Monday, March 30, 2009

कुत्ता मरा तो खूब आए

अब आपसे विदा लेने का समय नजदीक आ रहा है। बस दो दिन की बात है। दो दिन हँसते हँसते निकल जायें तो बेहतर होगा। चलो थोड़ा हंस लेते हैं मेरे ओठों से तो हँसी गायब हो चुकी है, जब जाने का समय आ जाए तो बड़े बड़े हंसोकडे हँसाना हंसना भूल जाते हैं।
एक बहुत बड़ा अफसर था। उसके पास जानदार शानदार कुत्ता था। अफसर का कुत्ता था तो उसकी चर्चा भी इलाके में थी। सब उसको नाम और सूरत से जानते भी थे। लो भाई एक दिन कुत्ता चल बसा। ओह! अफसर के यहाँ शोक प्रकट करने वालों की भीड़ लग गई। नामी गिरामी से लेकर आम आदमी तक आया। [आम आदमी तो तमाशा देखने आया.उसको अफसर के पास कौन जाने देता।] हर कोई कुत्ते की प्रशंसा करे। मीडिया भी पीछे नहीं रहा। ब्लैक बॉक्स में कुत्ते की फोटो लगा कर उसकी याद में कई लेख लिखे गए। अफसर के खास लोगों ने कुत्ते के बारे में संस्मरण प्रकाशित करवाए। शोक संदेश छपवाए। तीये की बैठक तक मीडिया से लेकर घर घर कुत्ते की ही चर्चा थी।
अफसर कुत्ते की मौत का गम सह नही सका। उसकी भी मौत हो गई। अब नजारा अलग था। कोई माई का लाल शोक प्रकट करने नही पहुँचा। जरुरत भी क्या थी। जिसको सूरत दिखानी थी वही नही रहा।

7 comments:

seema gupta said...

" सच कहा, मौत में भी लोग दिखावा करने से बाज नहीं आते..'

Regards

डॉ. मनोज मिश्र said...

अब कुत्ते ,मानवों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गएँ हैं .

निर्मला कपिला said...

narayanji aap kahan jane ki baat kar rahe hain meri samajh me nahi aya vese kute vali baat achhi lagi

Arun Arora said...

लोगो को संबंध अफ़सर से बनाने थे . सो कुत्ते के मरने पर आये . पर जब अफ़सर ही नही रहा तो काहे के संबंध ? लोगो के पास कहा वक्त है जी अपने मतलब को हल करने के अलावा :)

Nitish Raj said...

दो दिन वाली बात समझ में नहीं आई। कुछ बातें सच हैं और उनको हमने सच बना भी दिया है क्योंकि होती राजनीति चारों तरफ है।

नीरज गोस्वामी said...

ये कहाँ जाने की बात कर रहे हैं आप? नारद भी कहीं जाते हैं वो तो विचरते रहते हैं नारायण नारायण करते हुए...और फिर लौट आते हैं.
नीरज

राज भाटिय़ा said...

चलि झंझट ही खतम.
धन्यवाद