श्रीगंगानगर- शादी के बाद पहली करवा चौथ। हल्की मीठी ठंड। पत्नी तड़के उठी। बरतनों की खटर पटर हुई। अलसाए पति ने पूछ लिया,”क्या हुआ इतनी जल्दी?” पत्नी पंजबान थी। उसी स्टाइल में जवाब दिया, “तेरा ई मरना कड़ दी पई आं।“ पति ऑफिस जाने के लिए तैयार हुआ। पत्नी को लुभाने वाली शर्ट पहन ली। देखा तो एक बटन टूटा हुआ। पत्नी से बटन लगाने को कहा। सोचा फिल्मी हीरोइन की तरह बटन लगाएगी। धागा मुंह से तोड़ेगी। रोमांस हो जाएगा। किन्तु ख्वाब पर करवा चौथ का व्रत गिर गया। पत्नी बोली,”आज मेरा व्रत है। सुई हाथ में नहीं लेनी। या तो खुद लगा लो या दूसरी शर्ट पहन लो। तुम भी ना मुझे तंग करने के बहाने ढूंढते हो। तुम्हें पता होना चाहिए मेरा व्रत है।“ करवा चौथ के व्रत के दिन सबसे अधिक दुर्दशा किसी प्राणी की होती है तो वह है पति। मीडिया चाहे किसी भी प्रकार का हो,इस दिन या इससे पहले केवल पत्नी के बारे में ही लिखता और दिखाता है। उनको खर्च करने के तरीके बताता है। ऐसे सजो। ये खरीदो। ये पहनो। पति कुछ चूँ चपर करे तो पत्नी बोल देती है,ये सब आपके लिए तो कर रही हूं। आपकी लंबी उम्र के लिए। आपकी सेहत के लिए। खुशहाली के वास्ते। सीधे नहीं कहती कि मुझे सारी उम्र सोलह सिंगार करने है। सेहत इसलिए कि कहीं ये मुस्टंडा बीमार हो गया तो पैसे भी खर्च होंगे, सेवा करनी पड़ेगी वह अलग से। खुशहाली! पति खुशहाल तो पत्नी की पो बारह पच्चीस। पति के नाम पर खुद के लिए सब कुछ। यूं लगता है जैसे पति बलि का बकरा हो। तड़के पेट भरा। बाद में सिंगरी। बनी-ठनी कभी उसकी पत्नी से बात की कभी इसकी। खूब उल्लास और उमंग होती है। रात तक भूखी! जैसे ही पति के घर आने का समय हुआ। चेहरे पर भूख के भाव आ गए। पत्नी की ऐसी सूरत देख पति को दया आएगी ही। क्योंकि पति तो बचपन से ही दयालु किस्म का जीव होता है। वह भी तभी भोजन करेगा जब पत्नी करेगी। मेरा एक दोस्त तो पत्नी के लिए खुद भी करवा चौथ का व्रत रखता है। मजबूरी है। क्योंकि उस दिन वह खाना बनाने से इंकार कर देती है। सजावट बिगड़ने का डर जो होता है। दूसरा, शाम को पत्नी को उसकी हेल्प मिल जाती है। पति की इतनी कुर्बानी के बावजूद हर कोई पत्नियों की बल्ले बल्ले करता है। विश्व में शायद ही कोई उदाहरण हो जिसमें पति नामक जीव की आर्थिक,मानसिक प्रताड़ना के बावजूद उसे ये कहा जाए कि मेरी जां, ये सब किसके लिए! आप ही के लिए तो है! वैरी गुड। वैरी नाइस! ये तो वही बात हुई, जो कुछ पड़ा,रखा ढका सब आपका,लेकिन हाथ किसी को नहीं लगाना। जिनकी पत्नियाँ कमाती हैं उनके बारे में कुछ नहीं। वे तो बस चुप चाप देखते हैं। बोले तो यही जवाब मिलेगा,”आपसे तो कुछ नहीं मांगा। खुद कमाती हूं।“ हो गई करवा चौथ। इसे ठीक इस प्रकार समझा जा सकता है। पत्नी सरकार है और पति जनता। सरकार जनता के कल्याण के नाम से जनता को ही भांति भांति से लूटती है ना! बस तो! सेम टू सेम। दो लाइन पढ़ो... करवा चौथ की अकड़ दिखाएगा, तो बची खुची शान से भी जाएगा,इसलिए हे पति! शर्म ना कर, रोज की तरह आज भी पत्नी से डर।
Friday, November 2, 2012
करवा चौथ पर बेबस और मजबूर होता है पति
