श्रीगंगानगर-नगर
के सभी अल्ट्रासाउंड केन्द्रों ने गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड करना बंद कर
दिया है। ये कदम प्रशासन और केन्द्रों में रोज रोज होने वाली किच-किच,खिच-खिच से तंग आए केंद्र संचालकों ने प्रशासन पर दवाब बनाने
के लिए उठाया है। इसका नुकसान ना तो प्रशासन को होगा ना केंद्र संचालकों को। आपसी
विवाद में नुकसान होगा आम जनता का। आर्थिक रूप से भी और शारीरिक रूप से भी। अल्ट्रासाउंड
केंद्र संचालकों ने सोमवार से गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड करना बंद कर दिया।
जिस कारण गर्भवती महिलाओं को बहुत अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। एक लेडी डॉक्टर ने बताया कि गर्भ में बच्चे की स्थिति की जांच के लिए कई प्रकार के अल्ट्रासाउंड करवाने
बहुत जरूरी होते हैं।अगर वो ना हों तो बड़ी
दुर्घटना होने की आशंका रहती है। कई बार महिला को ब्लिडिंग होती है,उसका कारण जानने के
लिए अल्ट्रासाउंड जरूरी है। कई बार गर्भ में बच्चे को खून का फलो कम होता है उस स्थिति में लेडी डॉक्टर
केवल अल्ट्रासाउंड से ही इलाज का फैसला करती है। कई बार महिला को पेन नहीं होता, इसके बावजूद बच्चे को आउट करना पड़ता है। यह सब बिना अल्ट्रासाउंड के संभव नहीं। प्राइवेट
केन्द्रों पर गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड हो नहीं रहे और सरकारी हॉस्पिटल में लाइन लंबी है। इसके अलावा रिपोर्ट भी
देरी से मिलती है। इतना ही नहीं वहाँ कोई रेडिलोजिस्ट नहीं है। ऐसी हालत में किस
गर्भवती महिला के साथ क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता।
उधर
रेडिलोजिस्ट प्रशासन की रोज रोज की
कार्यवाही से डरे हुए
हैं। क्योंकि “एफ” फार्म के कारण सबसे अधिक परेशानी आती है। रेडियोलोजिस्ट वही सूचना उसमें
भरेगा जो मरीज बताएगा। कोई गलती रही तो मशीन सीज। कुछ चिकित्सकों का कहना है कि “एफ” फार्म खुद
प्रशासन भरे। चूंकि प्रशासन को रेडिलोजिस्ट पर
विश्वास नहीं इसलिए वह अपने दफ्तर में ऐसी व्यवस्था करे। फार्म वहाँ भरे जाएं।
रेडियोलोजिस्ट अधिकृत अधिकारी के
हस्ताक्षर देखते ही अल्ट्रासाउंड कर देंगे। तीन दिन से अल्ट्रासाउंड बंद हैं इस बारे में प्रशासन को जानकारी है या नहीं,पता नहीं। लेकिन रेडियोलोजिस्ट गत दिवस प्रशासनिक अधिकारियों
से मिले जरूर थे। प्रशासन ने दोनों पक्षों में संवाद हीनता ना हो इसके लिए एक
कमेटी के गठन कर रहा है। यह
विचार कई दिनों से पेंडिंग है। रेडियोलोजिस्ट अपने नाम दे चुके हैं। इस कमेटी में प्रशासन के
अधिकारी भी होंगे। इस बीच अपनी मोनोपॉली के चलते अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालकों ने रेट
भी बहुत अधिक कर दिये हैं। जो अल्ट्रासाउंड पहले 250 रुपए तक में हो जाता था अब
उसी के 800 रुपए तक देने होंगे। केंद संचालकों का तर्क है कि हमने प्रशासन को
संतुष्ट करने के लिए ट्रैकर लगवाए। रिकॉर्ड देने के लिए स्टाफ रखा। कानूनी
कार्यवाही से बचाने के लिए लाखो रुपए वकीलों को फीस दी। इससे खर्चे बढ़े तो मजबूरी
में हमें भी अल्ट्रासाउंड के रेट बढ़ाने पड़े। इस स्थिति में क्या होगा? किसी को कुछ नहीं पता। फिलहाल सबसे अधिक मुश्किल में गर्भवती
महिला और उसके परिजन हैं। जिन से ना तो प्रशासन को कोई सहानुभूति है ना डॉक्टर्स
की।
1 comment:
एक और महंगाई की मार अब बच्चे भी महंगे पैदा होंगे
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