श्रीगंगानगर-बड़ी
अनोखी है रिश्तों की दास्तां। रिश्ते ऐसे भी, जो दर्द देते हैं और ऐसे भी जो बस सुकून,सुकून और सुकून प्रदान करते हैं। रिश्ते बनाने
और निभाने में फर्क है। रिश्तों में उपेक्षा और कई प्रकार के अहंकार की खटाई भी हम डालते हैं और अपनत्व की मिठास भी। मिठास भी ऐसी कि जो सीधे दिल की धड़कन के साथ जा कर मिल
जाती है। इस मिठास के साथ दिल जब धड़कता है तो केवल अपने लिए नहीं बल्कि उस रिश्ते
के लिए भी धक धक करता है। रिश्तों की इस मिठास की महक नाक से नहीं दिल से ली जाती
है। सब कुछ है इस समाज में। रूबरू कौन कहाँ हो, कोई नहीं जानता। ऐसे मीठे रिश्तों का जब
कोई साक्षी बनता है तो उसकी महक दूर दूर तक पहुँचती है। ये महक
बिखरी है छोटे परिवार के बड़े आलीशान निवास स्थान पर।भौतिक सुख सुविधाओं की
कोई कमी नहीं। जो देखे मन में बस जाए। पैर रखो तो लगे कि कहीं फर्श मैला न हो जाए।
इस निवास ने कइयों को दिखाई रिश्तों की नई राह। माध्यम बनी एक शादी। शादी ना
तो इस निवास स्थान पर हुई ना ही यह शादी इसमें रहने वाले किसी व्यक्ति के परिवार
या रिश्तेदार की थी। शादी इस निवास के मालिक के सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले
बेटे के दोस्त के बेटे की थी। उसने अपने कई पुराने दोस्तों को परिवार सहित वहीं
रुका दिया। जो रुके उनमें एक परिवार ने ऐसा निवास देखा तक नहीं था। स्टेट्स की
झीझक। रुकने ना रुकने का असमंजस। आधा घंटा मन में उधेड़बुन चलती रही। सभी को वहीं
डेरा जमाना पड़ा। समय आगे बढ़ा। छोटा परिवार
कुछ घंटे में संयुक्त परिवार में कब परिवर्तित
हो गया, किसी को पता ही नहीं
लगा। शादी किसी और परिवार में थी। रिश्तों की सुगंध यहाँ। शादी के घर तो फंक्शन के
समय ही जाते । बाकी पूरा समय यहीं हंसी मज़ाक। घर परिवार की बात। घर की बहू कुछ समय
में ही किसी की चाची,किसी की
देवरानी,किसी की भाभी और किसी
दीदी बन गई। रसोई में देर रात तक सभी के लिए कुछ ना कुछ बंता रहता। “मेहमान” महिलाएं भी रसोई में होती हाथ बटाने के
लिए। जब सूरज
का दूर दूर तक पता ही नहीं होता था घर की बहू
उठती। सभी के लिए चाय,मिठाई,बिस्कुट। फिर नाश्ता...। जितना समय शादी वाले
घर या पैलेस में नहीं बिताया जितना उन सभी ने इस घर में बिताया,जहां वैभव होने के बावजूद वैभव दिखाया नहीं जा रहा था। अपनापन लुटाया जा रहा था जिससे सभी पुलकित
थे। आने के समय जो संकोच में थे वे स्नेह से अभिभूत थे। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि जिनके यहां
शादी थी उनके यहां तो पता नहीं लेकिन इस घर में मेहमानों की रवानगी के समय ऐसा सीन
था जैसे कोई परिवार प्रदेश रहने वाले बहू-बेटे,दामाद-बेटी को विदा कर रहा हो। किसी ने किसी को भौतिक
रूप से कुछ नहीं दिया। आदान प्रदान हुआ तो केवल और केवल मोहब्बत का। मोहब्बत देकर
गए और मोहब्बत लेकर गए।
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