श्रीगंगानगर-श्रीगंगानगर
की ओफिसियल वेबसाइट “श्रीगंगानगर डॉट निक डॉट इन” में महाराजा गंगा सिंह का जिक्र तक नहीं है। हिन्दी,अंग्रेजी,पंजाबी और राजस्थानी में
श्रीगंगानगर क्षेत्र के बारे में जो थोड़ी बहुत जानकारी दी गई है वह भी अलग अलग है।
जो अंग्रेजी में है वह पंजाबी में नहीं। जो राजस्थानी में है वह हिन्दी में नहीं।अंग्रेजी में एक दर्जन लाइन में श्रीगंगानगर की जानकारी है तो हिन्दी में केवल साढ़े छः लाइन। ऐसा लगता है कि या भिन्न भिन्न
विचारों वाले व्यक्तियों से लिखाया गया है। जिसको श्रीगंगानगर जैसा दिखा,लगा वैसा लिख दिया श्रीगंगानगर के बारे में। सरकारी वेबसाइट ही तो
है....क्या फर्क पड़ता है। वेबसाइट में लिखा है
कि श्रीगंगानगर दो भागों में है...एक
व्यावसायिक
क्षेत्र दूसरा रिहायशी। लिखने वाले ने शायद सालों से श्रीगंगानगर शहर का भ्रमण
नहीं किया। या फिर वे समझ नहीं सके नगर के मिजाज को। क्योंकि अब तो रिहायशी क्षेत्रों में भी बड़े बड़े
बाजार बन चुके हैं। दो भागों वाली बात दशकों पुरानी हो सकती है। इस बात
का जिक्र राजस्थानी में है कि श्रीगंगानगर कभी रामनगर हुआ करता था। पंजाबी,अंग्रेजी और
हिन्दी में इसका उल्लेख नहीं है। इस वेबसाइट में 16 चित्र भी चिपकाए
गए हैं। चित्रों में सूरतगढ़ का थर्मल
स्टेशन है। अंध विद्यालय
को अनेक चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। इस नगर से अंजान व्यक्ति उन
चित्रों को देखे तो उसको मालूम ही ना हो कि वे किसके चित्र हैं। उनका क्या महत्व
है। क्योंकि इन चित्रों के नीचे ऊपर कुछ लिखा ही
नहीं। बस चित्र लगा दिये। सबसे हैरानी की बात तो ये कि इन चित्रों में दर्शन कोडा चौक का
चित्र तो है। केदार जी भी हैं।
लेकिन महाराजा गंगा सिंह का नाम कहीं नहीं है। जिनके नाम पर श्रीगंगानगर की स्थापना की गई
थी। जब नगर को बसाने वाले का चित्र ही नहीं तो फिर महात्मा गांधी,भगत सिंह,बी आर अंबेडकर,बीरबल चौक, लाल बहादुर शास्त्री की अलग
अलग स्थानों पर लगी प्रतिमाओं के चित्र वेबसाइट पर लगाए जाने की कल्पना करना ही
मूर्खता है। दर्शन कोडा का इतिहास बताओ....कौन रोकता
है?लेकिन महाराजा गंगा सिंह,भगत सिंह,महात्मा गांधी....के बारे में जानकारी देने में कोई हर्ज है क्या! राजस्थान की
सबसे बड़ी निर्यातक इकाई विकास डब्ल्यूएसपी का कहीं नाम नहीं है। होटल की लिस्ट
बहुत पुरानी है। श्रीगंगानगर में लगातार क्या बदलाव हुए या हो रहें हैं। इसके बारे
में दो चार पांच लाइन होती तो थोड़ी जान पड़ती वेबसाइट में। इसकी वजह भी है...वह यह कि नगर के दक्षिण और पूर्व में प्राइवेट कालोनियों का
विकास। जिनको लोग देखने जाते हैं। वेबसाइट
होती ही इसीलिए है कि हजारों मील दूर रहने वाला भी किसी भी विषय के बारे में सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ जान सके। इस सरकारी
वेबसाइट की तो बात ही निराली है। कई भागों में विभाजित इस वेबसाइट के माध्यम से लोग
प्रशासन के बारे में तो संभव है बहुत कुछ जा सकें लेकिन श्रीगंगानगर के बारे में
नहीं। शायद इसको अप डेट करने वालों को या तो फुर्सत नहीं। फुर्सत है तो कोई बताने
वाला नहीं। या फिर किसी को प्रशासन से अधिक किसी में रुचि नहीं। हां,अब समाचार प्रकाशित होने के बाद इस और कोई गंभीरता दिखाई जाए
तो बात अलग है।
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