Sunday, October 31, 2010
परम्पराओं से भरा जीवन
पटेल जी को प्रणाम
Saturday, October 30, 2010
श्रीगंगानगर में पत्रकारिता सौभाग्य की बात
मोबाइल फोन की घंटी बजी...टू..न न,टू न न [ आपकी मर्जी चाहे जैसी बजा लो] । गोविंद गोयल! जी बोल रहा हूँ। गोयल जी ...बोल रहा हूँ। फलां फलां जगह पर छापा मारा है। आ जाओ। इस प्रकार के फोन हर मीडिया कर्मी के पास हर रोज आते हैं। सब पहुँच जाते हैं अफसर के बताए ठिकाने पर। एक साथ कई पत्रकार, प्रेस फोटोग्राफर,पुलिस, प्रशासन के अधिकारी को देख सामने वाला वैसे ही होश खो देता है। अब जो हो वही सही।
श्रीगंगानगर में पत्रकार होना बहुत ही सुखद अहसास के साथ साथ भाग्यशाली बात है। यहाँ आपको अधिक भागादौड़ी करने की कोई जरुरत नहीं है। हर विभाग के अफसर कुछ भी करने से पहले अपने बड़े अधिकारी को बताए ना बताए पत्रकार को जरुर फोन करेगा। भई, जंगल में मोर नचा किस ने देखा। मीडिया आएगा तभी तो नाम होगा। एक साथ कई कैमरे में कैद हो जाती है उनकी फोटो। जो किसी अख़बार या टी वी पर जाकर आजाद हो जाती है आम जन को दिखाने के लिए। ये सब रोज का काम है। गलत सही की ऐसी की तैसी। एक बार तो हमने उसकी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया । जिसके यहाँ इतना ताम झाम पहुँच गया। सबके अपने अपने विवेक, आइडिया। कोई कहीं से फोटो लेगा, कोई किसी के बाईट । कोई किसी को रोक नहीं पाता। आम जन कौनसा कानून की जानकारी रखता है। वह तो यही सोचता है कि मीडिया कहीं भी आ जा सकता है। किसी भी स्थान की फोटो अपने कैमरे में कैद करना उसका जन्म सिद्ध अधिकार है। उसकी अज्ञानता मीडिया के लिए बहुत अधिक सुविधा वाली बात है । वह क्यों परवाह करने लगा कि इस बात का फैसला कब होगा कि क्या सही है क्या गलत। जो अफसर कहे वही सही, आखिर ख़बरों का स्त्रोत तो हमारा वही है। अगर वे ना बताए तो हम कोई भगवान तो है नहीं। कोई आम जन फोन करे तो हम नहीं जाते। आम जन को तो यही कहते हैं कि जरुरत है तो ऑफिस आ जाओ। अफसर को मना नहीं कर पाते। सारे काम छोड़ कर उनकी गाड़ियों के पीछे अपनी गाड़िया लगा लेते है। कई बार तो भ्रम हो जाता है कि कौन किसको ले जा रहा है। मीडिया सरकारी तंत्र को ले जा रहा है या सरकारी तंत्र मीडिया को अपनी अंगुली पर नचा रहा है। जिसके यहाँ पहुँच गए उसकी एक बार तो खूब पब्लिसिटी हो जाती है। जाँच में चाहे कुछ भी न निकले वह एक बार तो अपराधी हो ही गया। पाठक सोचते होंगे कि पत्रकारों को हर बात कैसे पता लग जाती है। भाइयो, अपने आप पता नहीं लगती। जिसका खबर में कोई ना कोई इंटरेस्ट होता है वही हमको बताता है। श्रीगंगानगर में तो जब तक मीडिया में हर रोज अपनी फोटो छपाने के "लालची" अफसर कर्मचारी रहेंगे तब तक मीडिया से जुड़े लोगों को ख़बरों के पीछे भागने की जरुरत ही नहीं ,बस अफसरों,उनके कर्मचारियों से राम रमी रखो। इस लिए श्रीगंगानगर में पत्रकार होना गौरव की बात हो गया। बड़े बड़े अधिकारी के सानिध्य में रहने का मौका साथ में खबर , और चाहिए भी क्या पत्रकार को अपनी जिंदगी में। बड़े अफसरों के फोन आते है तो घर में, रिश्तेदारों में,समाज में रेपो तो बनती ही है। श्रीगंगानगर से दूर रहने वाला इस बात को समझाने में कोई दिक्कत महसूस करे तो कभी आकर यहाँ प्रकाशित अख़बारों का अवलोकन कर ले। अपनी तो यही राय है कि पत्रकारिता करो तो श्रीगंगानगर में । काम की कोई कमी नहीं है। अख़बार भी बहुत हैं और अब तो मैगजीन भी । तो कब आ रहें है आप श्रीगंगानगर से। अरे हमारे यहाँ तो लखनऊ ,भोपाल तक के पत्रकार आये हुए हैं । आप क्यों घबराते हो। आ जाओ। कुछ दिनों में सब सैट हो जायेगा। श्रीगंगानगर में पत्रकारिता नहीं की तो जिंदगी में रस नहीं आता। ये कोई व्यंग्य,कहानी, टिप्पणी या कटाक्ष नहीं व्यथा है। संभव है किसी को यह मेरी व्यथा लगे, मगर चिंतन मनन करने के बाद उसको अहसास होगा कि यह पत्रकारिता की व्यथा है। कैसी विडम्बना है कि हम सब सरकारी तंत्र को फोलो कर रहे है। जो वह दिखाना चाहता है वहीँ तक हमारी नजर जाती है। होना तो यह चाहिए कि सरकारी तंत्र वह करे जो पत्रकारिता चाहे। ओशो की लाइन पढो---
जो जीवन दुःख में पका नहीं ,कच्चे घट सा रह जाता है।
जो दीप हवाओं से न लड़ा,वह जलना सीख न पाता है।
इसलिए दुखों का स्वागत कर,दुःख ही मुक्ति का है आधार।
अथ तप: हि शरणम गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि ।
Thursday, October 28, 2010
श्रीगंगानगर में "गुंडे" की दहशत
चले आओ चिकित्सा पेशे से जुड़े किसी भी आदमी या संस्था के यहाँ। आपको साफ दिखाई देगा कि किस प्रकार लक्ष्मी वहां अपनी मेहरबानी की बरसात कर रही है। नगर में चर्चा है कि इस बार लक्ष्मी इन्ही के घर विराजमान है। इसका कारण है "गुंडे" का आतंक। जल्दी में कुछ उल्टा हो गया। गुंडे नहीं डेंगू। बात तो एक ही है।
श्रीगंगानगर में इन दिनों वो घर बहुत ही भाग्यशाली है जिसका कोई सदस्य बीमार नहीं है। सरकारी हो प्राइवेट ,तमाम हॉस्पिटल में बुखार से पीड़ित लोगों का आना लगा रहता है। प्रशासन पता नहीं क्या कहता है लेकिन निजी अस्पतालों के आंकड़े लोगों के दिलों में खौफ पैदा करने के लिए काफी हैं। एक बार बुखार होने का मतलब है कई हजार रूपये की चट्टी। मानसिक चिंता अलग से। जिनके यहाँ हर रोज या हर माह एक निश्चित राशि आनी है उसके यहाँ तो समस्या अधिक है। हमें इस बात की जलन नहीं है कि लक्ष्मी चिकित्सा से जुड़े व्यक्तियों के यहाँ क्यों डेरा लगाकर बैठी है। चिंता है कि इस बात की है कि अगर यही हाल रहा तो इस बार की दीवाली कैसी होगी? दीवाली, जो सबसे बड़े त्यौहार के रूप में आती है, कई प्रकार के सपने साथ लेकर आती है। घर घर में कुछ ना कुछ नया लाने के लिए बजट का इंतजाम रहता ही है। जैसी जिसकी जेब वैसे उसके सपने। मगर इस बार सभी के नहीं तो बहुतों के छोटे बड़े सभी सपने इस गुंडे के डर से किसी ओर के यहाँ चले जा रहे हैं। सामान्य बुखार ,जो कभी दादी नानी के नुस्खों से ठीक हो जाया करता था वह अब जिंदगी के लिए संकट बन कर आ खड़ा होता है। जिंदगी है तो सपने हैं, ये सोचकर सब अपना सब कुछ इस गुंडे पर लगाने को तैयार हो जाते हैं। कोई हिसार भागता है कोई जयपुर तो कोई लुधियाना। बस किसी प्रकार से जिन्दगी बच जाये,रोटी के लिए कौड़ी बचे ना बचे। कोई कर भी क्या सकता है। इससे पहले तो कभी यहाँ इस प्रकार के हालत पैदा नहीं हुए। नगर के उन व्यक्तियों को जो अपने आप को इस नगर की आन, बान, शान समझते हैं,इस बारे में चिंतन मनन जरुर करना चाहिए कि आखिर ऐसे हालत बने क्यों? अब तो जो होना था हो गया आइन्दा तो शहर को इस स्थिति से दो चार ना होना पड़े।
