श्रीगंगानगर- चुनाव के समय गली-गली,घर-घर घूम कर जन सेवा के लिए मौका
मांग रहे नेता को हम शहंशाह बना देते हैं.वोटों के लिए लोगों के दरबार
में हाथ बांधे खड़े रहने वाले पंच,सरपंच,पार्षद,विधायक,सांसद बनते ही खुद का
दरबार लगाना शुरू कर देते हैं.सेवक बनने के लिए आते हैं,शासक बन जाते हैं.
ये कसूर उनका नहीं हमारा है. हम तो वोट देने के बाद भूल जाते हैंउनको. हम
कभी उनको फोन नहीं करते. उनसे पूछते नहीं. किधर हो? कब आओगे? क्या करोगे?
क्या योजना है? क्षेत्र के लिए सदन में क्या बोला? वो मजे से दरबार लगाते
हैं. हम उनको घर बैठे कोसते हैं. पहली बात तो ये कि पता ही नहीं लगता कि
नेता कब आते हैं. आ भी जाएं तो ये चंद लोगों के कब्जे में रहते हैं. कब्ज़ा
ना भी हो तो जनता नहीं जाती इनके पास. किसी को दुकान से फुरसत नहीं किसी
को नौकरी से. वोट दिया. काम ख़त्म. चूंकि वोटर कभी कुछ कहते नहीं,सवाल जवाब
नहीं करते इसलिए नेता भी जनता की परवाह नहीं करते. मनमर्जी करते हैं. होना
तो ये चाहिए कि जनता अपने पार्षद से लेकर सांसद तक के टच में रहे. इनको पता
होना चाहिए कि जनता जाग रही है. वह हिसाब रखने
लगी है उनका. विधायक हो या सांसद,इनसे इनके एक एक दिन का हिसाब मांगा
जाए.किधर गए?क्या किया ?किस योजना पर काम किया जा रहा है? कौनसी नई योजना
लाने की स्कीम है? विकास की क्या प्लानिंग है? कौनसा काम कब तक होगा? नहीं
होगा तो क्यों नहीं होगा? एक एक बात पूछनी चाहिए. चैन से मत बैठने दो अपने
विधायक और सांसद को. मतदाता कुछ कहते नहीं. बस इसलिए ये उनके बीच रहते
नहीं. इनको मजबूर किया जाए जनता के बीच रहने के लिए. उनकी निजता को नुकसान
पहुंचाए बिना पूरा हिसाब होना चाहिए उनका. बकरी मरे पर ना आए तो ना आए.अपने
परिवार की शादी की शोभा भी बेशक मत बनाओ इनको. परन्तु क्षेत्र से दूर मत
रहने दो. संपर्क करो,ताकि बता लगे कि वह बात करता है या नहीं. उसका व्यवहार
कैसा है. बात नहीं करता तो उसकी उपेक्षा को सार्वजनिक करो. जन जन तक यह
बात पहुंचाओ कि नेता को फोन किया था , उसने बात नहीं की. जब तक जनता इन पर
निगाह नहीं रखेगी, ये नहीं मिलेंगे. रवैया बदलना होगा जनता को अपना खुद
का. उसके बाद नेता तो बदल ही जाएगा. मुर्दा रहने से कोई बात नहीं बनती.
जिन्दा साबित करो अपन आप को. लाखों नहीं तो हजारों वोटर ही फोन करने लगें
इनको तो इनका छिपना मुश्किल हो जाएगा. वरना तो वही होगा जो ये लोग चाहेंगे.
बदलाव चाहिए तो एक सप्ताह में दो चार मिनट ही निकाल लो. इनको पुचकारने की
बजाए इनको पुकारो. पुकार ना सुने तो लताड़ो.
जनता इनकी कर्जदार नहीं वे जनता के कर्जदार हैं. अपना दिया कर्ज पांच साल
में वापिस लो. लेकिन इसके लिए कर्ज का तकादा करना होगा. बिना तकादा किये
कोई कर्ज वापिस नहीं करता जी. वो जमाने गए जब लोग खुद कर्ज चुकाते थे. अब
तो मांगने पर दे दें वही काफी है. असल में हमारी चुप्पी की वजह से
विधायक,सांसद हमारे पालक हो गए.इसीलिए तो दरबार लगाते हैं. असल में होना तो
ये चाहिए कि जनता दरबार लगाए. उसमें विधायक,सांसद आए. जनता के सवालों के
जवाब दें. परन्तु विडम्बना देखो कि सेवक कहलाने वाले दरबार लगाते हैं और
जनता अपनी फरियाद लेकर उनके पास जाती है. बस अब ये सिलसिला बंद होना चाहिए.
सेवक को सेवक ही रखो. बंद कर दो उसे शहंशाह बनाने की परम्परा. एक बार कर
के देख लो. ठीक लगे तो जारी रखना. वरना बदल देना अगली बार.
1 comment:
बस अब ये सिलसिला बंद होना चाहिए. सेवक को सेवक ही रखो. बंद कर दो उसे शहंशाह बनाने की परम्परा. एक बार कर के देख लो. ठीक लगे तो जारी रखना. वरना बदल देना अगली बार.
sahi hai yehi ho yehi ho
AVAMASTU
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