Sunday, November 28, 2010
चालाक अफसर, शरीफ अफसर
पहले एक किस्सा,उसके बाद खबर। आज के सिस्टम को सालों पहले समझ लेने वाले एक अधिकारी को ऐसी जगह लगा दिया गया जहाँ पीने को पूरा पानी तक नहीं था। अफसर करियर के बारे में सचेत था। लिहाजा हर ताले की कुंजी उसके पास थी। उसने अपनी अंटी से लाखों रूपये खर्च कर प्रोजेक्ट बनाया। जिसमे ये बताया गया था कि इलाके में बाँध बनाया जाये तो पानी की समस्या का समाधान हो सकता है। जमीन फसल के रूप में सोना उगलेगी। अफसर सिस्टम का हिस्सा था। ले देकर अरबों रुपयों का प्रोजेक्ट सरकार से मंजूर करवा लिया। सब हजम । बाँध के नाम पर पिल्ली ईंट भी नहीं लगी। तीन साल बाद उसका तबादला हुआ तो नया अफसर आया। फ़ाइलें देखी,बांध नहीं दिखा। माजरा समझ गया। वह कौनसा कम था। उसने बांध की मरम्मत का प्रोजेक्ट बना स्वीकृत करवा लिया। इसने भी क्या करना था। बजट आपस में बांटा,मौज मारी। समय पर ट्रांसफर हो गया। तीसरा ऑफिसर आया। वह भी इसी व्यवस्था में रचा बसा था।कमाल देखा, फाइल में बाँध बना, मरम्मत भी हुई। मौके पर मोडल भी नहीं। उसने नई तरकीब निकली। सरकार को प्रोजेक्ट भेजा। कई साल पहले जो बाँध बना था वह नकारा हो गया। उसको हटाया जाना जरुरी है। वरना इलाका तबाह हो सकता है। साथ में उसने बाँध वाली जगह पर कालोनी और कमर्शियल कोम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव भी भेज दिया। प्रस्ताव पास होना ही था। लिहाजा इलाके को बचाने के लिए बाँध हटा दिया गया। मतलब सब कुछ वैसा ही जैसा था। अरबों रूपये सिस्टम में बंट गए। अब खबर। श्रीगंगानगर जिले में ईंट भट्ठा मालिकों को नोटिस दिए गए। उसके बाद निजी कालोनियों को नोटिस देकर रिसीवर नियुक्त करने की कार्यवाही करवाई गई। हंगामा तो मचना ही था। बचने के लिए लाखों रुपयों का फंड बनाया गया। अभी तक इनमे से कोई कार्यवाही नोटिस से आगे नहीं बढ़ी। बढती दिखती भी नहीं। इलाके के लोगों को रोजी रोटी से महरूम और घर से बेघर कर बरबाद थोड़ी करना है। राजकीय अस्पताल में मेडिकल की दुकानों को कुछ जमीन देने का भरोसा दिया गया। जिनको कुछ मिलना था उन्होंने सिस्टम में शामिल होने के लिए रूपये इकट्ठे किये। नियमानुसार उनको जगह मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। कमेटी ने अडंगा लगाया तो बात बिगड़ गई। अब साहब ने सड़क की तरफ उनकी दुकानों के दरवाजे खुलवाने का आश्वासन दिया बताते हैं।
अब बात एस पी की कर लें। रुपिंदर सिंह बहुत अच्छे, धर्म परायण इन्सान हैं। लेकिन एस पी के रूप में उनका कोई रोब कहीं न तो दिखता है ना महसूस होता है।एसपी के रूप में उनकी पकड़ कहीं नजर नहीं आती। कोई कुछ भी करने को स्वतंत्र है। पुलिस वाले भी और नियम कानून को अपनी उँगलियों पर नचाने वाले भी। जो कोई भी एस पी से मिलने गया , उसकी बात उन्होंने तसल्ली से सुनी, मिलने वाले को भरोसा भी हुआ। किन्तु उसका परिणाम कुछ नहीं निकलता। कुछ दिन पहले कांग्रेस पार्टी के नेता अपने मुख्यमंत्री से इस बारे में मिले थे। ये कहा और सुना जा रहा है कि एसपी रुपिंदर सिंह का तबादला होने वाला है। एस पी साहेब से इतना ही कहना है कि आपके दफ्तर में लगे एक बोर्ड पर वो नाम हैं जो आपसे पहले यहाँ एसपी रहे हैं। लेकिन आम जन को वही नाम याद हैं जिन्होंने अपराधियों में डर पैदा कर आम आदमी का भरोसा जीता। आप केवल इस बोर्ड पर ही अपना नाम लिखा देखना चाहते हैं या लोगों के दिलो दिमाग पर भी,यह आप पर निर्भर है। हमें तो एस पी दूसरा मिल ही जायेगा। ना भी मिले तो भी क्या है! सहेल गाजीपुरी का शेर है---उस से उसके दोस्त भी नाराज होते जायेंगे, जिस को सच्ची बात कहने का हुनर आ जायेगा। अब साथी पत्रकार राकेश मितवा का मोबाइल सन्देश--श्वास का हर फूल अर्पण कर अमन को, प्यार का हर दीप पीड़ा के शमन को, है तू स्वयं परमात्मा का अंश भू पर, तू जहाँ भी है वहीँ महका चमन को।
---गोविंद गोयल
Monday, November 22, 2010
सवाल के जवाब के लिए चिंतन
Sunday, November 21, 2010
चार लड़कियों सहित आत्महत्या
Saturday, November 20, 2010
कला में अपार सम्भावना

Friday, November 19, 2010
बरखा,राजा और वीर
एक
दूसरे की
तकदीर,
बरखा
राजा
वीर।