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कांग्रेस नेताओं को याद होगा कि १९७७ में करारी हार के बाद उनकी नेता इंदिरा गाँधी १९८० में फिर सत्ता में वापिस आ गई थी। क्योंकि हार के बावजूद श्रीमती गाँधी लगातार मिडिया की पहली खबर रहीं। इसका कारण वे खुद नहीं चरण सिंह बने , जो सरकार में उप प्रधानमंत्री के साथ साथ गृह मंत्री भी थे। वे उठते ,बैठते केवल श्रीमती गाँधी को कोसते। वे श्रीमती गाँधी को कोसते रहे, श्रीमती गाँधी लोगों की सहानुभूति बटोर कर सत्ता में लौट आई। इसी से मिलता जुलता यहाँ कांग्रेस की राजकुमार गौड़ एंड कम्पनी कर रही है। जांदू ये , जांदू वो। हाय जांदू,हे जांदू। मेरे मालिक ,आप कांग्रेस के नेता हो, जो राजस्थान की नहीं हिन्दूस्तान की भी सत्ता चला रही है। आपको लगता है कि नगर परिषद् शहर में ठीक या जनहित का काम नहीं कर रही तो अफसरों को बदल दो। जो स्थान खाली है उनको भरवा दो। यहाँ के कर्मचारी,अफसर आपको भाव नहीं देते तो उनके तबादले करवाओ । जांदू नहीं सुहाता तो उसको बर्खास्त करवा दो। ये क्या विपक्ष की तरह स्यापा करने लगे हो। शोर मचाना विपक्ष का काम होता है। सत्ता पक्ष तो चमत्कार दिखाता है। इस हाय तोबा से राजकुमार गौड़ एंड कंपनी को कब क्या मिलेगा पता नहीं, हाँ जांदू जरुर अख़बारों में छाये रहते हैं। अगर जांदू को जांदू को डाउन करना है तो उसका नाम ही लेना बंद कर दो। नहीं करोगे तो वह राजनीति का डौन बन जायेगा। ओशो ने कहा था--कौन सही है कौन गलत है, क्या रखा इस नादानी में,कौड़ी की चिंता करने में हीरा बह जाता पानी में। जब भी शिकवा शिकायत हो ,समझो तुम्ही खलनायक हो, अथ प्रमम शरणम् गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि। अब आनंद मायासुत का भेजा एस एम एस --इस दुनिया में भगवान का संतुलन कितना अचरज भरा है। सौ किलो गेहूं का बोरा जो आदमी उठा सकता है वह उसे खरीद नहीं सकता। जो इसे खरीद सकता है वह इसे उठा नहीं सकता। ---
गोविंद गोयल
Tuesday, October 26, 2010
एक दिन के महाराज
करवा चौथ की
हमको तो
समझ आती है
यही एक बात,
बस, एक
दिन की
चांदनी
फिर अँधेरी रात।
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एक दोस्त है, सालों से पत्नी के लिए करवा चौथ का व्रत रखता है। बड़ा प्रभावित रहा आज तक। कितना मान करता है पत्नी का। उसके साथ खुद भी भूखा रहता है। बहुत प्रशंसा करता उसकी। कल रात को भी की थी। असली कहानी आज समझ आई। वह व्रत अपनी मर्जी से या पत्नी की सहानुभूति के लिए नहीं रखता। व्रत रखना उसकी मज़बूरी है। क्योंकि पत्नी या तो सजने संवरने में लगी रहती है या व्रत भंग ना हो, इस वजह से कुछ काम नहीं करती। तब पति क्या करता। एक दो साल तो देखा। बाज़ार में कुछ खाया। लेकिन बात नहीं बनी । उसके बाद उसने भी व्रत रखना आरम्भ कर दिया। मैंने खुद देखा सुना। पति बोला, सुनो मेरी शर्ट में बटन लगा दो ऑफिस जाना है। पत्नी कहने लगी, मेरा तो आज करवा चौथ का व्रत है। सुई हाथ में नहीं लेनी या तो खुद लगा लो या फिर दूसरी शर्ट पहन लो। ऐसी स्थिति में कोई क्या करे! व्रत करे और क्या करे। पत्नी भी खुश शरीर को भी राहत।
Sunday, October 24, 2010
