श्रीगंगानगर।
हे देव पुरुष! कलयुग के अवतार! गंगानगर के तारणहार ! महामानव ! शहर के रक्षक! उम्मीद
की किरण, श्रीमान वेदप्रकाश जी जोशी को सादर वंदन। कोई
पापी ही होगा इस नगर मेँ जो आपके नाम का स्मरण
ना करता हो। आपको ना जानने वाला इस लोक का वासी नहीं हो सकता। जो आपके नाम से अंजान
है, समझो, उसको अपना नाम भी नहीं मालूम।
वैसे तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई आज तक आपसे बात करने की। आज पता नहीं कैसे सरस्वती ने कृपा कर दी, आपसे संवाद करने की ताकत दे के। मन भी कहने लगा, कर
ले, कर ले बात, तेरी ज़िंदगी का क्या भरोसा।
ऐसे अवतार बार बार जन्म नहीं लेते। इसलिए हौसला हुआ, आपसे बात
करने का। जानता हूँ आज के दिन आप हीरो हैं मीडिया के। जन नायक भी मान लेते हैं आपको
। मुझे ये भी ज्ञान है कि आप इस शहर की शान हैं। इस कहानी से भी अंजान नहीं हूँ कि
आप लंबे समय से कब्जों के खिलाफ थे। आपको साधुवाद। मुरदों के शहर मेँ कोई तो जिंदा
है। कोई एक तो है, जिसमें पूरे शहर को आगे लगाने का जज्बा है।
कोई मर्द तो है जो छाती ठोक के कहने का साहस रखता है कि यह सब मेरे कारण हुआ। दशकों
से सुन रहा हूँ। गंगानगर को चंढीगढ़ का बच्चा बनाएँगे, बच्चा बनाएँगे।
कहने वालों क्या किया ना किया सबके सामने है, मगर आप ऐसे हैं, जिसने अपनी जर्जर काया के बावजूद इस दिशा मेँ सार्थक पहल की। आप वो हो, जिसको कोई कभी नहीं भूलना चाहेगा। आपके बारे मेँ कम से कम एक चेप्टर तो किसी
कक्षा की किताब मेँ होना ही चाहिए। जिससे बच्चों को प्रेरणा मिल सके आप से। ताकि वे भी शहर के लिए कोई बड़ा सपना देख सकें। चंढीगढ़ का बच्चा आप बना देना
और बच्चे इसे पेरिस बनाने का काम कर दें, बस और चाहिए भी क्या
महाराजा गंगासिंह की आत्मा को। आपने इतना कुछ किया तो यह भी प्लान जरूर किया होगा कि लोग गंदगी मेँ कैसे जिएंगे? महामारी फैली तो मरने वालों को ठिकाने लगाने की युक्ति भी बता दी होगी आपने
कोर्ट को। गौशाला रोड का तो दौरा आपने कर ही
लिया होगा। निश्चित रूप से आपके कलेजे मेँ ठंड पड़ी होगी। होता है, जनाब होता है, जब मन का सोचा हो जाए तो सुकून मिलता
ही है। मेरा तो मानना है कि आपसे पहले गंगानगर का हितचिंतक कोई हुआ ही नहीं। आगे होने
का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। लोगों की बातों मेँ मत आना कि सीवरेज का क्या होगा? नालियाँ नहीं बनी। सड़क कैसे बनेगी? भाड़ मेँ गए लोग और
उनकी समस्या। नेता और अफसरों को ही जन जन की समस्या से कोई लेना देना नहीं तो आप अपनी
जर्जर काया मेँ ये टेंशन मत पालना । आप तो अपने टार्गेट पर नजर रखो। आपने इन शब्दों
को सार्थक किया है कि कौन कहता है आसमान मेँ छेद नहीं होता, एक
पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। आपको सलाम। बस आखिर मेँ इतनी ही गुस्ताखी करूंगा कि
जो मजा बनाने मेँ है वह तोड़ने मेँ नहीं। जो आनंद किसी का घर बसाने मेँ है वह उजाड़ने
मेँ नहीं। जो सुकून लोगों का दर्द बांटने से मिलता है, वह दर्द
बढ़ाने से नहीं मिल सकता। आप कुछ भी कर लो, शहर की इन सड़कों पर
टैंक नहीं निकल सकते। चाहे थड़े तुड़वा दो चाहे, मकान। क्योंकि
जिस 1965 और 1971 मेँ टैंक निकले थे, तब ना तो आज जितने वाहन
थे और ना इतनी जनसंख्या। कोई सड़क ऐसी दिखे तो बताना जिस पर कई कई कारें पार्क ना होती हों, रात और
दिन। आप टैंक की बात करते हो, मैं इसी कॉलम मेँ कितनी ही बार
ये कह चुका हूँ कि रात को नगर की अनेक सड़कों पर फायर बिग्रेड और अंबुलेंस तक नहीं आ
जा सकती। ईश्वर आपको लंबी उम्र दे। और ताकत दे। ताकि आप अपने काम को और आगे बढ़ा सके।
चिंता मत करो, कोई नहीं बोलेगा। ये मुरदों का शहर है। लगे रहो
आप तो। दो लाइन पढ़ो—
मुस्कुराने
की दुआ दे के चलते बने सब
मुस्कुराने की वजह देते तो बात होती।
मुस्कुराने की वजह देते तो बात होती।
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