श्रीगंगानगर। प्रशासन को इस शहर
का कोई थड़ा नहीं छोड़ना चाहिए। सब तोड़ दे। तहस नहस कर दे। थड़े पर सीवरेज, सुवरेज कुछ भी हो, बेशक।
फिर नगर मेँ सीवरेज का काम भी क्या है? ये तो मुरदों का शहर है।
मुरदों को सीवरेज की जरूरत होती ही नहीं। इसलिए प्रशासन जी, देर
मत करो। काम शुरू करो। तोड़ दो थड़े। उसके बाद गली गली, सड़क सड़क
पर सीवरेज का सड़ांध मारता पानी और भिष्टा होगी। सूअरों को ले आना। छोड़ देना। उनकी दिवाली
शानदार हो जाएगी। गली गली, सड़क सड़क क्या, घर घर होगा ये सब। आपको क्या, आप तो बड़ी बड़ी कोठियों
मेँ रहते हैं। जहां ना तो मच्छर पहुँच सकते हैं, ना सड़ांध। आप
बेफिक्र होकर अपना काम करो। कोई कुछ नहीं बोलेगा। मुरदे तो बोल ही नहीं सकते। उनके
लिए कोई आपके खिलाफ क्यों जाए? उन नागरिकों के लिए बोलना भी नहीं
चाहिए, जो मुरदों मेँ सम्मिलित हो चुके हैं। उनके बारे मेँ कोई
संघर्ष क्यों करे, जो अपने आप को मुरदा मान चुके हैं। इसलिए लाओ
जेसीबी और तोड़ दो थड़े। होने दो अराजकता। बनने को गंगानगर को नर्क। कब्जा करने की सजा
तो मिलनी ही चाहिए शहर को। अधिकारियों, कर्मचारी तो बड़ी ईमानदारी
से काम करते हैं। उनको सम्मानित करना हमेशा की तरह। आपको इस बात से कोई लेना देना नहीं
कि नालियाँ बना कर सड़क और मकान की हद आपने तय की। आप तो थड़ों का नाम निशान मिटा देना।
सीवरेज नहीं, बना नहीं बना। मुरदों के लिए सड़क, सीवरेज, पानी, चिकित्सा की कोई
आवश्यकता नहीं। चिंता मत करना प्रशासन जी, कोई नहीं पूछेगा कि
किस कोर्ट के कौनसे आदेश आपकी फाइलों मेँ क्यों पड़ें हैं? मुरदों
को इनसे क्या मतलब। कब्जे तो लोग खुद तोड़ देंगे, आप तो बस थड़े
तोड़ने के काम मेँ लगाओ अपने आप को । ऐसा मौका क्या पता फिर मिले ना मिले। ना जी ना!
किसी नेता ने भी जनता के साथ नहीं आना। राधेश्याम गंगानगर की रणनीति बिलकुल ठीक है।
खामोश! पूरी तरह खामोश! जिसको ज़िम्मेदारी दी, उससे बात करो। मुझे तो सरकार ज़िम्मेदारी देगी, तब विचार
करूंगा। विधायक कामिनी जिंदल की पॉलिसी भी गलत नहीं कह सकते। हो गया खेल, एक बार। दूसरी बार ना बनना है और ना किसी ने बनाना है। इसलिए क्यों टंटा करें
बोलने का। फिर, बोल के हिसाब से पूरा पूरा तोलने का टंटा । अच्छा
है, चुप रहें। सभापति अजय चान्डक को पता ही नहीं कि सभापति होने
का अर्थ क्या है? जब उनको पता ही नहीं तो फिर उनकी काहे की नीति
और क्या रणनीति। ऐसे मेँ बोले भी तो क्या! एक चुप सौ को हरावे। सांसद निहाल चंद जी
को मोदी जी ने बड़ी ज़िम्मेदारी दे रखी है। उस ज़िम्मेदारी के सामने गंगानगर क्या है!
कुछ नहीं। कांग्रेस नेता विपक्ष मेँ हैं। उनका तो काम ही हल्ला मचाना होना चाहिए, वे भी शांत हैं। उनको क्या पड़ी, बीच मेँ आने की। नगर
की जनता! कौनसी जनता! वह जो मुरदों मेँ शुमार
है या फिर वह जो केवल बात करना जानती है, इधर उधर बैठ कर। करना
कुछ नहीं। जनता सोचती है हमने ज़िम्मेदारी सौंप
दी, पार्षद, विधायक और सांसद को। वे करें शहर की चिंता। पार्षद कहते हैं कि हमने सड़क
के लिए धरना दिया जनता नहीं आई, अब हम क्यों आवें। तो प्रशासन
जी, आपको फिक्र की कोई जरूरत नहीं। आप तो बस काम शुरू कर दो।
एक भी थड़ा बचा तो ये सरकार का अपमान होगा। आपको इधर लगाने के सरकारी निर्णय पर सवालिया
निशान लग जाएगा। मेरी सुनो तो, लग जाओ। थड़े तोड़ने मेँ। कब्जे
तो हम तोड़ देंगे। दो लाइन पढ़ो—
सफर अपने को तू जारी रख
किसी से मिलने की तैयारी रख,
इबादत कर ना कर, तेरी मर्जी
बस खुदा से थोड़ी सी यारी रख।
किसी से मिलने की तैयारी रख,
इबादत कर ना कर, तेरी मर्जी
बस खुदा से थोड़ी सी यारी रख।
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