परिवार में कई भाई,बहिन। पिता की दुकान। कोई खास बड़ी नहीं पर घर गृहस्थी मजे से चल रही है।बच्चे पढ़ते हैं। समय आगे बढ़ा। बच्चे भी बड़े हुए। खर्चा बढ़ा। बड़ा लड़का पिता का हाथ बंटाने लगा। बाकी बच्चों की कक्षा बड़ी हुई। खर्चे और अधिक बढ़ गए। चलो एक लड़के ने और घर की जिम्मेदारी संभाल ली। एक भाई पढता रहा।दूसरे भाई उसी में अपने सपने भी देखने लगे।घर की कोई जिम्मेदारी नहीं थी सो पढाई करता रहा। आगे बढ़ता रहा।दिन,सप्ताह,महीने,साल गुजरते कितना समय लगता है।वह दिन भी आ गया जब छोटा बड़ा बन गया। इतना बड़ा बन गया कि जो घर के बड़े थे उसके सामने छोटे पड़ गए। जब कद बड़ा तो रिश्ता भी बड़े घर का आया। रुतबा और अधिक हो गया। खूब पैसा तो होना ही था। भाई,बहिनों की जिम्मेदारी तो पिता,भाइयों ने पूरी कर ही दी। पुश्तैनी काम में अब उतना दम नहीं था कि भाइयों के घर चल सके। इसके लायक तो यही था कि वह भाइयों की मदद करे। उनको अपने बराबर खड़ा करे। ये तो क्या होना था उसने तो पिता की सम्पति में अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया। बड़ा था। सबने उसी की सुनी। देना पड़ा उसकी हिस्सा। अब भला उसको ये कहाँ याद था कि उसके लिए भाइयों क्या क्या किया? बड़े भाइयों का कद उसके सामने छोटा हो गया। इस बात को याद रखने का समय किसके पास कि उसे यहाँ तक पहुँचाने में भाई बहिन ने कितना किस रूप में किया। उसने तो बहुत कुछ बना लिया। भाइयों के पास जो था उसका बंटवारा हो गया।
यह सब किसी किताब में नहीं पढ़ा। दादा,दादी,नाना,नानी ने भी ऐसी कोई बात नहीं सुने। यह तो समाज की सच्चाई है। कितने ही परिवार इसका सामना कर चुके हैं। कुछ कर भी रहे होंगे। कैसी विडम्बना है कि सब एक के लिए अपना कुछ ना कुछ त्याग करते हैं। उसको नैतिक,आर्थिक संबल देते हैं। उसको घर की जिम्मेदारी से दूर रखते हैं ताकि वह परिवार का नाम रोशन कर सके। समय आने पर सबकी मदद करे। उनके साथ खड़ा रहे। घर परिवार की बाकी बची जिम्मेदारी संभाले। उस पर भरोसा करते हैं। परन्तु आह! रे समय। जिस पर भरोसा किया वह सबका भरोसा तोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसा लेता है। उसको यह याद ही नहीं रहता कि आज जो भी कुछ वह है उसमें पूरे परिवार का योगदान है। उसे यहाँ तक आने में जो भी सुविधा मिली वह परिवार ने दी। उसको घर की हर जिम्मेदारी से दूर रखा तभी तो यहाँ तक पहुँच सका। वह बड़ा हो गया लेकिन दिल को बड़ा नहीं कर सका। जिस दुकान पर वह कभी भाई ,पिता की रोटी तक लेकर नहीं आज वह उसमें अपना शेयर लेने के लिए पंचायत करवा रहा है। जो उसने कमाया वह तो उसके अकेले का। जो भाइयों ने दुकान से कमाया वह साझे का। बड़ा होने का यही सबसे अधिक फायदा है कि उसको छोटी छोटी बात याद नहीं रहती।शुक्र है भविष्य के बदलते परिवेश में ऐसा तो नहीं होने वाला। क्योंकि आजकल तो एक ही लड़का होता है। समाज का चलन है कि उसको पढने के लिए बाहर भेजना है। जब शादी होगी तो बेटा बहू या तो बच्चे के नाना नानी को अपने यहाँ बुला लेंगे या बच्चे को दादा दादी के पास भेज देंगे,उसको पालने के लिए। उनकी अपनी जिन्दगी है। प्राइवेसी है।
Monday, September 5, 2011
जिन्दगी का एक रंग ये भी है
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1 comment:
बहुत से परिवारों की कहानी है यह !
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