श्रीगंगानगर—कम शब्दों में सीधे सीधे यह बात कि इस पुलिस के हाथ में कुछ भी नहीं है। हां इनके सिर पर उन नेताओं के हाथ जरूर है जिनको जनता ने इसलिए अपना प्रतिनिधि चुना ताकि वो चैन से रहे सकें। आज जनता हैरान,परेशान है। डर डर कर जी रही है। जबकि पुलिस चैन से नहीं तो बेफिक्र जरूर है। अपराधी जब जहां उनकी जैसी इच्छा होती है वैसी वारदात कर शहर में “गुम” हो जाते हैं। पुलिस........पुलिस है किन्तु जनता के लिए नहीं है। वह थाने में है। गश्त में है। पुलिस लाइन में है। एसपी, अपर एसपी, डीवाईएसपी के दफ्तरों में है। जहां इसकी जरूरत है बस वहां नहीं है। वैसे यह कहीं हो या ना हो मगर ये सच है कि यह पुलिस उसी प्रकार किसी के बस में नहीं है जैसे अपराधी पुलिस के बस में नहीं है। जब कोई किसी के बस में नहीं होता तो कुछ भी हो सकता है। यही तो हो रहा है रोज। इस प्रकार के राज में तो भैंस उसी की होती है जिसके हाथ में लाठी हो। लाठी किसके पास है? पुलिस के पास। अपराधियों के पास। दबंगों के पास। जाने माने लोगों के पास। पटवारी से लेकर कलेक्टर तक अप्रोच रखने वालों के पास। पंच से लेकर ज़िला प्रमुख और पार्षद से लेकर सी एम तक से पहचान रखने वालों के पास। हर ऐसे इंसान के पास जो किसी की परवाह नहीं करता। इतने लोग लाठी वाले हैं। भैंस बेचारी करे क्या? ज़िले में क्या क्या हो रहा है उसका जिक्र न भी करें तो चलेगा। क्योंकि नगर में ही इतना कुछ हो रहा है। जो आज से पहले कभी नहीं हुआ। लगभग आए दिन सड़कों पर महिलाओं के आभूषण लूटे जा रहें हैं। । लड़कियों के पीछे लड़के यूं लगे होते हैं जैसे हिरणी के पीछे सिंह। बचाव! बचाव तो किसी भी हालत में नहीं। जिस ब्लॉक एरिये को सबसे सुरक्षित माना जाता है वही आज दबंगों की सैरगाह बन चुका है। पुलिस! पुलिस के बारे में तो कह ही चुके हैं कि वह बस में नहीं है। उसकी जनता के प्रति कोई जवाबदेही है ही नहीं। जनप्रतिनिधि होने के नाते थोड़ी बहुत जवाब देही जिन पर होती है वो सब चुप्प हैं। हो भी क्यों ना। ये सब उन्ही के तो लाडले हैं। भला अपने लाडले को भी कोई कुछ कहता है! आज ये सब किसी और के लाडले हैं। राज बदलेगा तो किसी और के हो जाएंगे। जनता का काम वोट देना। नेता चुनना और उनके द्वारा रखे गए अधिकारियों की अनदेखी सहन करना ही है। कैसी विडम्बना है भारत पाक सीमा से लगे इस जिला मुख्यालय की। अधिकारियों के कितने ही पद खाली हैं। काम फिर भी चल रहा है। पुलिस में सब हैं फिर भी वह कुछ नहीं कर पा रही। पता नहीं नेताओं को फीड बैक नहीं मिलता या उनका काम करने से मन ऊब गया। उनको बेबस,लाचार,दीन हीन जनता की आह! ओह! सुनाई नहीं दे रही ।
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