सलाम....सलाम...सलाम
शब्दों के साथ छपे चित्र मेँ दिखाई देने वाले
इस परिवार को जानता नहीं। पहचानता नहीं। समझता भी नहीं। बस, यूं ही सफर मेँ मिल गए। ट्रेन मेँ चढ़ने के कुछ मिनट
के बाद महिला मेम्बर वीडियो कॉलिंग से घर के किसी मेम्बर को यह बताने और दिखाने
लगी कि कौन, कहां और कैसे बैठा है। आश्चर्य हुआ, लेकिन मोबाइल के इस दौर मेँ सब संभव था, यह सोच, देखता रहा। यह महिला हर मेम्बर का ध्यान रख
रही थी। दो बुजुर्गों को मम्मी, डैडी बोलने वाली महिला ने उनको बैठाने, बर्थ पर चढ़ाने, लिटाने के बाद खाने को दिया, दवा दी और मुस्कुराते हुए अपनी बर्थ पर
लेट मोबाइल मेँ फेसबुक या व्हाट्सएप मेँ कमेंट्स पढ़ और मुस्कुराने लगी। उसने ‘डैडी’, ‘मम्मी’ को बताया भी कि किसने क्या लिखा। मैंने मेरे पास बैठे बुजुर्ग से पूछा, आपकी बिटिया है क्या? ना, मेरी नू [बहू]
है। बेटी जैसी बहू। उसके बाद तो कई घंटे के सफर मेँ इस बहू के व्यवहार, आचरण, परिवार के प्रति उनके संस्कार देख उनको
मन ही मन सलाम किया। बहू की किसी बात मेँ कोई बनावट नहीं दिखी और ना महसूस हुई।
परिवार के मेंबर्स मेँ इतना कोर्डिनेशन, स्नेह, आपसी समझ, अपनापन कि उसे शब्दों मेँ नहीं बताया जा सकता। इस परिवार
का लड़के ने पहली बार ट्रेन मेँ सफर किया था। बुजुर्ग 40 साल बाद ट्रेन मेँ बैठे थे। मैं, नीलम और बहिन शशि हरिद्वार पहुँच कर भी बहू की तारीफ करते
रहे। परिवार के आपसी स्नेह की चर्चा कर उनसे प्रेरणा लेने की बात करते रहे। उनके 5
मेंबर्स से किसी यात्री को शायद ही कोई असुविधा हुई हो। और वापसी मेँ ऐसा परिवार
मिला, जिसमें आपसी कोर्डिनेशन तो होगा, लेकिन उनको केवल अपनी सुविधा से मतलब था, दूसरों को असुविधा हो तो हो। ईश्वर करे पहले वाले परिवार
को खूब खूब यश, वैभव, शांति, सुकून, आनंद, सुख मिले और वे
हवाज़ जहाज के मालिक भी बनें तो ट्रेन मेँ यात्रा करें ताकि दूसरों को उनके व्यवहार
से प्रेरणा लेने का मौका मिले। दूसरे परिवार को भी यह सब मिले, लेकिन वे ट्रेन मेँ किसी को भी ना मिले। पहले वाले परिवार
को सलाम, सलाम सलाम, खास कर बहू को, जो एक उदाहरण है मेरी नजर मेँ। दूसरे परिवार को नमस्कार बस। अभिनंदन उस कोख का जिसने
ऐसी बेटी को जन्म दिया और धन भाग उस परिवार के जहां वो बेटी बहू बन के गई।
No comments:
Post a Comment