श्रीगंगानगर-“अग्रवाल लावारिस
हैं। अग्रवालों की शासन प्रशासन में कोई पूछ नहीं। अग्रवालों का नेतृत्व होना
चाहिए। बीजेपी-कांग्रेस पर टिकट के लिए दवाब बने। अग्रवाल को विधायक बनाना है।
अग्रवाल एक दिन सीएम बने। अग्रवाल ये बने....अग्रवाल को वो बनाना है...” जैसे उत्साह जनक
वाक्यों ने समाज को झकझोरा। चर्चा होने लगी। बैठकों में अग्रवाल जुटने लगे। नई चेतना आई...उम्मीद हुई। नए सपने
आंखों में जन्म लेने लगे। उनको पूरा करने के लिए समाज का हर तबका एक मंच पर आया भी।
ये कोरी बातें नहीं थीं। केवल कागजी बयान नहीं थे। अपने सरीके भाई बंशी धर जिंदल
की अंगुली पकड़ कर पहली बार सार्वजनिक रूप से अग्रवाल समाज में आए बी डी अग्रवाल के
धन और समाज की टीम की मेहनत से समाज एकत्रित होने लगा। परिणाम स्वरूप 2010 और 2011
में अग्रसेन जयंती पर समाज ने अपना जलवा दिखाया भी। समाज बी डी अग्रवाल के झंडे तले आने लगा। सभी का
ख्वाब एक ही था ...राजनीतिक नेतृत्व। सत्ता
की बात होने लगी।
राजनीति में अपनी ताकत दिखाने की बात होने लगी। विधानसभा चुनाव के लिए टिकट पर हक
बुलंद किया गया। 2012 के आते आते बी डी अग्रवाल ने दिशा बदल ली। अग्रवाल समाज को ताकतवर बनाने का घोष करने वाले बी डी अग्रवाल सभी
जाति-धर्म के गीत गाने लगे। दूसरी जतियों को ऐसे गले लगाया जैसे सालों से कोई
बिछड़े प्रेमी मिले हों। समाज अवाक रह गया। बोले कौन! धर्म संकट सामने आ खड़ा हुआ। विरोध की ताकत नहीं। जो असल बात
थी वह कब गायब हो गई किसी को पता ही नहीं लगा। जो लक्ष्य अग्रवाल समाज के लिए तय किए गए थे वे
बी डी अग्रवाल के हो गए।जो सपना वे अग्रवालों को दिखा रहे थे उसमें उन्होने अपने आप को,बेटी और पत्नी को
फिट कर दिया। मतलब ये कि बी डी अग्रवाल ही अग्रवाल समाज हो गया और अग्रवाल समाज बी
डी अग्रवाल। ठीक वैसे ही जैसे श्री कृष्ण कहते हैं....मैं सब में हूँ और सब
मुझ में हैं। और अब तो नए नए इतिहास लिखे जाने लगे। अपने आप को आन बान शान का
प्रतीक बताने वाले अग्रवाल क्या करें....पहले भी कुछ नहीं कर
सके। और अब भी करने के लिए कुछ बचा नहीं सिवाए हां,हां करने के। समाज
की परिभाषा कोई ताकतवर आदमी कब बदल दे कोई नहीं जानता।
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