Saturday, December 14, 2013

आप की ईमानदारी देश पर अहसान नहीं है


श्रीगंगानगर-किसी काम में,बात में  मीन मेख निकलना सबसे आसान है. करना कुछ भी नहीं.  बस ऊँह बोल के  गर्दन ही तो उधर घुमानी है झटके से. दूसरे की बात हो या काम हो गया उसका तो बंटाधार. देता रहे सफाई. जैसे मैदान में क्रिकेट खेल रहे खिलाडियों के खेल पर हम लोग टिपण्णी करते हैं, बेकार खेला,. ऐसे नहीं वैसे शॉट मारना चाहिए था. राम लाल की जगह शाम लाल से बोलिंग करवाते तो जीत जाते. ऐसी ही सौ प्रकार के कमेंट्स. मैदान के बाहर बात करने में जाता क्या है. मगर जब मैदान में खेलना पड़े तो पता लगे  कि कैसे खेला जाता है. यही मीन मेख निकालने का काम अरविन्द केजरीवाला एंड कंपनी मतलब आप  कर रही है.  महीनों हो गए इनको ऐसा करते हुए. जनता ने सोचा इनको दो मौका. ये बढ़िया चलाएंगे सरकार. क्योंकि हर बात पर नुक्ता चीनी. तो तुम संभाल लो भाई. सुना है और पढ़ा है कि आप  की टीम ईमानदार है. होगी! उनकी क्या किसी की ईमानदारी भी ना तो देश पर कोई अहसान है और ना किसी दूसरे पर. ईमानदार होना ही चाहिए इंसान को.  लेकिन ईमानदारी का ये मतलब तो नहीं कि आप घमंड में चूर हो जाओ. ईमानदारी के गुरुर में रहो. ईमानदारी का नशा आपके सर चढ़ कर बोलता रहे और जनता सुनती रहे. वह सब जो आप बोलते हैं. कितने दिन हो गए जनता की निगाह आप पर टिकी है. पूरा देश आप की तरफ देख रहा है. आप की वाह वाह हो रही है. मगर ये तो कोई राजनीति नहीं है कि ना समर्थन देंगे ना लेंगे. जनता ने जो दिया उसको सर माथे लगा चुचकारो. उसको  थैंक्स कहो. जैसी स्थिति है उसके अनुसार आगे कदम बढ़ाओ. ये क्या मजाक है कि ना खुद सरकार बनानी ना किसी को बनाने  देनी. जनता  ऐसे ही चाहती है तो ऐसे ही काम करके दिखाओ. रोज हर किसी की मीन मेख निकालने वाले आप को जब जनता ने मौका दिया तो पलायन के बहाने खोजने लगे. आप जब से उप-राज्यपाल से मिल के आए हैं तब से तो हालत ख़राब ही हो गई. कहते हैं बीजेपी-कांग्रेस के प्रस्ताव को जनता के बीच लेकर जाएंगे. दिल्ली के विभिन क्षेत्रों में सभा कर जनता से सरकार बनाने के बारे में पूछेंगे. लो कर लो बात. श्रीमान जी आपकी पार्टी को जो सीट मिली है वह जनता का  जवाब ही तो है.अब नए जनमत की क्या जरुरत पड़ गई.जनता ने  तुम्हे चुनकर जिम्मेदारी दे दी. अब बनाओ सरकार या बैठो विपक्ष में.जो निर्णय करना है करो विवेक से.कुछ करके दिखाओ. फिर जाना जनता के बीच.आप को जनता का निर्णय मिल जाएगा.  आप ने एक बार जनता के सामने काम किया तो उसने सर आँखों पर बैठाया. अब जो काम सौंपा है उसे शुरू करो. यूं बार बार जनता के बीच में जाने का मतलब कि आप में   आत्म विश्वास नहीं है. आप अपने आप को सरकार चला पाने के योग्य नहीं समझते.कहीं ऐसा ना हो कि जनता आप को ऐसा कर दे कि फिर कभी कोई उसे याद ही ना करे.लोकतंत्र में जनता की भावनाओं का सम्मान ही सबसे बड़ी बात है.परन्तु आप को पता नहीं क्या हुआ है. 

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