श्रीगंगानगर-भाभी जी को पूजा की डलिया लेकर सीधी गली से आते
देखा. रुक गया. पास आए तो पूछ लिया,आज इधर
किधर से? आज
कार्तिक शुरू हो गया ना,इसलिए
दुर्गा मंदिर में गई थी. क्योंकि भवन में [गली के छोटे मंदिर] पथवारी नहीं है
सींचने के लिए,भाभी
ने बताया. भाभी रोज गली के मंदिर में ही जाया करती थी. आज दूसरे मंदिर में गई थी.
बात तो मामूली थी. लेकिन मां की स्मृतियां दिलो दिमाग में चली आईं. पीछे लौट गया अपने आप. मां होती
तो दो तीन दिन पहले ही पता लग जाना था कि कार्तिक शुरू होने वाला है. हालांकि अपने
लिए तो सब एक से ही हैं. लेकिन मां के लिए कार्तिक का बहुत महत्व था. सुबह जल्दी
उठाना. ठन्डे पानी से स्नान कर अँधेरे ही घर से मंदिर चले जाना.यह ध्यान रखते हुए
कि दरवाजा खुलने बंद होने से कोई आवाज न हो ताकि किसी की नींद में खलल ना पड़े. बस, जाते
हुए यह बोलना, मैं जा
रहीं हूं. एक कार्तिक ही क्यों मां के रहते हर छोटा बड़ा त्यौहार,वार, अच्छा,बुरा
ग्रह नक्षत्र सब कुछ मालूम हो जाता था. कल फलां दिन है सेव मत करना. परसों ये दिन
है इसलिए वो नहीं करना. आज ही कर लो. बहु,बेटी को भी बता देना कि इस सप्ताह में क्या बार
त्यौहार आने है. छोटे से लेकर बड़े सब को ज्ञात हो जाता था. वैसे भी उनके काम से
संकेत मिल जाते थे. कभी कोई धागा रंगते हुए. कभी किसी कागज पर कोई आकृति उकेरते हुए. कभी किसी
लाल-पीले कपड़े की तह जमाते समय. किसी आले में कोई दीपक जलना. बाहर देहरी पर पानी
डालना. लेकिन अब वो बात कहाँ! बुजुर्गों के साथ ही ये सब विदा हो रहा है. अच्छे,बुरे
वार,घडी,नक्षत्र कितनी ही ऐसी परम्पराएं उनके साथ चली गईं. जो
सदियों तक बुजुर्गों से अगली पीढ़ी तक पहुंचती रहीं हैं. बच्चे के जन्म से लेकर
उसकी शादी तक की सभी रस्में. नवजात बच्चे
की छोटी छोटी बिमारियों को दूर करने के आसान नुस्खे.बच्चे के अधिक रोने का टोटका
तो उसकी नजर उतारने का टोना. सब के सब घरों से गायब हो गए. अगर कहीं किन्ही परिवारों में ये सब हैं तो वे
बहुत अमीर हैं.लेकिन उनको भी विदा होना है. क्योंकि आज की पीढ़ी को मतलब ही नहीं इन
सब बातों से. वे आधुनिक हो चुके हैं. उनको ये सब नहीं भाता, लेकिन
मज़बूरी तब सामने आती है जब कोई बार,त्यौहार घर में आता है. कोई सामाजिक प्रोग्राम करना
होता है. तब याद आती है मां जी की. फिर ननद,बड़ी से बड़ी जेठानी,खानदान की बुजुर्ग महिला से पूछेंगे?जी,ये
कैसे होगा? कैसे
करते हैं अपने घर में?बात
केवल कार्तिक की नहीं. असल में तो आजकल बहु,बेटी,युवा दादा,दादी,नाना,नानी के पास बैठना तक पसंद नहीं करते. जबकि उनके पास
सुबह से रात तक और जागने से लेकर सोने तक की बहुत सी काम की बात हैं. किस बार,त्यौहार
पर क्या क्यों किया जाता है,उसका जवाब है. बहुत से घरों में बहु बेटियों ने अपने
बुजुर्गों से पूछ कर लिख लिया सब कुछ. ताकि एक पीढ़ी का ज्ञान दूसरी पीढ़ी तक
पहुंचे. बेशक जमाना कितना भी आधुनिक हो गया हो लेकिन आज भी घरों में हर प्रकार की
सामाजिक रस्मों रिवाज निभाई जातीं हैं. बस फर्क इतना है कि आज इधर उधर से पूछ कर,इन्टरनेट
पर तलाश कर यह सब किया जाता है. बुजुर्गों के रहते तो पूछना ही नहीं पड़ता था. सब
अपने आप हो जाता. अब बुजुर्गों की संख्या कम हो रही हैं. जो अब बुजुर्ग होंगे उनको
गूगल,फेसबुक,ट्विटर
के बारे में तो बहुत ज्ञान होगा लेकिन उन बातों का नहीं जो हमें जड़ों से जोड़े रखती
थी किसी ना किसी बार त्यौहार के बहाने.
परिवार को इकठ्ठा कर लिया करती थी कभी किसी बहाने तो कभी किसी बहाने. हम बहुत दूर
आ गए. बुजुर्गों से भी और अपनी परम्पराओं से भी.
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