श्रीगंगानगर-सुबह
का सुहाना समय। एक घर से लड़का बाइक लेकर निकला। किताबों का पिट्ठू बैग था।
वह होगा कोई 15 साल का। मूंछ की हल्की सी लाइन बता रही थी कि लड़का जवानी
की तरफ कदम बढ़ा रहा है। भले और अच्छे घर के इस किशोर लड़के के पीछे उसके
पिता आए। आवाज लगाई....थोड़ा पीछे गए.....उसे रोका.....जादू की झप्पी देने
की कोशिश की। लड़के ने हाथ पीछे कर दिया और बाइक लेकर स्कूल चला गया। पिता
देखता रहा उसे दूर जाते हुए। पिता मायूस चेहरे के साथ घर आ गया। यह दृश्य
बता रहा था कि घर में कुछ ऐसा हुआ जिससे लड़का नाराज हो गया। पिता होता ही
ऐसा है कि पीछे आया उसे मनाने को। लेकिन आज के बच्चे!...कमाल है। पुराना
समय होता तो पिता एक देता कान के नीचे.....अब समय बदल गया है। थोड़ी उम्र
क्या ली बच्चों ने माता-पिता दुश्मन हो जाते हैं उनकी नजर में। दुश्मन भारी
शब्द है तो इसकी जगह कुछ और लिख लो बेशक ....लेकिन सच्ची बात तो यही है।
खैर, ये बात बेशक सड़क के एक दृश्य की है। परंतु घरों के अंदर ऐसा रोज होता
है। बच्चे माता पिता की किसी भी प्रकार की टोका-टाकी को अपने अधिकारों का
हनन समझ लेते हैं। वे यूं रिएक्ट करते हैं जैसे माता पिता ने उनको कुछ
निर्देश या आदेश देकर जुल्म कर लिया हो। वो भी ऐसे बच्चे जो पूरी तरह अपने
माता-पिता पर निर्भर हैं। जिनके पास घर की आर्थिक स्थिति के अनुसार हर
सुविधा है। बड़े स्टेटस वाला स्कूल। ड्राइविंग लाइसेन्स बेशक ना हो आने जाने
के लिए महंगी बाइक जरूर होगी। नए जमाने का वो मोबाइल....जिसका नाम भी मुझे
नहीं लिखना आता। चकाचक ड्रेस और बढ़िया पॉकेट खर्च। फेसबुक लिखना तो भूल ही
गया। इनमें से कुछ उसकी जरूरत है और कुछ नहीं भी। इसके बावजूद बच्चों के
पास वह होता है। क्योंकि कोई भी माता पिता ये नहीं चाहता कि बच्चे को कोई
कमी महसूस हो। यह सब तो बच्चों को देने का फर्ज माता-पिता का है। परंतु कुछ
कहने का हक उनको बिलकुल भी नहीं है। वो जमाना और था जब यह अधिकार
माता-पिता तो क्या चाचा,ताऊ और पड़ौसी तक को हुआ करता था। अब तो घर में
बच्चों के साथ रहना है तो मुंह बंद करके रहो। घर घर में बड़े अपने बच्चों के
चेहरे पढ़ते हुए दिखाई देते हैं। खुद का मूड चाहे कैसा भी हो बच्चों के मूड
की चिंता अधिक रहती है। पता नहीं आज कल के माता-पिता को संस्कार देने नहीं
आते या बच्चों को इनकी कोई जरूरत ही नहीं रही। जो बच्चे ऐसे हो रहे हैं।
वे अपनी दुनिया अलग ही बसा रहे हैं। उस दुनिया में माता-पिता का प्रवेश तो
वर्जित है ही साथ में किसी भी प्रकार की टोका टाकी भी प्रतिबंधित है।
प्रकाश की गति से भी तेज चल रहा समय और क्या क्या रंग दिखाएगा पता नहीं।
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