श्रीगंगानगर-अब
तक चुने गए चौदह विधायकों में से सात विधायक सत्ता पक्ष के साथ रहे और
पांच विपक्ष में बैठे. दो को इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं रखा जा
सकता. क्योंकि इनमें से एक तो निर्दलीय था और आज चुनी गई नई विधायक
जमींदारा पार्टी की है. अब ना तो निर्दलीय को विपक्षी माना जा सकता है और
ना जमींदारा को. इनको सत्तारूढ़ पार्टी का तो किसी भी हालत में नहीं कहा जा
सकता. जनता किस को चुनती है ये उसका अधिकार है. लेकिन चुनने के बाद हाय
तौबा मचाए कि हाय हमारे विधायक तो विपक्षी ही होते हैं.हाय-हाय वे तो किसी
काम के नहीं. तो भाई उनको चुनता कौन है! आप और हम ना! और तो और हम उनको चुन
कर भूल और जाते हैं. विधायक कुछ करे ना करे,जनता चुप्प. आज तक इस शहर के
इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ जब आम मतदाता ने किसी विधायक के पक्ष या
विपक्ष में कोई आवाज उठाई हो. कुछ करे तो उसको शाबाशी नहीं देनी और कुछ ना
करे तो लानत नहीं भेजनी. हम तो चुन कर भूल जाते हैं. कोई सही बात करे भी
तो उसकी आवाज में आवाज नहीं मिलानी. यह किसी का कसूर नहीं. यहां का कल्चर
ही ऐसा है. अब भी ऐसे ही होना है. किसको याद रहेगा कि जमींदारा पार्टी ने
इस क्षेत्र को डबल डेकर नहर बना कर देने की बात कही है. ये भी भला कौन याद
रखेगा कि इसी पार्टी ने पाक प्रधानमंत्री से मिलकर 2014 में हिन्दुमलकोट
बॉर्डर खुलवाने का वादा किया है. हम तो कभी उन विधायकों के सामने ही नहीं
बोले जो पूरा दिन नगर की सड़कों पर पैदल घूमते मिल जाया करते थे. उनको भी
कुछ नहीं कहा जो कई दशक से नगर को चंढीगढ़ का बच्चा बनाने के सपने दिखाते
रहे हैं. फिर नए को तो कहने की हिम्मत ही किसकी होगी. वह भी उसे जो ना तो
गंगानगर में रहता है और ना उन तक सीधे किसी की अप्रोच है.अभी तो विधायक बने
हैं सम्भव है वे जनता से सीधा संवाद रखने का कोई जरिया बनाएं.वैसे हमारी
जनता इस बात की परवाह भी नहीं करती. क्योंकि हम तो चुन कर भूल जाते हैं. आज
तक किसी को कुछ भी नहीं कहा. अब क्या कहेंगे. हमें काम भी क्या हैं जो
उनको पास जाएं. वैसे आपको बता दें कि जो पहले दो विधायक कांग्रेस के रहे.
तब प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता थी. 1962 में निर्दलीय केदारनाथ विधायक
चुने गए थे. उसके बाद भी वे दो बार चुने गए. तब प्रदेश में कांग्रेस सरकार
थी और हमारे विधायक दूसरी पार्टी के. 1977 ,1980 में उसी पार्टी का विधायक
चुना गया जिसकी सरकार बनी. 1985 में फिर विधायक किसी और पार्टी का और
सरकार कोई और. 1990 में यहां का विधायक सत्तारूढ़ पार्टी का था. 1993
में गंगा घर चल के आई.हमें ऐसे व्यक्ति को विधायक चुनने का मौका मिला जिसे
मुख्यमंत्री बनना था. हमने उसे तीसरे नंबर पर धकेल दिया. 1998 में हमारा
विधायक सत्तारूढ़ पार्टी का था. जो मंत्री भी रहा. 2003 में भी यही स्थिति
थी. बीजेपी का विधायक और सरकार भी इसी पार्टी की. 2008 में फिर उलटा.
विधायक बीजेपी का और सरकार कांग्रेस की.इस बार तो और भी अलग हो गया. विधायक
जमींदारा पार्टी की. आईपीएस की बीवी और सरकार बीजेपी की. हम फिर चुप
रहेंगे. क्योंकि हमें तो विधायक को चुन कर भूल जाने की आदत है.
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