Tuesday, November 17, 2009

इतनी चिंता,इतना प्यार.

फिज़ा में गूंजते देशभक्ति के तराने,चारों ओर नगर प्रेम,देश प्रेम का ठाठे मारता माहौल। दिल मेरा गार्डन गार्डन हो गया। इस पर शहर की चिंता में गली गली, घर घर घूमते दर्जनों लोग लुगाई,मेरा तो यह जीवन सफल हो गया। कलयुग में इस धरा पर आकर जिन्दगी जैसे सार्थक हो गई। जन्म लेना बोझ नहीं लगा। अपने नगर को गुले गुलजार बनने का जज्बा,क्या बताऊँ, हर एक लोग लुगाई के हाथ चूम लेने को मन करता है। जी करता है नारायण नारायण की जगह बस उनका जाप करूँ। ऐसा वातावरण देख कर तम मन को सुकून इतना मिला कि जिक्र करने को शब्द नहीं मिल रहे। मेरे शहर की चिंता,फ़िक्र में दुबले होते इतने लोग लुगाइयों को देख कर कहीं खुशी से मैं पागल ना हो जाऊँ। जरा संभाल लेना ताकि नगर में होने वाले बदलाव को मैं अपनी अपनी आंखों से देख सकूँ। उसके बाद यह जान भी चली जाए तो कोई गम नहीं।
आप भी हो गए ना हैरान,परेशान।ऐसे देवता तुल्य इन्सान इस धरती पर! साथियों,साथिनों ऐसा कुछ भी नहीं है। यह सब चुनाव जीतने के लिए हो रहा है। यहाँ नगर परिषद् के चुनाव है। ऐसा हर चुनाव में होता है। चलो छोड़ो "मजबूर" को पढो--
गंदगी पसंद है
न बंदगी पसंद है
दूध सी धुली-धुली
फूल सी खिली-खिली
प्यार में घुली-घुली
ज़िन्दगी पसंद है,

दोस्ती शर्त है
दोस्ती उसूल है
दोस्ती कुबूल है
रिश्ता गर्ज़-फ़र्ज़ का
बोझ है फुज़ूल है
वफ़ा नहीं तो कुछ नहीं
अपनी भी सौगंध है।

7 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

आपका लेख और कविता पढ़कर मेरा भी दिल गार्डन-गार्डन हो गया ! नारायण... नारायण !

Anonymous said...

dil khush ho gaya.

Murari Pareek said...

kash ye chunaawi mahol hameshaan rahe .ha.ha..ha..

आजातशत्रु said...

पिछले दिनों एक समाचार पढ़ कर हर्ष, विषाद, क्रोध इत्यादि भावों की एक साथ अनुभूति हो गयी, और अंत में विचारमग्न हो गया. समाचार था इस प्रकार था के उत्तर प्रदेश के एक शहर के नगर निगम चुनावों में पार्षद पद के एक प्रत्याशी ने ३५ लाख रुपये खर्चा किये, किन्तु फिर भी वो हार गया. हर्ष इस बात का हुआ के लोग उसके बहकावे में नहीं आये. विषाद इस बात का हुआ के इतना पैसा इस स्तर के चुनाव में उड़ना क्या उचित है? क्रोध इस बात का था के चुनावों का मखौल बना रखा है, और प्रत्याशी निरंकुश होते जा रहे हैं. और अंत में विचार ये आया के जिसने इतना पैसा लगाया, उसको निश्चित ही उससे कहीं अधिक की वसूली की उम्मीद रही होगी, तो मुद्दे की बात है के करियर अच्छा है, ३५ लाख वाले को हराने वाले को आदर्श मान के अगली बार परचा भरा जाये :)

Himanshu Pandey said...

"दूध सी धुली-धुली
फूल सी खिली-खिली
प्यार में घुली-घुली
ज़िन्दगी पसंद है,"
बहुत ही पसंद आयी यह रचना । खूबसूरत । आभार ।

करण समस्तीपुरी said...

फूल सी खिली-खिली,
प्यार में घुली-घुली,
ज़िन्दगी पसंद है.... !

namaskaar devarshi !
parantu aisee jindagee milti kahaan hai.... aap to trilok vicharan karte hain ye bhi bataayen ! Narayan ! Narayan !!

पंकज वर्मा said...

"फूल सी खिली-खिली
प्यार में घुली-घुली
ज़िन्दगी पसंद है,"
शायद ये मेरे मन की बात थी, जो आपने कह दी.. नहीं, मैं गलत हूँ, ये तो हर आम व्यक्ति के मन की बात है.