मियां बीबी मतलब वीणा की तारें

हैं जैसे मियां बीबी नहीं प्रेमी प्रेमिका हो। मजाल है जो कभी किसी के चेहरे पर खीज दिखाई दी हो। बेशक यह बात साधारण सी है लेकिन है बड़ी व्यावहारिक। पत्नी अगर अपने पति की प्रेमिका बनकर रहे तो घर आनंद प्रदान करता है। रिश्ते हर समय गर्माहट लिए रहते हैं। तब पति को भी प्रेमी होना होगा। असली गड़बड़ वहां होती है जहाँ पत्नी केवल और केवल गृहणी बनी रहना चाहती है। तब इस रिश्ते में रिसाव कुछ अधिक होने लगता है। रिश्ते बेशक टूटने की कगार पर ना पहुंचे मगर आनंद का अभाव जरुर जीवन में आ जाता है। पति पत्नी के प्रेमी -प्रेमिका होने का यह मतलब नहीं कि वे हाथों में हाथ डाले पार्कों में गीत गाते हुए घूमे। प्रेम की भी अपनी मर्यादा होती है। या यूँ कहें कि मर्यादित प्रेम ही असली प्रेम कहलाने का हक़ रखता है तो गलत नहीं होगा। एक बार क्या अनेक बार देखा होगा। सत्संग,कथा में किसी प्रसंग के समय महिलाएं किसी के कहे बिना ही नृत्य करना शुरू कर देती हैं। भाव विभोर हो ऐसे नाचती हैं कि उनको इस बात से भी कोई मतलब नहीं रहता कि यहाँ कितने नर नारी हैं। मगर ऐसी ही किसी महिला से घर में उसका पति दो ठुमके लगाने की फरमाईस कर दे या घरेलू उत्सव में नाचने के लिए कह दे तो क्या मजाल कि महिला अपनी कला दिखाने को तैयार हो जाये। संभव है पति को कुछ सुन कर अपने शब्द वापिस लेने पड़ें। बहुत मुश्किल होता है भई,अपनों के आनंद के लिए नाचना।
कितना खटती है गृहणी। देर रात तक। दोनों एक साथ सोयेंगें। पति देर तक सोता रहे तो चलेगा, पत्नी को उठना ही पड़ेगा ,पौ फटने से पहले। कोई कानून नहीं है। ये तो मर्यादा है,कायदा है,संस्कार है। दो,चार ऐसी भी होगीं जो नहीं भी उठती। फिर भी घर चलते हैं। चलते रहेगें। मतलब ये कि ये सम्बन्ध वीणा की तारों की तरह है। अधिक कसोगे तो टूट जाते हैं और ढीला छोड़ दिया तो उनमे स्वर नहीं निकलते। इसलिए करवा चौथ भी तभी सार्थक होगी जब दोनों के दिलों में एक दूसरे के लिए अनुराग और विराग दोनों होंगे। ऐसा न हो कि ये कहना पड़े--" करवा चौथ का रखा व्रत, कई सौ रूपये कर दिए खर्च,श्रृंगार में उलझी रही, घर से भूखा चला गया मर्द।" शारदा कृष्ण की लाइन हैं--जेठ दुपहरी सा जीवन ये, तुम होते तो सावन होता। इन ठिठुरती सी रातों में ,थोडा बहुत जलावन होता।
---गोविंद गोयल
Saturday, October 23, 2010
मत कथा गढ़ो या चिल्लाओ
जब हवा थमे आगे चल दो,तेरी मुट्ठी में होगा कल।
तुम डटे रहो अपने पथ पर,रस्सी से घिस जाता पत्थर।
अथ धैर्यम शरणम् गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि।
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लगता होगा बहुत बार,कुछ लोग नहीं सुनते तुमको।
घायल हो जाता अहंकार,दुःख पागल कर देता मन को।
मत कथा गढ़ो या चिल्लाओ,नूतन अनुरोध किये जाओ।
अनुरोधम शरणम् गच्छामि,भज ओशो शरणम् गच्छामि।
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ये पंक्तियाँ ओशो की है। मेरे मित्र नरेंद्र शर्मा ने मुझे दी। हम इनको जन जन पहुँचाने से अपने आप को नहीं रोक सके। उम्मीद है ओशो के अनुयायी इसे अन्यथा नहीं लेंगे।
Friday, October 22, 2010
Wednesday, October 20, 2010
संत,सैनिक,विद्वान् कहाँ से आयेंगे !

