श्रीगंगानगर। देव धाम मेँ भव्य
और दिव्य मंदिर का निर्माण ही चुका है। यह है माँ चिंतपूर्णी दुर्गा मंदिर। यह बना
है हनुमानगढ़ रोड पर स्थित अग्रवाल ट्रस्ट के पीछे। इसका निर्माण भी ट्रस्ट ने ही किया
है। मंदिर मेँ देवी माँ , हनुमान जी और
विष्णु लक्ष्मी के प्रतिमाओं के साथ शिव परिवार की स्थापना की जा चुकी है। प्रतिमाओं
की प्राण प्रतिष्ठा 30 नवंबर को सुबह होगी। बताते हैं ही कि जिस दिन मंदिर के लिए नींव
की खुदाई हुई उस दिन काले नाग का जोड़ा निकला। उनको यह कह सुनसान क्षेत्र मेँ छोड़ दिया
गया कि मंदिर बन जाए तब आ जाना। अब जब मंदिर का निर्माण हो चुका। प्रतिमाओं की प्राण
प्रतिष्ठा के लिए अनुष्ठान हो रहा है, तब काले नाग का यह जोड़ा
फिर आ गया। यह जोड़ा एक कमरे मेँ है। उनके सामने दूध का कटोरा रखा गया है। चार से पाँच
फीट साइज के इस जोड़े के कारण इस मंदिर को दिव्य माना जा रहा है। निर्माण भव्य तरीके
से हुआ है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही आनंद की अनुभूति होती है। इसका मुख्य द्वार
उत्तर की ओर है जबकि एक द्वार देव धाम वाली गली मेँ पूर्व की ओर भी है। संभवतः यह मंदिर
नगर का सबसे भव्य मंदिर है। देव धाम उस गली के लिए लिखा गया है जहां बालाजी धाम, गणेश मंदिर, शनि मंदिर, करणी माता
का मंदिर है। देव धाम सबसे उचित नाम है। क्योंकि श्रीगंगानगर मेँ एक गली मेँ सबसे अधिक
मंदिर यहीं है। भीड़ भी खूब रहती है।
कार्तिक पुर्णिमा पर मंदिरों मेँ दीप माला
श्रीगंगानगर। कार्तिक मास की पुर्णिमा
के मौके पर रात को मंदिर, मंदिर दीपों की
रोशनी से जगमग हो गए। हर मंदिर मेँ महिलाओं ने दीपमाला की। कितनी ही महिलाओं ने तो
365-365 दीप जलाए। किसी मंदिर मेँ दीपों से स्वास्तिक बना था तो कहीं ॐ। मंदिरों मेँ
खूब रौनक थी। दीपों की कतारों के कारण मंदिरों की शोभा बहुत अधिक आभा युक्त दिखी। अग्रसेन
नगर मेँ तो अनेक महिलाओं सड़क किनारे दीप जला रहीं थीं। शाम को तीन पुली पर महिलाओं
की अपार भीड़ थी। वहाँ भी दीपक जलाए गए। महिलाओं ने ईंट मिट्टी से घर बनाए। सजाये। उसमें
अन्न उगाया। नहर किनारे मेला लगा हुआ था। ऐसा ही दृश्य दिन भर श्मशान घाट मेँ रहा।
महिलाओं के जत्थे दीप लेकर आते रहे। हर मूर्ति के सामने दीप जलाया। यमराज और चित्रगुप्त
की खास पूजा अर्चना की। यमराज से अकाल मौत ना देने की और चित्रगुप्त से अच्छे कर्म
करवाने की प्रार्थना की। नगर मेँ गुरूपर्व की भी खूब धूम रही। कोई गली, सड़क ऐसी नहीं थी जहां विशेष रोशनी ना की गई हो। सुबह से ही सब एक दूसरे को
बधाई दे रहे थे।
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