राजस्थान में जितने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा,पुलिस सेवा और राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं उनमे से अधिकांश एक बार अपनी पोस्टिंग श्रीगंगानगर जिले में होने की तमन्ना रखते हैं। इसके लिए मैंने ख़ुद अधिकारियों को नेताओं के यहाँ हाजिरी लगाते,मिमियाते देखा है। कितने ही अधिकारी हमारे जिले में सालों से नियुक्त हैं। सरकार किसी की हो,ये कहीं नहीं जाते। वैसे तो ये सरकार की ओर से जनता की सेवा और उनके काम के लिए होतें हैं। अधिकारी की कोई जाति भी नहीं होती, क्योंकि उनको तो सब के साथ एक सा व्यवहार करना होता है। किंतु श्रीगंगानगर में ये सब कुछ नहीं रहता। यहाँ इन अधिकारियों की जितनी मनमर्जी चलती है उतनी राजस्थान में कहीं नहीं चलती। यहाँ एक दर्जन से अधिक दैनिक अख़बार निकलते हैं,इसके बावजूद अधिकारियों में पर किसी का अंकुश नहीं है। किसी अधिकारी के खिलाफ किसी अख़बार में कुछ नहीं छपता। चाहे अधिकारी कितनी भी दादागिरी करे। गत दिवस एक अधिकारी की कार्यवाही का विरोध हुआ। उस अधिकारी ने अपनी जाति के संगठन को आगे कर दिया। उसके बाद अधिकारियों की बैठक हुई। एकजुटता दिखाई गई। ऐसा हुआ तो ये कर देंगे,वैसा हुआ तो वो कर देंगे, स्टाईल में बातें हुईं। जैसे माफिया होते हैं। इसका मतलब सीधा सा कि जनता को जूते के नीचे रखो, नेता जी कुछ करेंगें नहीं क्योंकि वही तो हमें लेकर आयें हैं। अधिकारियों के अन्याय का विरोध करो तो सब अधिकारी जनता के खिलाफ हो जाते हैं। कितनी हैरानी की बात है कि जिन अधिकारियों को जन हित के लिए सरकार ने लगाया,वही अधिकारी दादागिरी करतें हैं। एक परिवार ने एक अधिकारी द्वारा की गई दादागिरी दिखाने, बताने के लिए एक संपादक को फ़ोन किया। संपादक का कहना था कि आप किसी होटल में बुलाओ। पीड़ित ने कहा, सर हम तो मौका दिखाना चाहते हैं। लेकिन ना जी , संपादक ने यह कह कर मौके पर आने,अपना प्रतिनिधि भेजने से इंकार कर दिया कि आप हमें इस्तेमाल करना चाहते हैं। अब जनता किसके पास जाए। नेता के पास जाने से कुछ होगा नहीं। अधिकारी डंडा लिए बैठें हैं। संपादक जी मौके पर आना नहीं चाहते। ऐसी स्तिथि में तो जनता को ख़ुद ही कुछ करना होगा। जब जनता कुछ करेगी तो फ़िर वही होगा जो अक्तूबर २००४ में घड़साना-रावला में हुआ था। तब करोडों रुपयों की सम्पति जला दी गई थी। पुलिस की गोली से कई किसान मारे गए थे। हम ये नहीं कहते कि यह सही है,मगर जब सभी रास्ते बंद हो जायें ,कोई जायज बात सुनने को तैयार ही ना हो, अफसर केवल फ़ैसला सुनाये, न्याय न करे तो आख़िर क्या होगा? बगावत !
काफी लोग कहेंगें कि आपने संपादक और अधिकारियों के नाम क्यों नहीं लिखे? इसका जवाब है , हम भी एक आम आदमी हैं, इसलिए इनसे डरते हैं, डरतें हैं।
5 comments:
गंगानगर की ख़ास बात ये है की यहाँ के लोग ना नहीं सुनने के आदि है..!अधिकारी ने ना की और ये पैसा फेंकना शुरू कर देते है..काम तो हो जाता है पर इससे फिर आगे हर काम पैसे से ही होने की नींव पड़ जाती है..!फिर कौन जाना चाहेगा यहाँ से?फिर जितनी सुख सुविधाएँ इस जिले में मिलती है वे शेष राजस्थान में तो अकल्पनीय है...
अफ़सरो का आजकल हर जगह यही रवैया है। अफ़सर नेता से कम नही है और दोनो का गठजोड जनता की ऐसी की तैसी कर रहा है,जिसे संपादक कहे या मीडिया विज्ञापन के लालच मे आंख मुंदे देख रहा है।
इतना बडा भेद खोल रहे है फिर भि केहते हैकि डरता् हूँ ये तो एक नगर का नही पूरे देश के अधिक्तर अधिकारिओं का कच्चा चिठा है आभार्
darasal har shahar me netaa, adhikaaree aur anaitik dhandhe karane waale logo kaa aur patrakaar yaa akhabaar ke maaliko kaa ek nexus ban gayaa hai.
ye log milakar ek sangthit giroh ke rup me kaam karate hai.
inake nexus ko saamane laanaa pahalaa kadam hai,yadi isee tarah janmaanas banata rahaa to is chakravyuh ko bhedaa jaa sakataa hai.
subodh, indore
indoreupdates.blogspot.com
अरे श्री गंगानगर नगर ही नहीं पूरे भारत में यही हो रहा है .नेता ,अफसर ,पुलिस सब सेवक 'राजा' को लूट रहे हैं .
प्रेस तो दलाली का धंधा ही बन गया है .
यह सब कोकिया क्या जाये ?
नारायण ,नारायण के सिवाय .
नारायण , नारायण !
पता है .कोइ समाचार नहीं . बताइए
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