हैरानी की बात नहीं यह बाऊ जी का स्टाइल है
श्रीगंगानगर-पहले अपने खास बंदे को अपने ही सामने अपने घर
से रुसवा
हो जाने दिया फिर पुचकार
कर गले भी लगा लिया। गले भी इस अंदाज में
लगाया जो सभी को दिखे। आइडिया लगाओ...सोचो...चिंतन करो..ऐसा कौन कर सकता है।
यह स्टाइल है इस क्षेत्र के जाने माने राजनीतिज्ञ राधेश्याम गंगानगर उर्फ बाऊ जी
का। बाऊ जी रूठे हुए को मनाने में उस्ताद हैं। यही तो है असली राजनीतिक होने की
पहचान। ना भी मनाते तो बाऊ जी के क्या फर्क पड़ना था। जहां इतने रूठे हैं एक और
सही। लेकिन नहीं....बात दूर तक जाने
की स्थिति हो तब राजनीति यही कहती है कि कोई अपना दूर हो रहा है तो उसको आँखों
से ओझल होने से पहले ही वापिस बुला लो। ऐसा की तो
किया बाऊ जी ने। उनके घर से उनके ही पुराने खास बंदे को एक
युवक ने,जो
उनके बेड रूम में बैठा था, हाथ
पकड़ कर घर से बाहर निकाल दिया। हालांकि बाऊ जी ने तब कहा भी था कि तू ये क्या कर
रहा है....ये बाप बेटे की बात है।
लेकिन युवक ने जो करना था वो कर दिया। बाऊ जी का खास बंदा रूठ गया। यह बात
थोड़ा आगे चली तो बाऊ जी सक्रिय हो गए अपने अंदाज में। बंदे को
फोन किया....बंदे ने कहा जाना था, जब
खुद बाऊ जी फोन कर रहें हैं। बंदा कार लेकर बाऊ जी के पास। बाऊ जी ने हाथ फेरा....गिले शिकवे
दूर किए। तो जनाब! बाऊ जी ने उसको मनाया। उस
युवक को बुरा भला कहा जिसने बंदे को हाथ पकड़ कर घर से निकाला था और फिर सब ठीक। फिर
तो बंदा बाऊ जो को अपनी कार में लेकर इधर उधर गया। इस रिपोर्टर
के पास भी आए....जैसे दिखाना चाहते थे कि हो गया सब ठीक। इसे
कहते हैं राजनीति। ये है आज की दौर की राजनीति...चुनाव निकट
हो तो रानीतिक आदमी में ये विनम्रता और भी जरूरी
हो जाती है। अपने खास बंदों के लिए तो और भी। क्योंकि खास
समर्थक सालों में तैयार होते हैं। बहुत कम राजनीतिक
होंगे जो अपने खास व्यक्तियों को दूर जाने देते हैं। वे साम,दाम,दंड और भेद से उनको अपने साथ रखते हैं। उनकी बात
सुनते हैं। उनका गुस्सा सहते हैं। उनके काम आते हैं। तभी उनकी राजनीति सफल होती
है। उनको देख दूसरे लोग साथ आते हैं। यूं खास बंदों को हाथ से जाने दें तो फिर नए
कैसे आएंगे। ऐसी बात कितने राजनीतिक समझते हैं। राजनीति में विनम्रता,चाहे दिखावे की हो, राधेश्याम
गंगानगर
जितनी तो यहां किसी में नहीं है। वो जमाने कुछ और होंगे जब
राधेश्याम गंगानगर काले शीशे वाली कार में चला करते थे और उनको बहुत कम व्यक्ति
दिखाई दिया करते थे। अब कुछ लोग इसे अवसरवादिता कह सकते हैं कुछ राजनीतिक
परिपक्वता। कइयों को यह बाऊ जी का नाटक लगेगा। किसी को दिखावा। जो कुछ भी हो, ऐसा
कितने राजनीतिक करते हैं। यह राजनीति में लंबी पारी खेलने की कला है। कला है तो
दिखनी भी चाहिए। जंगल में मोर नाचा किसने देखा।
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