श्रीगंगानगर-कांग्रेस
नेता जिला कलेक्टर अंबरीष कुमार का शिकार तो करना चाहते हैं। लेकिन पर्दे
के पीछे रहकर। वे कलेक्टर की खिलाफत तो करते हैं मगर नाम ना छापने की शर्त
पर मीडिया में। वे भली प्रकार से जानते हैं कि जिला कलेक्टर मात्र बड़ी बड़ी
घोषणा करने के मास्टर हैं ,आउट पुट की दृष्टि से केवल जीरो ...इसके बावजूद
वे सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं करते। ये नेता इस बात से भी अनभिज्ञ
नहीं कि जिला कलेक्टर उनकी लगातार उपेक्षा करता है इसके बावजूद वे चुप हैं।
ये सब इसलिए नहीं कि कांग्रेस नेता सहनशील हैं। मर्यादित हैं। सरकार के
प्रतिनिधि का आदर कर धर्म का निर्वहन कर रहे हैं। असल में ये कांग्रेस नेता
मजबूर हैं। लाचार हैं। बेबस हैं। क्योंकि मान लो कलेक्टर से पंगा ले लिया
तो उसको चुटकी बजाकर तुरंत चलता करवाने की हिम्मत तो किसी में नहीं है। कौन
है ऐसा जो कलेक्टर की तो छोड़ो...किसी छोटे अधिकारी का भी बिस्तर बँधवाने
की राजनीतिक ताकत,इच्छा शक्ति रखता हो। कौन कहेगा मुख्यमंत्री से कि साहब
जी इस कलेक्टर को तुरंत यहां से चलता करो...और अशोक गहलोत फटाफट अंबरीष
कुमार को बदल देंगे। मुख्यमंत्री भी सालों से जानते हैं अपने इन नेताओं को।
दस माह में जिला कलेक्टर ने जो घोषणा की, जनता को सपने दिखाए, नेताओं से
भी दो कदम आगे जाकर विकास की बात की...अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस की ऐसी
तैसी की...कांग्रेस के किसी नेता ने उनके बारे में कुछ नहीं कहा।कलेक्टर
किसी और को भजता रहा...जपता रहा...कांग्रेस नेता अंदर ही अंदर कुढ़ते रहे।
क्योंकि इनमें हिम्मत नहीं है...अपने आप पर भरोसा नहीं...वे जानते हैं कि
ऊपर कोई सुनवाई नहीं होगी...इसलिए या तो चुप्प रहने में भलाई है या फिर नाम
ना छापने की शर्त पर मीडिया का इस्तेमाल किया जाए। कंधा मीडिया का...बंदूक
उनकी...खुद आड़ में। निशाना सही लगा तो सामने आ जाएंगे ...वरना कलेक्टर
साहब की नजर में भले के भले। ये कैसी वफादारी है जनता के प्रति...किस
प्रकार की लिजलिजी राजनीति है इन कांग्रेस नेताओं की। किस से क्यों घबराते
हैं....वोट जनता से लेने हैं...तरफदारी करते हो अफसर की। क्यों नहीं
धड़ल्ले से राजनीति करते...क्यों नहीं जनता की आँख में आँख मिलाकर बात
करते...दो और दो चार कहने की हिम्मत भी नहीं रही क्या...विधायक राधेश्याम
गंगानगर...उनको तो चुप रहने में ही सबसे अधिक राजनीतिक लाभ है...या
विधानसभा में प्रश्न पूछने में।
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