रहें। वे बच्चे में कृष्ण से संबन्धित जानकारी दें। उसकी कथा,कहानियां बच्चों को बताएं। क्योंकि कृष्ण की तो हर उम्र में कोई ना कोई कथा है। उसकी हर लीला प्रेरणा है। कृष्ण ने हर कदम धर्म की स्थापना के लिए बढ़ाया। कौनसे कष्ट थे जो उसने नहीं सहे। बचपन से ही विपत्तियों का सामना करना कृष्ण ने शुरू कर दिया था। कृष्ण कर्म की प्रेरणा देते हैं। प्रेम का संदेश देते हैं। अपनों को भरोसा देते हैं।अन्याय बर्दाश्त नहीं करते। जुल्म का सामना करने से नहीं डरते।परिस्थिति कैसी भी हो अपने लक्ष्य को नहीं भूलते। सखा सुदामा जैसा निर्धन हो या अर्जुन जैसा राजकुमार,कृष्ण भेद नहीं करते। जो सुदामा को चाहिए था वह सुदामा दिया और जो अर्जुन को चाहिए था वह उसे। वे कूटनीति के ज्ञाता है। धर्म के अधिष्ठाता हैं। भाव को महत्व देते हैं। ऐसे कृष्ण का थोड़ा सा भी आचरण किसी बच्चे में आ गया तो समझो,हो गया समाज निहाल। इसमें कोई शक नहीं कि आज के युग में कृष्ण बन बन जाना असंभव है। लेकिन इसके बावजूद अभिभावकों और स्कूलों को केवल इतनी कोशिश तो करनी ही चाहिए कि कृष्ण बनने वाला बच्चा बिगड़े तो ना। मात्र प्रतियोगिता जीतने के लिए ही कृष्ण बनना या बनाना कोई महत्व नहीं रखता। नगर में कृष्ण के प्रति श्रद्धा,विश्वास, लगाव बढ़ा है या जन्माष्टमी पर बाजारवाद का असर है,मालूम नहीं,लेकिन ये सच है कि लोगों में अपने बच्चों में कृष्ण बनाने की होड़ लगी रहती है। शिशु से लेकर किशोर अवस्था तक तक के बच्चे हर आयोजन में कृष्ण बने नजर आते हैं। जन्माष्टमी के निकट सामाजिक,धार्मिक संगठन ही नहीं स्कूलों में भी कृष्ण बनाओ प्रतोयोगिताओं का आयोजन होने लगा है। परंतु इनकी सार्थकता तभी होगी जब अभिभावक और स्कूल बच्चों में अभी से कृष्ण का आचरण लाने के प्रयास करें।
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