श्रीगंगानगर। आमीर खान! मैं तो
आपको राजा हिंदुस्तानी जान के याद करता रहा। अपने मुल्क का सरफरोश समझता रहा। मगर तुम
तो गजनी हो गए। भूल गए सब। इस देश मेँ मिला रुतबा, प्रशंसक, मान, सम्मान, पैसा, प्यार, लाड, दुलार करोड़ों की दुआएं जैसे अनमोल खजाने गजनी को कहां याद रहे। देश की मिट्टी, संस्कृति, संस्कार सहिष्णुता जैसी एकता की महक सब भूल गए। अपने मुस्लिम होने का लगान इस देश की संस्कृति, आन, बान, शान भाईचारे से वसूल करने का इरादा है क्या? इरादा क्या, वसूल कर ही रहे हो। हालांकि आप देश विदेश
की मीडिया की नजरों मेँ हो, मेरी और स्थानीय अखबारों की उनके सामने क्या बिसात, लेकिन शब्द दूर दूर तक जाते हैं। लिखे शब्द इतिहास बनते हैं। सहेज कर रखे
जाते हैं। खामोश रहें तो सहिष्णु और जवाब दें तो असहिष्णु का लेवल लगा
देते हैं आप जैसे महान आदमी। दिल चाहता है एक बार फिर इस देश मेँ रंग दे बसंती की तान
छेड़ दी जाए। लेकिन तारे जमीं पर लाने की कोशिश करते थ्री इडियट्स की याद आ जाती है
और मन उल्लास, आनंद से भर झूमने लगता है। कलाकार तो रंगीला होता है, तुम पीके हो गए। वही पीके, जो यह साबित करता नजर आया कि पाकिस्तानी मुसलमान पूरी तरह पाक है। और हिंदुस्तान
के साधू संत चोर, झूठे, मक्कार। देश ने
आपकी इस बात को भी सिर आँखों पर लिया । आँखों को नम किया। तालियाँ बजाईं। तारीफ की
भावपूर्ण दृश्य की। क्योंकि दर्शक सहिष्णु थे । उन्होने
उसे एक नाटक के रूप मेँ लिया, देखा, ताले बजाई और आपको साधुवाद दिया। क्योंकि देश मेँ सहिष्णुता है और रहेगी। सब उसे फिल्म का सीन समझते रहे, ये तो अब समझ आया कि पीके के पीछे आमीर खान था। उसकी सोच थी। उसके
अंदर का धर्म था। जनाब आमीर खान, हिंदुस्तान मेँ सहिष्णुता केवल एक शब्द मात्र नहीं है। यह संस्कार है। संस्कृति है। इसे विकृति मेँ बदलने
की कोशिश अब होने लगी है। सहिष्णुता है तभी तो हिंदुस्तान है। जैन हैं। बौद्ध हैं। ईसाई हैं।
सिख हैं। मुस्लिम हैं। और साथ है इन सबका हिंदुस्तान। गजनी को याद हो ना हो, लेकिन सरफरोश
को तो याद रखना चाहिए कि मेरी फिल्मों को भी वैसा ही प्यार मिला, जैसा दूसरे कलाकारों की फिल्मों को मिला। परंतु आपने तो सब कुछ नजर अंदाज
कर दिया। आप बालक नहीं। आपको तो ज्ञात ही होगा कि कलाकार का कोई धर्म या जाति नहीं
होती। वह सबका सांझा है। उसे जाति-धर्म के अनुसार वह नहीं मिलता जो आपको मिला। जो मिलता
है, उसकी कला को देख मिलता है। मगर आपने तो अपने आप को एक धर्म
तक सीमित कर, सहिष्णुता की नई मिसाल पेश कर दी दुनिया के सामने। पूरा देश जिसे अपना मान कर उस पर अभिमान
करता था, उसने अपने आप
को एक छोटे दायरे मेँ समेट लिया। आपकी अभिव्यक्ति को सलाम तो करना ही होगा। इसमें भी
कोई शक नहीं कि झूठे धर्म निरपेक्ष आपके स्वर मेँ स्वर मिलाएंगे। झूमेंगे। नाचेंगे, गाएँगे। क्योंकि उनकी जमात मेँ एक और शामिल हो गया। हिंदुस्तान विरोधी मीडिया
आपको फ्रंट पेज से अंदर नहीं जाने देगा। टीवी स्क्रीन से हटाएगा नहीं। सौ प्रकार की
बहस करवा, आपके साथ खड़ा होगा। किन्तु याद रखना जनाब ये सब अपने
कद को छोटा करने जैसा है। सहिष्णुता, सहिष्णुता केवल लिखने, बोलने से नहीं होती। इसे आचरण मेँ भी लाना पड़ता है। मेरे ये शब्द असहिष्णुता की श्रेणी मेँ नहीं रखना। ये केवल आपको आपकी बड़ी हैसियत, बड़ा कद याद
दिलाने के लिए है। गजनी को यह याद दिलाने के लिए है कि वो मंगल पांडे है। दो लाइन पढ़ो-
कदमों की आहट से बच्चे को पहचान लेते
हैं
माँ-बाप ही हैं, जो बिना कहे सब जान लेते हैं।
माँ-बाप ही हैं, जो बिना कहे सब जान लेते हैं।
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