श्रीगंगानगर। गज़ब की बात है। दूसरे
शहर के लोग प्रेरणा ले सकते हैं। सीख सकते हैं इस शहर से। जी, मुरदों का ये शहर कुछ नहीं, बहुत कुछ सिखाने मेँ सक्षम है। क्योंकि मुरदों के इस शहर के श्मशान घाट चकाचक
हैं। दोनों के दोनों। श्मशान घाट की प्रबंध समितियों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
उनके कदमों के निशानों पर चलने की सोच लो। धन्यवाद के पात्र हैं वे व्यक्ति जिनको मुरदों की इतनी अधिक फिक्र है। राष्ट्रपति
नहीं तो स्टेट लेवल के सम्मान के हकदार तो ये हैं हीं। यही हैं वो जिनके पास
दूरदृष्टि है। भविष्यदृष्टा हैं प्रबंध समिति के सभी पदाधिकारी। ये जानते थे कि
हमारा शहर मुरदों का है। ज़िंदों के लिए तो उचित व्यवस्था कर नहीं सकते, इसलिए मुरदों के लिए सब ठीक कर सकें तो पुण्य होगा। यही सोच उन लोगों ने
मुरदों के लिए खास इंतजाम किए हैं। फायर प्रूफ ईंटों से चिता की वेदी निर्मित की
गई है। उसमें एक जाली और दूसरी ट्रे है। जाली मेँ फूल रह जाएंगे और राख़ नीचे ट्रे
मेँ। मुरदे के विश्राम के लिए कई स्थान हैं। एक और बना दिया,
चिता के साथ। सफाई बेहतर है। हरियाली की कोई कमी नहीं। खूब संभाल हो रही है। दोनों
ही श्मशान घाटों मेँ विकास की गंगा बह रही है। बेशक शहर चंडीगढ़ का बच्चा ना बना हो, मगर श्मशान घाट उससे कम नहीं है। मुरदों के लिए इतनी चिंता करने वाले लोग
और किसी शहर मेँ हो ही नहीं सकते। श्मशान घाट के बाहर शहर मेँ आप कैसे भी मुरदे हों। आप मेँ मुरदे जैसी बात हो या
न हो। किन्तु जैसे ही आप मुरदा बन लोगों के कंधों पर श्मशान घाट आओगे, आप बेफिक्र हो जाना। आपको किसी प्रकार की चिंता की कोई आवश्यकता नहीं। सब
कुछ बढ़िया है। शहर से भी बेहतर। बेहतर नहीं कई गुना बेहतर। शहर मेँ जितनी
अव्यवस्था है, उतनी ही अधिक अंदर व्यवस्था है। शहर का
प्रशासन जिंदा लोगों के लिए कुछ करे ना करे, परंतु श्मशान
घाट का प्रशासन मुरदों के लिए सभी व्यवस्था करने के लिए चिंतन करता रहता है। केवल
इसलिए कि जिंदा रहते हुए समस्याओं से दो
चार रहने वाले को मुरदा हो जाने के बाद कोई समस्या ना हो। ज़िंदों की कोई फिक्र
नहीं, मुरदों की इतनी चिंता, ये कहने
वाले दुश्मन है मुरदों के। ऐसे लोगों को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। शहर मेँ
ऐसी ही लोग दंगा करवाते हैं। सॉरी! मुरदों के लिए की गई व्यवस्था लानत नहीं है शहर
के लिए। मिसाल है,
मिसाल । जो इस मिसाल को शहर के लिए
शर्मनाक बताए वह दुश्मन है हमारा। क्योंकि उसे पता ही नहीं शहर के मिजाज का। कई दशकों से इस शहर
का हिस्सा हूँ। इतना सुकून कभी नहीं मिला , जितना आज श्मशान
घाट मेँ पाया। ये चिंता समाप्त हो गई कि मरने के बाद पता नहीं कैसा लगेगा। अच्छा होगा
या सब कुछ सूगला ही होगा, शहर की तरह। परंतु अब ठीक है। शहर
मेँ सब कुछ सही हो ना हो, लेकिन श्मशान घाट मेँ सब सही है।
उधर सब बढ़िया है, जिधर हर मुरदे को जाना ही है। और मुरदे को
चाहिए भी क्या। बस, उसकी मिट्टी ठीक से ठिकाने लग जाए, यही तो चाहता है वह। मुरदा है, इसलिए करना तो उसने
शहर मेँ भी कुछ नहीं, उधर कुछ करने लायक वह रहता नहीं। तभी
तो दूसरे करते हैं,
उनके लिए सब कुछ । शहर मेँ ऐसा हो नहीं
रहा। शहर मुरदों का है, मुरदे क्या करें! जिन पर कुछ करने की
ज़िम्मेदारी है, वे ही
कुछ नहीं कर रहे । इसलिए श्मशान ही ठीक है हमारे लिए। क्योंकि आखिर हम हैं
तो मुरदे ही। तभी तो ये शहर मुरदों का हुआ है। आज दो नहीं कई लाइन पढ़ो—
जीवन
मेँ सुख चाहिए तो चापलूसी करना सीख
केवल
सच ही बोलेगा, तो नहीं मिलेगी भीख।
सब को
अच्छा बोल तू, झूठे, लम्पट, चोर
सारा
जग खामोश है, तू काहे मचावे शोर।
No comments:
Post a Comment