Friday, August 28, 2015

यह प्राचीन शिवालय है बाबू, इधर कोई वीआईपी नहीं


श्रीगंगानगर। [गोविंद गोयल] नगर मेँ बड़ा धार्मिक आयोजन, अनुष्ठान और कर्ता लाइम लाइट मेँ नहीं। है ना अचरज की बात। लेकिन अनुष्ठान  प्राचीन शिवालय मेँ हो तो किसी को कोई अचरज नहीं हो सकता। क्योंकि शिवालय कोई टॉफी, गोली, झांकी, बाँकी, सीधी वाले बाबा जी का स्थान तो है नहीं कि कर्ता और उसके खास मीडिया मेँ छाए रहें। नगर की गली गली मेँ आयोजन के बहाने लोग अपना प्रचार करें। सौ प्रकार के आडंबर कर धर्म की मार्केटिंग करें। ये तो वो जगह है जहां कर्ता और कारक केवल शिव है। इसलिए इधर आने वाला हर व्यक्ति समान है। शिवालय मेँ  23 अगस्त से नव कुंडीय श्री महरुद्र यज्ञ हो रहा है। जिसकी पूर्णाहुति 29 अगस्त शनिवार को दोपहर सवा बारह बजे होगी। अनुष्ठान के प्रेरक, कर्ता सब कुछ सांसारिक रूप से तो महंत कैलाश नाथ जी हैं। परंतु वे ये बात नहीं मानते। उनके शब्दों मेँ तो सब कुछ शिव ही करता और करवाता है। इस आयोजन मेँ कैलाश नाथ जी कभी भी, किसी भी समय अगुआ के रूप मेँ दिखाई नहीं दिये। उनकी प्रकृति मेँ ही नहीं है दिखावा, आडंबर। वे या तो अपनी कुटिया मेँ बैठे होते हैं या फिर बरामदे मेँ। कभी जी किया तो दूर बैठे यज्ञ को निहार लिया।  मन मेँ आया तो किसी काम को देखने के लिए आ खड़े हुए, बस। उनके स्थान पर कोई और ऐसा यज्ञ करवाने वाला होता तो अब तक ना जाने कितने वीआईपी के साथ उनके फोटो मीडिया तक पहुँच गए होते। अफसरों को बुलाया जाता। नेताओं को पटाया जाता। उनकी आवभगत कर फोटो खिचवाते, छपवाते। उनको सम्मानित करते। खुद होते। फूल मालाओं का आदान प्रदान होता। कितने ही व्यक्ति इन वीआईपी को माला पहना अपने आप को धन्य समझते।  परंतु ये प्राचीन शिवालय है। शिव का स्थान। कोई अफसर आए या नेता, सब के सब बराबर। इधर कोई चोर दरवाजा ही नहीं है। ना भोजन के लिए और ना दर्शन के वास्ते। किसी को कोई वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं। चाहे कोई तुर्रम खाँ आ जाए, कोई आगे पीछे नहीं घूमता। कोई कहीं बैठा है, तो कोई उठाता नहीं। खड़ा है तो कोई बैठने के लिए नहीं कहता। जब शिवालय सभी का है तो कौन किसकी आवभगत करे! बाबा जी को कोई प्रणाम करने आ गया, तो कोई अहंकार नहीं। नहीं आया तो कोई गिला नहीं। ना साधो से लेना, ना माधो का देना। ऐसे ही इस अनुष्ठान मेँ लगे सेवादार हैं। अंजान व्यक्ति को तो पता ही ना लगे कि ये सेवादार हैं। क्योंकि बाकी स्थानों की तरह कोई बैज, बिल्ला, विशेष ड्रेस अथवा पटका नहीं है किसी सेवादार के पास। सब के सब चुपचाप उस काम मेँ लगे हैं, जो बाबा जी ने सौंप रखा है। हर सेवादार बाबा जी के इशारों को समझता है। उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास रखता है। शायद शिवालय ही एक ऐसा धर्मस्थल है, जिधर बिना आडंबर के धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। वरना तो छोटे छोटे आयोजनों पर उतना खर्च नहीं होता, जितना आयोजक अपनी फोटो छपवाने के लिए खर्च कर देते हैं। कर्ता, कारक, यजमान और विप्रवर सभी खुश और आनंदित नजर आते हैं। बाकी तो वह शिव जाने, जिसकी छत्रछाया मेँ यह अनुष्ठान हो रहा है। दो लाइन पढ़ो—तेरे प्यार से भरा हूँ, बस इसलिए खरा हूँ। 

2 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सरकार भरोसे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

thanks sir ji