Tuesday, October 19, 2010
मुलाकात राधा कृष्ण जी से

Monday, October 18, 2010
हमारे यहाँ तो राम राज है, आपके!
ना जी, ऐसी बात नहीं है, हमारे पास जिला मुख्यालय पर एसपी से लेकर थानों में लांगरी तक है। प्रशासनिक अमले में पटवारी से डीएम तक,सब एक से बढ़कर एक। एसपी ऐसा जेंटलमैन कि जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है। विनम्र,धार्मिक विचारों का सीधा -साधा एसपी। डीएम भी कमाल का मिला है हमारे जिले को। अपने सरकारी काम के अलावा बच्चों को उनके करियर के लिए गाइड करता है। कोई आम आदमी उसके दर पर आकर वापिस ना लौट जाये इसके लिए वे खुले में सबसे मिलते हैं, ऑफिस से बाहर, बरामदे में। फिर समस्या क्या है? समस्या सुमस्या कुछ नहीं है। इस इलाके के अनेक नेता कई सरकारों में मंत्री .......... । ये एसपी-डीएम के बीच मंत्री....... । टोका टाकी मत कर पहले पूरी बात सुन। जो नेता मंत्री हुए उन्होंने कभी सरकारी या प्राइवेट वाहन पर अपने मंत्रालय का नाम नहीं लिखवाया।
तो इसमें क्या बात है। ऐसा तो कोई किसी राज्य में नहीं करता। गलत, बिलकुल गलत। हमारे यहाँ तो कोई भी ऐसा कर सकता है। श्रीगंगानगर में कई प्राइवेट वाहन हैं जिस पर लाल प्लेट लगाकर मंत्रालयों के नाम लिखे हुए हैं। कई वाहनों पर लिखा है "इस्पात मंत्रालय", इस्पात मिनिस्टरी। कई बार तो इनमे से एक वाहन पर लाल बत्ती भी लगी होती है। दो कारों पर वित्त मंत्रालय लिखा हुआ है। ये दोनों कारें बैंक से सम्बंधित हैं। इनको कोई पुलिस वाला नहीं रोकता। मंत्री आने पर पुलिस को सूचना होती है। दोनों मंत्रालय केंद्र के हैं। हैरानी इस बात की है कि किसी ने इनको आज तक नहीं रोका,टोका। ये बोर्डर वाला जिला है। प्रेस लिखे वाहनों में कारोबारी माल ढोया जाता है। जिनका कपडे प्रेस करने का काम तक भी नहीं वे भी प्रेस लिखे वाहनों का प्रयोग करते हैं। पत्रकारों ने एक साथ इस बारे में एसपी को बताया था।
आधी रात के बाद सड़कों पर पुलिस की गश्त नहीं आवारा लड़कों की मटरगश्ती होती है। शराब के नशे में ये लोग हुड़दंग मचाते हैं। एसपी साहेब कोई शिकायत नहीं करेगा। किसकी हिम्मत है जो इनसे पंगा ले। छोटी छोटी चोरी वाले तो थानों तक पहुँचते ही नहीं। क्या होगा, कुछ भी तो नहीं।
डीएम ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में कब्जों के खिलाफ कार्यवाही तुरंत करने की बात कही थी। उन्होंने अपनी बात पूरी की। सड़कों पर सुबह शाम लगने वाली फल सब्जी की रेहड़ियों को हटवा दिया। बेचारे गरीब लोग थे। सड़कों,सरकारी जमीन पर मकान दुकान बनाने का सिलसिला जारी है। हर इलाके में अंडर ग्राउंड बन रहे है। शहर को खोखला किया जा रहा है। प्रकृति ने एक झटका दिया तो नगर गुजरात बन जायेगा। मगर हम किसी को कुछ नहीं कहेंगे। इतने डीएम आये किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा, हम क्यों कहें। यही हाल छोटे अफसरों का है। आम आदमी को झटके देने में कोई अफसर चूक नहीं करता। मिडिया में वाह वाही होती है। बड़े को सब सलाम बजाते हैं। क्योंकि इनकी बेगारें भी तो यही पूरी करते हैं। कोई रेहड़ी वाला किसी अफसर को क्या ओब्लाईज कर सकता है।
