श्रीगंगानगर-गैंग रेप के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में
आंदोलन हुए। छपास के रोगियों को काम मिल गया। जिसने कभी अपने शहर में महिला से हुई
ज्यादती के खिलाफ आवाज नहीं उठाई वह विज्ञप्ति जारी कर गैंग
रेप के दोषियों की मांग करने लगा। कैन्डल मार्च। भाषण बाजी। किसी स्कूल में तो कभी
सड़क पर,हर तरफ
एक ही बात “दिल्ली
का गैंग रेप।“ लेकिन
कांस्टेबल सुभाष चंद की मौत पर सभी चुप हैं। मालूम
नहीं ना यह कौन है? सुभाष चंद दिल्ली पुलिस का वह कांस्टेबल है जो
दिल्ली के इंडिया गेट पर हुए “दंगे” में घायल हुआ। जिसकी आज सुबह मौत हो गई। तब से अब तक
बारह घंटे हो गए किसी ने उसको सलाम तक नहीं बोला। सोशल मीडिया पर “दामिनी” के
लिए पोस्ट लिख लिख कर अपने आपको महिलाओं के पक्षधर साबित करने वाले। जुल्म के
खिलाफ आवाज उठाने का दम भरने वाले,इस मौत पर कुछ नहीं बोल रहे। गैंग रेप ने दिल्ली पुलिस को “शर्मिंदा” किया था तो
सुभाष चंद की मौत ने “आंदोलनकारियों” को भी
थोड़ा बहुत तो शर्मिंदा किया ही होगा। सुभाष चंद्र किसी का पति था। किसी “दामिनी” का
पिता था। भाई था। रिश्तों में सुभाष चंद वह सब
था जो हम और आप हैं। उसके परिवार और रिश्तेदारों के साथ भी तो अन्याय हुआ है। न्याय की बात करने
वालों को अब क्या हो गया? क्यों
नहीं न्याय की मांग कर रहे? सुभाष
चंद ने तो कोई ऐसा काम नहीं किया जिसकी सजा उसको मिली। वह तो केवल डयूटी कर रहा था
अपनी। अब क्यों दिल्ली चुप्प है? खामोशी क्यों हैं दूसरे उन शहरों में जो “दामिनी” के
लिए सड़कों पर उतर आए थे? “दामिनी:
के लिए जलायी गई कैन्डल बुझा क्यों दी गई? न्याय तो सभी को मिलना चाहिए। ये तो हो नहीं सकता की
“दामिनी” के
लिए न्याय कुछ अलग किस्म का है और सुभाष चंद के लिए दूसरे प्रकार का। हमने तो यही
पढ़ा है की न्याय बस न्याय होता है। वह ना तो उम्र देखता है ना कोई रंग रूप। वह किसी से वर्ग भेद भी नहीं
करता और उसकी नजर में गरीब,अमीर,महिला,पुरुष,सरकारी,गैर
सरकारी सब एक समान हैं। जब न्याय सबको बराबरी का हक देता है तो फिर न्याय के लिए
आवाज बुलंद करने वाले सुभाष चंद के नाम पर चुप्प क्यों हो गए। उनके मुंह से एक
शब्द भी नहीं निकल रहा। ना तो वे “दामिनी” को जानते थे और ना ही सुभाष चंद को। उन्होने तो एक घिनोने
कांड
के खिलाफ आवाज उठाई। जन जन को जागृत किया। इनके लिए सब एक समान। फिर न्याय के
लिए उठाई मशाल से अब न्याय की रोशनी की तरफ बढ़ते कदम क्यों रुकने लगे हैं? तो
क्या “दामिनी” के
लिए हुआ आंदोलन क्षणिक आवेश था। युवाओं का आक्रोश था। जो दिल्ली पुलिस की पानी की
बोछारों से ठंडा हो गया। तो क्या अब कभी किसी जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठेगी?
हैरानी है इस सोच पर। युवाओं के जज्बे पर। आंदोलन के मूड पर। “दामिनी” के
साथ घोर अन्याय हुआ है तो अन्याय सुभाष चंद के परिवार के साथ भी हुआ ही है। उसको
सलाम कहने का फर्ज तो बनता ही है। हर समय पुलिस को कोसते हैं आज तो सुभाष चंद के
परिवार का जय हिन्द सुनने का हक है। याद हमने
दिला दिया। बाकी मर्जी आपकी।
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