श्रीगंगानगर-दो घटनाओं से बात शुरू करते हैं. पहली-किसी
पुलिस ऑफिसर के पास लड़के का पिता परिचित के साथ फरियाद लेकर आया.उसने बताया
कि उसकी पुत्र वधु घर में केवल तीन दिन रुकी.उसके बाद पति
के साथ शहर चली गई,जहां दोनों नौकरी करते थे. एक दिन वापिस आई. ससुराल
वालों के खिलाफ मुक़दमा किया. वापिस लौट गई ,पति केपास नहीं, अपनी नौकरी पर.
पिता ने कहा, इस मामले में आज तक किसी पुलिस अधिकारी ने उनकी नहीं सुनी.
दुखी बेबस पिता वापिस लौट गया. दूसरी-लड़की की शादी बैंक कर्मी से हुई. दस
दिन के बाद ही विवाद.पंचायत हुई. लड़के वालों ने दे दिया जो देना था. मगर
विवाद नक्की नहीं हुआ. लड़की ने पंचायतियों पर ही केस कर दिया. इसमें कोई शक
नहीं कि लड़की और उसका परिवार वाले ऐसा करके सुखी नहीं होंगे. लेकिन लड़के
और उनके परिवारों पर भी क्या गुजर रही होगी, ये भी चिंता के साथ साथ
चिंतन और मंथन करने की जरुरत है.ऐसी केवल दो घटना नहीं है. सैकड़ों परिवार
इस प्रकार से प्रताड़ित हो रहे हैं. उनका जीना ना जीने के बराबर हो चुका
है. कसूरवार लड़का. उसकी मां,बहिन,जेठ,जेठानी. लड़के की बहिन शादी शुदा है
तो बहनोई भी. ऐसे विवादों में जितनी भी पंचायतें होती हैं,उन सब में लड़के
के परिवार को दबाया जाता है.जिन घरों की लड़कियों के नाम थानों तक पहुँच
गए,उनका जीना भी क्या जीना. थानों में
शर्म,लिहाज,संवेदनशीलता,इज्जत,व्यवहार सब कुछ तार तार कर उसके स्थान पर
प्रताड़ना दी जाती है. वह भी ऐसी कि जिसकी कल्पना मुश्किल है. ऐसी जैसी
उन्होंने बहु को भी नहीं दी होगी. नारीवादी संगठन भी बहु के पक्ष में झंडा
लेकर मैदान में आ जाते हैं. इन संगठनों की नारियों को ये दिखाई नहीं देता
कि जिनके खिलाफ हल्ला बोला गया है वे भी नारियां ही हैं. एक नारी को कथित
न्याय दिलाने के नाम पर अनगिनत नारियों के साथ अन्याय ही तो होता है. बस हर
कोई लड़की के नाम पर लड़के वालों के पीछे लट्ठ लेकर पड़ जाता है. पंचायत भी
और पुलिस प्रशासन भी. सब के सब लोगों को यही लगता है कि इस दुनिया में अगर
कोई दरिंदे हैं तो लड़के वाले. नारीवादी संगठन,वकील,अदालतें,पंचायतों के
ठेकेदार और ऐसे मामलों की जाँच करने वाले अधिकारियों को झांक कर देखना
चाहिए इन घरों में,ताकि उनको मालूम हो सके कि उनकी जिंदगी कैसे नरक बानी
हुई है जिन पर बहु ने मुकदमे कर रखे हैं. लोग कैसे तिल तिल कर मर रहे हैं.
सामाजिक प्रतिष्ठा तो मिटटी हुई ही इसके साथ साथ कदम कदम जो प्रताड़ना
झेलनी पड़ती है उसका तो जिक्र ही नहीं होता. ना जाने कितने लोग तो भुगत रहे
हैं और ना जाने कितने ही खामोश हो बहु और उसके परिवार की प्रताड़ना सहने को
मजबूर है. बोले तो बहु सबको अंदर करवा देगी. और कुछ ऐसा वैसा कदम उठा लिया
तो समझो गए सब के सब अंदर. जितने घर तलाक ने बर्बाद नहीं किये होंगे उतने
अकेले दहेज़ प्रताड़ना कानून ने कर दिए
होंगे. ससुराल हो या पीहर महिला की स्वाभाविक,अस्वाभाविक मौत दहेज़ हत्या
के खाते में चली जाती है. उसके बाद लड़के वाले तो समझो ख़त्म. उनके समर्थन
में कोई नहीं आता. समाज खामोश. कानूनविद बेबस. कानून बनाने वालों को ये सब
देखने की जरुरत ही नहीं. वे तो समर्थ हैं. समर्थ को कोई दोष होता नहीं. इस
कानून से पहले महिलाओं की सुरक्षा,इज्जत,ससुराल में मान सम्मान नहीं होता
था क्या ! इस कानून से महिलाओं की कितनी सुरक्षा हुई. उनको समाज में कितना
ऊँचा स्थान मिला ,पता नहीं लेकिन ये जरूर है कि घर घर की महिलाएं और पुरुष
आतंकित जरूर हो गए इस कानून से. पता नहीं कब ऐसा होगा जब समाज और कानून
बनाने वाले लोग इस बारे में चिंतन कर बरबाद होते घरों को बचने के लिए कुछ
सार्थक पहल करेंगे.लड़के वालों को बेखौफ इज्जत से जीने का हक़ देंगे.सच में
किसी ससुराल में लड़की को प्रताड़ित किया गया है उसको तू सजा मिलनी ही चाहिए.
उनमें से एक भी नहीं बचे. लड़की की ससुराल में नहीं बनी.किसी भी वजह से
अड्जस्ट नहीं हो पाई. तो पूरे ससुराल को थाने में ला उनकी और अपने परिवार
की मिटटी करने से तो बेहतर है आपस में बैठकर फैसला करना.अंत में होता तो
यही फैसला ही है. जब यही फैसला होना है तो फिर पहले ही क्यों ना कर लिया
जाए. लड़की वाले भी सुखी और लड़के वाले भी.दो लाइन पढ़ो--तेरी याद से इश्क का कोई रिश्ता नहीं है, याद तो गैरों की भी आया करती है .
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