श्रीगंगानगर-जिले के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में कम से
कम एक एक राजनेता ऐसा है जिसे हर हाल में चुनाव लड़ना ही है। ऐसे महानुभाव कांग्रेस
में भी हैं और बीजेपी में भी। इनको पार्टी टिकट दे तो वैल एंड गुड....ना दे तो और भी बढ़िया।
चुनाव से तो पीछे हटना ही नहीं। तो श्री गंगानगर से शुरू करते हैं।
श्रीगंगानगर से शुरू करना है तो राधेश्याम गंगानगर का नाम लिखना ही पड़ेगा। 1977 के
बाद कौनसा विधानसभा का चुनाव था जिसमें राधेश्याम जी नहीं थे। 2008 में टिकट
नहीं मिली तो पार्टी बदल ली। 2013 में गड़बड़ हुई तो निर्दलीय लड़ेंगे या घर लौटने का रास्ता तलाश करेंगे। सादुलशहर में यही बात गुरजंट सिंह बराड़ के लिए
कही जा सकती है। 1993 में निर्दलीय तौर पर जीते। श्री बराड़ को टिकट मिले ना मिले
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। इनका खुद का वजूद इतना है कि निर्दलीय लड़ कर पूरा समीकरण
बदलने की क्षमता है इस परिवार में। ये अलग बात है कि परिवार के राजनीतिक मनमुटाव अब
बाहर दिखने लगे हैं। राम प्रताप कासनिया भी इसी श्रेणी के लीडर हैं। पार्टी के
विचार,निष्ठा,सिद्धान्त
टिकट मिलने तक ही हैं। ऐसा कौन है जो टिकट ना मिलने पर इनको चुनाव लड़ने से
रोक सके। खुद नहीं जीते तो पार्टी उम्मीदवार को चित्त तो कर सकते हैं। रायसिंहनगर
के दुलाराम भी इस काम के मास्टर हैं। चुनाव तो
लड़ेंगे ही। टिकट दी तो उसका झण्डा उठा लेंगे। राजनीति में इनका एक ही नियम है...चुनाव लड़ना। श्रीकरनपुर
के गुरमीत सिंह कुन्नर भी इनसे अलग नहीं है। पिछली बार उन्होने ऐसा ही किया। 2013
में अब अधिक समय नहीं है। असल में इसके लिए इनको दोष देना ठीक नहीं है। अगर ये
नेता चुनाव ना लड़ें तो क्या करें...घर बैठ जाएं...और राजनीतिक रूप से हो
जाएं शून्य....... । गुरमीत सिंह कुन्नर चुनाव ना
लड़ते तो आज कहां होते। जगतार सिंह कंग बनने में देर नहीं लगती राजनीति में। यही होता है राजनीति में। जगह खाली नहीं रहती
कभी। आप नहीं तो कोई दूसरा तैयार है जगह
रोकने के लिए। एक बार जगह किसी और ने रोकी नहीं कि आप आउट राजनीति से। अपने आप को
राजनीति में बनाए रखने,अपना वजूद
साबित करने के लिए टिकट मिले ना मिले चुनाव लड़ना जरूरी हो जाता है। इस बार के
चुनाव में कोई नए नाम जुड़ सकते हैं... जगदीश जांदू....अशोक नागपाल....हंस राज पूनिया....बलराम
वर्मा.... । राजनीति से हटकर “कचरा” पुस्तक की दो लाइन पढ़ो...प्रीत का मौन निमंत्रण
मिलता मुझे तुम्हारी आँखों में,कभी
झिझक दिझे कभी तड़फ दिखे हर रोज तुम्हारी आँखों में।
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