श्रीगंगानगर-श्रीगंगानगर
मस्त तबीयत के नागरिकों का शहर है। ऐसे नागरिक जो इधर-उधर बैठकों में,चाय की दुकानों में,अपने प्रतिष्ठानों में,मित्र मंडली में,क्लब में तो
शासन प्रशासन के बारे में सौ तरह की बात करेंगे। मगर अपने शहर के लिए समय नहीं
देंगे। अपने खुद की सुरक्षा,सुविधा के लिए दुकान छोड़ने का जी इनका नहीं
करेगा। जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया...गीत गाते हुए सब कुछ हवा में
उड़ा देंगे। अब भी ऐसा ही होगा....कोई अच्छा अधिकारी
चला गया तो कोई अफसोस नहीं और कोई बेकार अधिकारी छाती पर आ गया तब भी कोई शिकायत
नहीं। किस मिजाज का शहर है ये,समझना बड़ा मुश्किल है। इतनी बड़ी भूमिका एसआई कांता
सिंह के बारे में। ट्रैफिक इंचार्ज कांता सिंह के बारे में। उस कांता सिंह के बारे
में जो हमेशा विवादों में रहा। उस
कांता सिंह के लिए जिसका काम करने का अंदाज अलग ही
है। वह कांता सिंह जिसके बारे में ये कहा और सुना जाता है कि वह तो पुलिस में रहने
के काबिल ही नहीं। उसी कांता सिंह ने श्रीगंगानगर में अपने काम से एसपी से अधिक चर्चित
हुआ। नगर की बिगड़ी ट्रैफिक व्यवस्था को ठीक किया। लड़कियों की शिक्षण
संस्थाओं के संचालकों को एसपी के फोन नंबर याद हों ना हों मगर कांता सिंह के जरूर
पता थे। क्योंकि उनको उम्मीद थी कि संस्था
के आस पास के बिगड़े माहौल को कांता सिंह ही ठीक कर सकता है। उसने किया भी। शहर की
हर गली हर सड़क कांता सिंह को जानती
और पहचानती है। किसकी हिम्मत है जो अपने वाहन सड़क पर लगाई गई पार्किंग लाइन से
बाहर खड़ा करे। वह जानता है कि ऐसा हुआ तो क्रेन उठाकर ले जाएगी। अब कांता सिंह
श्रीगंगानगर में नजर नहीं आएगा। नहीं आएगा
तो नहीं आएगा.....किसी को कोई परवाह नहीं। क्योंकि जनता को कोई फर्क नहीं
पड़ता। अधिक से अधिक क्या होगा....कहीं बैठकर अच्छी बुरी चर्चा कर लेंगे और क्या!
किसी से कहेंगे नहीं कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। तबादले होते रहते हैं। सामान्य
बात है....बिलकुल सामान्य बात है। कांता सिंह को तो कोई नेता वापिस इस
शहर में ला नहीं सकता। अब तो देखना ये है कि दूसरा कौनसा अधिकारी कांता सिंह जैसा
काम कर उसके किए काम को भुलाने की योग्यता प्रदर्शित करता है। अरे कोई तो बोलो....अपनी जुबां खोलो....ये शहर आपका है....शहर
में रहना है....सड़क पर निर्विघ्न चलना है....लड़कियों को बेखौफ करना है तो कांता सिंह लाना ही होगा।
ये वापिस नहीं आ सकता तो ऐसा ही या इससे बढ़िया कोई दूसरा। संभव है अनेक पाठकों को यह
लिखा पसंद ना आए। लेकिन वे दिल से ये जरूर कहेंगे
कि बात तो ठीक है। क्योंकि वही
तो लिखा जो हुआ। दो लाइन पढ़ो....जहां से चला था वहीं आ
गया हूं ,ये कैसा सफर है जो खत्म नहीं होता।
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