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बरखा
राजा
वीर,
कहाँ
मिलेगी
ऐसी
तकदीर।
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जो पसंद आये उसको रख लेना। चुटकी ।
Thursday, November 18, 2010
अर्जुन की आँख में गंगानगर
श्रीगंगानगर के राजनीतिक गलियारों में सन्नाटा पसरा हुआ है। तीन साल तक कोई चुनाव होने नहीं इसलिए सब लगभग चुप्प है। वे भी जो सत्ता में हैं और वो भी जो नहीं है। ऐसे में एक सांसद जो पड़ौस का है, इस क्षेत्र में अधिक दिखाई देने लगा है। उसका नाम है अर्जुन मेघवाल। कोई अंजाना नाम नहीं है। सब जानते हैं कि श्री मेघवाल बीकानेर के सांसद हैं। यहाँ के सांसद भरत राम मेघवाल चाहे ना दिखे हों लेकिन अर्जुन मेघवाल का आना लगातार बना हुआ है। सांसद बनने की उनकी चाहत काफी पुरानी है। यह चाहत बीकानेर से पूरी तो हो गई। इसके साथ एक वहम भी आ गया । वहम ये कि वहां पिछले लम्बे समय से कोई सांसद रिपीट नहीं हुआ। बस यही वहम उनको श्रीगंगानगर में बार बार ले आता है। अर्जुन मेघवाल का श्रीगंगानगर से पुराना नाता है। उन्होंने यहाँ से बीजेपी की टिकट लेने की कोशिश भी की है। उनके बन्दे उनको लेकर इलाके में घूमे भी है। जो पहले संभव ना हो सका वह अब करने की योजना है। इस बार उनका मानस श्रीगंगानगर चुनाव लड़ने का है। हालाँकि अभी चुनाव में बहुत समय बाकी है। उन्होंने ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिया है। खुद इतनी जल्दी कोई संकेत देंगे इसकी उम्मीद नहीं है। हाँ अपने लोगों से इस बारे में इलाके में चर्चा तो करवाई ही जा सकती है। यही हो रहा है। सवाल ये कि निहाल चन्द क्या करेंगे? जवाब ये ,विधानसभा का चुनाव लड़कर कर मंत्री पद प्राप्त करेंगे!
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कई दिन पहले एसपी रुपिंदर सिंह अख़बार में सेना की वर्दी में छपे दिखे। ऐसा लगा कोई और होगा। बात आई गई हो गई। बाद में एक दिन ऑफिस में उनको सैनिक अधिकारी की वर्दी में देखा तो अचरज हुआ। इतने सालों में कितने ही एसपी आये गए। बड़े बड़े आन्दोलन के समय बहुत बड़े बड़े पुलिस अधिकारी आये। किसी को भी सेना की वर्दी में नहीं देखा। पहली बार परम्परा से हट के कुछ दिखे तो अचम्भा तो होना ही था। मुझे ही क्यों,उस दिन जो कोई उनसे मिला उसे भी यही हुआ। लेकिन अब अचम्भा करने वाली बात नहीं है। क्योंकि असल में यह भी एसपी की वर्दी का ही एक हिस्सा है। इसको कमबैक ड्रेस कहते हैं। इस ड्रेस को खास मौकों पर ही पहना जाता है। एसपी श्री सिंह ने बताया कि इस को हथियार चलने की ट्रेनिंग,रूट मार्च और फिल्ड में काम करते समय पहना जाता है। श्री सिंह को यह ड्रेस कुछ समय पहले तब मिली जब वे कोई कोर्स करने गए थे।
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चलो कुछ क्षण जवाहर नगर थाना का ख्याल कर लेते हैं। थाना क्षेत्र का तो पता नहीं थाने में सब ठीक नहीं है। वहां की दीवारें आजकल एक चर्चा सुनाने/सुनने में व्यस्त हैं। वह यह कि थाने का सिपाही भी अपने थाना अधिकारी की बात पर कान नहीं धरता। एक कान से सुनता है दूसरे से निकल देता है। बात जब निकलती है तो दूर दूर तक जाती ही है।
नज़र अमरोही कहते हैं--डूब कर दिल के भी अन्दर देखो, कितना गहरा है समन्दर देखो। हनुमानगढ़ से विकास का भेजा सन्देश--बुरा मत मानो अगर कोई तुमको अपनी जरुरत के समय ही याद करता है। इसे अहोभाग्य समझो, क्योंकि दीपक, मोमबत्ती अँधेरा होने पर ही याद आती है।
----गोविंद गोयल
Monday, November 15, 2010
Tuesday, November 9, 2010
मुश्किल डगर पर पहले कदम को सलाम
----गोविंद गोयल
Thursday, November 4, 2010
चालीस करोड़ कृषि शरणार्थी
Wednesday, November 3, 2010
तेरी चाहत की दीवानगी
मेरे मासूम
सवालों के
झूठे थे तेरे
सभी जवाब,
तेरी चाहत की
दीवानगी में
गुम हो गए
मेरे सभी ख्वाब।
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अमावस का हूँ
अँधेरा, जो था
पूनम की रात,
दीप की भांति
जलो तो
बन जाये बात।
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तुम्हारी तुला
तोलने वाले भी
तुम्हारे ही हाथ,
ऐसे में कोई
क्यूँ देने लगा
मेरा साथ।
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***गोविंद गोयल