चलो बहुत हो गया। कल ही तो लंकापति के कुल को समाप्त कर राम राज्य की स्थापना की है। जब राम राज हो तो फिर किस को किस बात का डर। सब एक समान है। सब कोई सब काम करने को स्वतंत्र है। इसलिए एक कवि की दो लाइन पढो-" पुलिस पकड़ कर ले गई,सिर्फ उसी को साथ, आग बुझाने में जले जिसके दोनों हाथ।" एक एसएमएस -- भिखारी मंदिर के बाहर भीख मांगता है और सेठ मंदिर के अंदर।
Sunday, October 17, 2010
घर में हुआ दशहरा पूजन

राम राज को आयेंगे
वो रावण
भी नहीं रहा,
ये भी
मारे जायेंगे,
तू उदास
मत हो
रे मना
राम राज
को आयेंगें।
पत्रकार साथियों को शोक
श्रीगंगानगर के एक और पत्रकार श्री संजय सेठी की माता श्रीमती माया देवी का भी इसी रात को निधन हो गया। उनके परिवार ने उनकी मृत देह मेडिकल कॉलेज को दान कर दी।
हम दोनों आत्माओं को नमन कर परिवार को यह शोक सहन करने की प्रार्थना इश्वर से करते हैं। नारायण नारायण।
Friday, October 15, 2010
दुर्गा माता की महाआरती


Thursday, October 14, 2010
ख़बरें ऑफ दी रिकॉर्ड
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राजस्थान में पंचायत विभाग को बहुत ही ताकतवर बना दिया गया है। पांच विभाग और उसके सुपुर्द हो गए हैं। जो विभाग पंचायत की झोली में डाले गए हैं उनके मंत्रियों का वजन कम होना स्वाभाविक है। शिक्षा मंत्री भंवर लाल मेघवाल की मनमर्जी सब जानते हैं। मुख्यमंत्री क्या उनके तबादलों के कारनामे तो प्रधानमंत्री तक पहुँच गए हैं। [ऐसा एक मंत्री ने मुझे बताया था।] कई मंत्री आपस में उलझे रहते हैं। मतलब की मंत्री परिषद् में सब ठीक नहीं कहा जा सकता। इसलिए इसमें फेरबदल होना संभव है। कब होगा इसके लिए कोई डेट निश्चित नहीं की जा सकती। इस प्रकार की "घटनाएँ" कभी भी हो सकती हैं। जिले के एक मात्र मंत्री गुरमीत सिंह कुनर बने रहेंगे। उनका विभाग बदल सकता है।वैसे वो बड़ा विभाग ना लेना चाहे तो अलग बात है। उनके पास अभी जो विभाग है वह असल में तो मार्केटिंग बोर्ड है। उसको मंत्रालय बना दिया गया है। उसमे से भी सड़कों का काम अब सार्वजनिक निर्माण विभाग को दे दिया जिस से वह और छोटा हो गया। चलो इंतजार करते हैं जादूगर के जादू का।
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अभी कुछ दिन पहले अग्रवाल समाज की शोभायात्रा का आयोजन हुआ। श्रीगंगानगर के इतिहास में अग्रवाल समाज के लोग इतनी बड़ी संख्या में एक साथ कभी सड़कों पर नहीं आये। इस आयोजन के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर आरम्भ है। इस बात की चर्चा होना स्वाभाविक है कि विकास डब्ल्यू एस पी के बी डी अग्रवाल विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उनकी सहानुभूति बीजेपी के साथ है। बताते हैं कि उनकी बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सिंधिया से भी मुलाकात हुई है। श्री अग्रवाल श्रीमती राजे को श्रीगंगानगर लाने की योजना बना रहे हैं। अभी तक तो यहाँ के विधायक राधेश्याम गंगानगर को श्रीमती राजे के निकट माना जाता रहा है। अब ये नए समीकरण राधेश्याम की नींद उड़ाने के लिए काफी हैं। हालाँकि राधेश्याम गंगानगर इलाके के ऐसे राजनेता हैं जो कुछ भी कर सकने में संभव हैं। लेकिन संघ से उनकी पटरी नहीं बैठ रही। दूसरा सालों से वसुंधरा जी के आस पास रहने वाले नेता ये कब सहन करने लगे कि कल बीजेपी में आया राधेश्याम उनसे आगे निकल जाये। चुनाव में अभी तीन साल है। यहाँ की राजनीति कई रंग बदलेगी ऐसा आभास होने लगा है।
