Thursday, May 28, 2009

हीरा और लोहे का अन्तर

एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई। उसके चेहरे आक्रोश साफ दिखाई दे रहा था। उसके साथ आए उसके परिजनों ने उसको बिठाने की कोशिश की,लेकिन बालिका नहीं मानी। संत ने कहा, बोलो बालिका क्या बात है?। बालिका ने कहा,महाराज घर में लड़के को हर प्रकार की आजादी होती है। वह कुछ भी करे,कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो,यहाँ मत जाओ,घर जल्दी आ जाओ। आदि आदि। संत ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराने लगे। उसके बाद उन्होंने कहा, बालिका तुमने कभी लोहे की दुकान के बहार पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं? ये गार्डर सर्दी,गर्मी,बरसात,रात दिन इसी प्रकार पड़े रहतें हैं। इसके बावजूद इनकी कीमत पर कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों की फितरत कुछ इसी प्रकार की है समाज में। अब तुम चलो एक जोहरी की दुकान में। एक बड़ी तिजोरी,उसमे फ़िर छोटी तिजोरी। उसके अन्दर कोई छोटा सा चोर खाना। उसमे से छोटी सी डिब्बी निकालेगा। डिब्बी में रेशम बिछा होगा। उस पर होगा हीरा। क्योंकि वह जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी। समाज में लड़कियों की अहमियत कुछ इसी प्रकार की है। हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसका और उसके परिवार के पास कुछ नहीं रहता। बस यही अन्तर है लड़ियों और लड़कों में। इस से साफ है कि परिवार लड़कियों की परवाह अधिक करता है।
इसी के संदर्भ में है आज की पोस्ट। जिन परिवारों की लड़कियां प्लस टू में होती हैं। उनके सामने कुछ नई परेशानी आने लगी है। होता यूँ है कि कोई भी कॉलेज वाले स्कूल से जाकर लड़कियों के घर के पते,फ़ोन नम्बर ले आता है। स्कुल वाले भी अपने स्वार्थ के चलते अपने स्कूल की लड़कियों के पते उनको सौंप देतें हैं। उसके बाद घरों में अलग अलग कॉलेज से कोई ना कोई आता रहता है। कभी कोई स्टाफ आएगा कभी फ़ोन और कभी पत्र। यह सब होता है शिक्षा व्यवसाय में गला काट प्रतिस्पर्धा ले कारण। स्कूल वालों को कोई अधिकार नहीं है कि वह लड़कियों के पते,उनके घरों के फोन नम्बर इस प्रकार से सार्वजनिक करें। ये तो सरासर अभिभावकों से धोका है। ऐसे तो ये स्कूल लड़कियों की फोटो भी किसी को सौंपने में देर नहीं लगायेंगें। जबकि स्कूल वालों की जिम्मेदारी तो लड़कियों के प्रति अधिक होनी चाहिए। अगर इस प्रकार से स्कूल, छात्राओं की निजी सूचना हर किसी को देते रहे तो अभिवावक कभी भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। आख़िर लड़कियां हीरे की तरह हैं, जिनकी सुरक्षा और देखभाल उसी के अनुरूप होती है।
नारदमुनि ग़लत है क्या? अगर नहीं तो फ़िर करो आप भी हस्ताक्षर।

9 comments:

अजय कुमार झा said...

bilkul sahee samasyaa kee or dhyaan dilaayaa hai aapne...shikshan sansthaanon ko is dishaa mein kuchh to karnaa hee chaahiye....

Udan Tashtari said...

इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिये.

Unknown said...

aap katai galat nahin hain naradji, ye lo kar diye hastakshar.....

vandana gupta said...

aapne badi saralta se heere aur lohe ka antar bata diya ...........bas sab ise samajhe to kya baat ho.
aapka prashn uttam hai........yeh baat sabko samajhni chahiye aur shikshan sansthanon ko to sabse pahle.

admin said...

सटीक विवेचन किया है कथा के बहाने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Abhishek Ojha said...

ऐसे स्कूल भी हैं ! लानत है इनपर !

नीरज मुसाफ़िर said...

ये लो नारायण जी, कर दिए हस्ताक्षर.
आप बिलकुल सही हैं.

Ankush Agrawal said...

likha to sahi hai...
waise jamana jhooth ka hi nahi hai, kuch log sach bhi bolte hai.. hai na?

RAJ SINH said...

सोलह आने सच !