Monday, January 26, 2009

पदमश्री सम्मान की गरिमा

"सुनहू भरत भावी प्रबल बिलख कहें मुनिराज,लाभ -हानि,जीवन -मरण ,यश -अपयश विधि हाथ" रामचरितमानस की ये पंक्तियाँ श्री एस एस महेश्वरी को समर्पित, जिनको पदमश्री सम्मान देने की घोषणा की गई है।यह मेरे लिए गर्व,सम्मान,गौरव... की बात है। क्योंकिं श्री महेश्वरी मेरे शहर के हैं। लेकिन दूसरी तरफ़ इस बात का अफ़सोस भी है कि क्या पदमश्री की गरिमा इतनी गिर गई की यह किसी को भी दिया जा सकता है। श्री महेश्वरी जी को यह सम्मान सामाजिक कार्यों के लिए दिया जाएगा। उनके सामाजिक कार्य क्या हैं ये सम्मान की घोषणा करने वाले नहीं जानते। अगर जानते तो श्री महेश्वरी को यह सम्मान देने की घोषणा हो ही नहीं सकती थी।

उन्होंने कुछ समाजसेवा भावी व्यक्तियों के साथ १९८८ में एक संस्था "विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति"का गठन किया। समिति ने आर्थिक रूप से कमजोर उन बच्चों को शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता दी जो बहुत होशियार थे। यह सहायता जन सहयोग से जुटाई गई।इसमे श्री महेश्वरी जी का व्यक्तिगत योगदान कितना था? वैसे श्री महेश्वरी जी एक कॉलेज में लेक्चरार है और घर में पैसे लेकर कोचिंग देते हैं। श्रीगंगानगर में ऐसे कितने ही आदमी हैं जिन्होंने समाज में महेश्वरी जी से अधिक काम किया है। स्वामी ब्रह्मदेव जी को तो इस हिसाब से भारत रत्न मिलना तय ही है। उन्होंने ३० साल पहले श्रीगंगानगर में नेत्रहीन,गूंगे-बहरे बच्चों के लिए काम करना शुरू किया। आज तक उनके संरक्षण में कई सौ लड़के लड़कियां अपने पैरों पर खड़े होकर अपना घर बसा चुके हैं। जिनसे समाज तो क्या उनके घर वालों तक को कोई उम्मीद नहीं थी आज वे सब की आँख की तारे हैं। सम्मान की घोषणा करने वाले यहाँ आकर देखते तो उनकी आँखें खुली की खुली रह जाती। आज स्वामी जी के संरक्षण में नेत्रहीन,गूंगे-बहरे बच्चों की शिक्षा के लिए क्या किया जा रहा है वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। पता नहीं ऐसे लोग क्यूँ सम्मान देने वालों को नजर नहीं आते। आज नगर के अधिकांश लोगों को श्री महेश्वरी के चयन पर अचम्भा हो रहा है। अगर श्री महेश्वरी को इस सम्मान का हक़दार मन जा रहा है तो फ़िर ऐसे व्यक्तियों की तो कोई कमी नही है।

यहाँ बात श्री महेश्वरी जी के विरोध की नहीं पदमश्री की गरिमा की है। सम्मान उसकी गरिमा के अनुकूल तो होना ही चाहिए ताकि दोनों की प्रतिष्ठा में और बढोतरी हो, लेकिन यहाँ गड़बड़ हो गई। सम्मान की प्रतिष्ठा कम हो गई, जिसको दिया जाने वाला है उसकी बढ़ गई। मैं जानता हूँ कि जो कुछ यहाँ लिखा जा रहा है वह अधिकांश के मन की बात है किंतु सामने कोई नहीं आना चाहता। मेरी तो चाहना है कि अधिक से अधिक इस बात का विरोध हो और सरकार इस बात की जाँच कराये कि यह सब कैसे हुआ। मेरी बात ग़लत हो तो मैं सजा के लिए तैयार हूँ। यह बात उन लोगों तक पहुंचे जो यह तय करतें हैं कि पदमश्री किसको मिलेगा।

6 comments:

Anonymous said...

ये ही दुख की बात है..सम्मान पहुच से मिलते है योग्यता से नहीं..

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं..

MANVINDER BHIMBER said...

अच्छी पोस्ट के लिए बधाई ......गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें

विवेक सिंह said...

ऐसा न हो !

अच्छी पोस्ट के लिए बधाई ......गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें !

अनिल कान्त said...

भाई ये तो ना जाने कबसे होता आ रहा है ........


अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

राज भाटिय़ा said...

भारत मै ऎसा हो कोई नयी बात नही,यह सब तो बचपन से देखते आ रहे है... नारायण नारायण.
आप को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं !!

Unknown said...

ye jo bharat hai usmai ye to hotaa hee rahta hai.
http://hariprasadsharma.blogspot.com/