श्रीगंगानगर- शादी के बाद पहली करवा चौथ। हल्की मीठी ठंड। पत्नी तड़के उठी। बरतनों की खटर पटर हुई। अलसाए पति ने पूछ लिया,”क्या हुआ इतनी जल्दी?” पत्नी पंजबान थी। उसी स्टाइल में जवाब दिया, “तेरा ई मरना कड़ दी पई आं।“ पति ऑफिस जाने के लिए तैयार हुआ। पत्नी को लुभाने वाली शर्ट पहन ली। देखा तो एक बटन टूटा हुआ। पत्नी से बटन लगाने को कहा। सोचा फिल्मी हीरोइन की तरह बटन लगाएगी। धागा मुंह से तोड़ेगी। रोमांस हो जाएगा। किन्तु ख्वाब पर करवा चौथ का व्रत गिर गया। पत्नी बोली,”आज मेरा व्रत है। सुई हाथ में नहीं लेनी। या तो खुद लगा लो या दूसरी शर्ट पहन लो। तुम भी ना मुझे तंग करने के बहाने ढूंढते हो। तुम्हें पता होना चाहिए मेरा व्रत है।“ करवा चौथ के व्रत के दिन सबसे अधिक दुर्दशा किसी प्राणी की होती है तो वह है पति। मीडिया चाहे किसी भी प्रकार का हो,इस दिन या इससे पहले केवल पत्नी के बारे में ही लिखता और दिखाता है। उनको खर्च करने के तरीके बताता है। ऐसे सजो। ये खरीदो। ये पहनो। पति कुछ चूँ चपर करे तो पत्नी बोल देती है,ये सब आपके लिए तो कर रही हूं। आपकी लंबी उम्र के लिए। आपकी सेहत के लिए। खुशहाली के वास्ते। सीधे नहीं कहती कि मुझे सारी उम्र सोलह सिंगार करने है। सेहत इसलिए कि कहीं ये मुस्टंडा बीमार हो गया तो पैसे भी खर्च होंगे, सेवा करनी पड़ेगी वह अलग से। खुशहाली! पति खुशहाल तो पत्नी की पो बारह पच्चीस। पति के नाम पर खुद के लिए सब कुछ। यूं लगता है जैसे पति बलि का बकरा हो। तड़के पेट भरा। बाद में सिंगरी। बनी-ठनी कभी उसकी पत्नी से बात की कभी इसकी। खूब उल्लास और उमंग होती है। रात तक भूखी! जैसे ही पति के घर आने का समय हुआ। चेहरे पर भूख के भाव आ गए। पत्नी की ऐसी सूरत देख पति को दया आएगी ही। क्योंकि पति तो बचपन से ही दयालु किस्म का जीव होता है। वह भी तभी भोजन करेगा जब पत्नी करेगी। मेरा एक दोस्त तो पत्नी के लिए खुद भी करवा चौथ का व्रत रखता है। मजबूरी है। क्योंकि उस दिन वह खाना बनाने से इंकार कर देती है। सजावट बिगड़ने का डर जो होता है। दूसरा, शाम को पत्नी को उसकी हेल्प मिल जाती है। पति की इतनी कुर्बानी के बावजूद हर कोई पत्नियों की बल्ले बल्ले करता है। विश्व में शायद ही कोई उदाहरण हो जिसमें पति नामक जीव की आर्थिक,मानसिक प्रताड़ना के बावजूद उसे ये कहा जाए कि मेरी जां, ये सब किसके लिए! आप ही के लिए तो है! वैरी गुड। वैरी नाइस! ये तो वही बात हुई, जो कुछ पड़ा,रखा ढका सब आपका,लेकिन हाथ किसी को नहीं लगाना। जिनकी पत्नियाँ कमाती हैं उनके बारे में कुछ नहीं। वे तो बस चुप चाप देखते हैं। बोले तो यही जवाब मिलेगा,”आपसे तो कुछ नहीं मांगा। खुद कमाती हूं।“ हो गई करवा चौथ। इसे ठीक इस प्रकार समझा जा सकता है। पत्नी सरकार है और पति जनता। सरकार जनता के कल्याण के नाम से जनता को ही भांति भांति से लूटती है ना! बस तो! सेम टू सेम। दो लाइन पढ़ो... करवा चौथ की अकड़ दिखाएगा, तो बची खुची शान से भी जाएगा,इसलिए हे पति! शर्म ना कर, रोज की तरह आज भी पत्नी से डर।
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3 comments:
:)
:):) अब हर पति इतना बेचारा भी नहीं होता :)
thanks aal of u
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