श्रीगंगानगर-राजनीति में कई बार कुछ कहे बिना ही बहुत कुछ सुनाई,दिखाई देने लगता है। कोई बयान नहीं है। कोई पोस्टर होर्डिंग भी नहीं लगे। फिर भी ऐसा राजनीतिक गलियारों में ये अहसास होने लगा है कि बीजेपी विधायक राधेश्याम गंगानगर की पार्टी में नाका बंदी शुरू हो गई है। यस! क्षेत्र के सबसे परिपक्व राजनेता की नाका बंदी। पार्टी का कोई भी ग्रुप ऐसा नहीं है जो इस काम में अपना योगदान ना दे रहा हो। सभी का एक सूत्री कार्यक्रम कि बीजेपी की टिकट को राधेश्याम की झोली में जाने से रोका जाए। लेकिन सबसे अधिक मुश्किल फिलहाल विकल्प की है। कोई ऐसा नेता नहीं दिख रहा जो बीजेपी की टिकट लेकर चुनाव जीत सके। बी डी अग्रवाल के रूप में एक आशा की किरण पार्टी के ऐसे नेताओ को नजर आई थी। लेकिन उन्होने अपनी पार्टी का ऐलान कर दिया। वैसे तलाश अभी समाप्त कहां हुई है। इनके पास हर बिरादरी के बंदे हैं जो राधेश्याम के मुक़ाबले टिकट के लिए आगे तो किए ही जा सकते हैं। नाम हम लिखते हैं। किसमे कितना दम है,आइडिया आप लगा लेना। तो जनाब नाका बंदी की कोशिश में लगे नेताओं के पास अरोड़ा बिरादरी के सोनू नागपाल,ओबीसी के प्रहलाद राय टाक,राजपूत समाज के गजेन्द्र सिंह भाटी,वैश्य समाज पेड़ीवाल [पार्टी में शामिल होने में कितना समय लगता है] हैं हीं। और नहीं तो प्रदेश में नेताओं का अकाल तो नहीं है। भैरों सिंह शेखावत की तरह बाहर से किसी बड़े लीडर को भी बुलाया जा सकता है। नाका बंदी में जुटे बीजेपी लीडरों को इस बात से कोई लेना देना नहीं कि राधेश्याम के अलावा कोई और जीत सकता है या नहीं। बस उनको तो राधेश्याम गंगानगर की कढ़ी खराब करनी है। चलो मान लो। राधेश्याम की टिकट कटवा दी। किन्तु उनको चुनाव लड़ने से कौन रोक सकता है। आज के दिन जो राधेश्याम गंगानगर के बिना कोई भी राजनीतिक टीकाकार विधानसभा चुनाव की का कल्पना नहीं कर सकता। बेशक नेहरू पार्क में किसान महा पंचायत में राधेश्याम गंगानगर का कोई पोस्टर,होर्डिंग नहीं था। उनके बंदों को भी खास अहमियत नहीं मिली। लेकिन इसका यह राजनीतिक अर्थ नहीं कि राधेश्याम गंगानगर गुजरे जमाने की बात हो गए।
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