श्रीगंगानगर—सरकार कुछ भी कर सकती है। जो करना चाहिए वह करे ना करे लेकिन वह जरूर कर देगी जिसकी कल्पना करना मुश्किल होता है। बाबा रामदेव की अगवानी के लिए केंद्र के चार वरिष्ठ मंत्री दंडवत करते हुए हवाई अड्डे पहुंचे। यह पहली बार हुआ। बाबा ने तो क्या सोचना था, किसी राजनीतिज्ञ के ख्याल में भी ऐसा नहीं आ सकता कि चार बड़े मंत्री किसी के स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर आ सकते हैं। चलो इसे बाबा के चरणों में सरकार का बड़ापन मान लेते हैं। विनम्रता कह सकते हैं। शराफत का दर्जा दे दो तो भी कोई हर्ज नहीं। किन्तु कुछ घंटे के बाद ऐसा क्या हुआ कि सरकार का बड़ापन बोना हो गया। विनम्रता बर्बरता में बदल गई। शराफत के पीछे घटियापन नजर आने लगा। जिस सरकार के मंत्री दिन में किसी सज्जन पुरुष का सा व्यवहार कर रहे थे, रात को उनकी प्रवृति राक्षसी हो गई। रामलीला मैदान में रावण लीला होने लगी। सात्विक स्थान पर तामसिक मनोस्थिति के सरकारी लोग उधम मचाने लगे। सब कुछ तहस नहस कर दिया गया। जिस सरकार को जनता ने अपनी सुरक्षा के लिए चुना, उसी के हाथों उनको पिटना पड़ा। जिस बाबा के चरणों मे सरकार लौटनी खा रही थी उनको नारी के वस्त्र पहन कर भागना पड़ा। इससे अधिक किसी की ज़लालत और क्या हो सकती है। लोकतन्त्र में सरकार का इस प्रकार का बरताव अगर होता है तो फिर तानाशाही में तो पता नहीं क्या कुछ हो जाए। असल में बाबा योग सीखे और फिर सिखाते रहे। राजनीति के गुणा,भाग का योग उनको करना नहीं आया। राजनीति का आसान उनको आता नहीं था। यहीं सब गड़बड़ हो गया। उनको चार मंत्री आए तभी समझ जाना चाहिए था कि सब कुछ ठीक नहीं है। यह सब प्रकृति के विपरीत था। प्रकृति के विपरीत आंखों को,मन को सुकून देने वाला भी हो तो समझो कि कहीं न कहीं कुछ ना कुछ ठीक नहीं है। यह संभल जाने का संकेत होता है। बाबा नहीं समझे। गलत फहमी में रहे। वे ये भूल गए कि
जो लोग इस राष्ट्र को अपनी ही संपति समझते हैं वे अपने काले धन को राष्ट्रीय संपति घोषित करने की मांग क्यों मानेंगे? यह तो डबल घाटा हुआ। अरे भाई, इनके यहाँ तो केवल इंकमिंग ही है, आउट गोइंग वाला सिस्टम तो इनके जीवन में है ही नहीं । ये केवल और केवल लेना जानते हैं देना नहीं। जब इनसे जनता मांग करती है तो इनको ऐसे लगता है जैसे कोई इनकी संपति में से हिस्सा मांग रहा हो। फिर वही होता है जो रामलीला मैदान में हुआ। मजबूर कहते हैं—पूरी मैं दिल की छह करूँ या दुनिया की परवाह करूँ, तू बता मैं क्या करूँ। हक के लिए लड़ मरूँ या बैठा आह! भरा करूँ, तू बता मैं क्या करूँ।
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