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अग्रवाल समाज की शोभा यात्रा के समय विधायक राधेश्याम गंगानगर ने महाराजा अग्रसेन जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको नमन किया। यह एक सामान्य बात है। जनप्रतिनिधि ऐसा करते ही हैं। अग्रवाल समाज के एक व्यक्ति, जो यहाँ अधिकारी हैं ने एतराज जताया। उन्होंने शोभा यात्रा के साथ चल रहे अग्रबंधुओं से कहा कि वे अरोड़ा समाज के राधेश्याम को उस वाहन पर मत चढ़ने दें जहाँ अग्रसेन महाराज की फोटो रखी है। यह अधिकारी वही हैं जो राधेश्याम के विधायक बनने बाद उनसे मिलने को आतुर था। अपने एक कर्मचारी की मार्फ़त जो सहायक के रूप में विधायक के साथ था। नरेश गोयल नामक इस अधिकारी ने अपनी एक किताब का विमोचन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से करवाया। हैरानी की बात ये कि उसी किताब का विमोचन उससे पहले इन्होने श्रीगंगानगर में एक समारोह में करवा लिया था।
Wednesday, October 13, 2010
Sunday, October 10, 2010
१० रावण और १०/१०/१०



Wednesday, October 6, 2010
प्रतिभाशाली अग्रवाल होंगे सम्मानित
विशेष आग्रह व सूचना
राजस्थानवासी अग्रवाल समाज के सभी छात्र -छात्राओं को सूचित किया जाता है कि अग्रवाल सेवा समिति द्वारा राजस्थान के समस्त अग्रवाल समाज के विद्यार्थियों को सम्मानित करने के लिए निम्नलिखित योजना है।
१-भारतीय प्रशासनिक सेवाओं आईएएस/आईपीएस तथा आईआरएस में वर्ष २०१० तथा इसके बाद के वर्षों में चयनित परीक्षार्थियों को समिति गोल्ड मैडल से सम्मानित करेगी।
२-राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं आरएएस/आरपीएस तथा आरजेएस में वर्ष २०१० में तथा इसके बाद के वर्षों में चयनित परीक्षार्थियों को समिति सिल्वर मैडल से सम्मानित करेगी।
३-अखिल भारतीय स्तर पर [ सीबीएसई/ एनसीईआरटी] तथा राजस्थान राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा सैकेंडरी तथा सीनियर सैकेंडरी परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले विद्यार्थी को समिति गोल्ड मैडल तथा दूसरा स्थान पाने वाले को सिल्वर मैडल दिया जायेगा।
४-अखिल भारतीय स्तर पर आईआईएम ,आईआईटी ,एआईआईएमएस ,सीपीएमटी तथा राजस्थान में राज्य स्तर पर पीएमटी की प्रवेश परीक्षा तथा सी ए फ़ाइनल परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले परीक्षार्थियों को गोल्ड मैडल, दूसरा स्थान पाने वाले विद्यार्थी को सिल्वर मैडल दिया जायेगा।
५-पिछले दो साल में एमबीए ,सीए किये तथा कैम्पस भर्ती के इच्छुक विद्यार्थी जो बैंकों में सर्विस के इच्छुक हो को योग्यता के आधार पर सर्विस दिलवाने का प्रयास किया जायेगा। कृपया सभी पात्र अपना बायोडाटा ई मेल या डाक द्वारा निम्न पते पर भेजे।
बी डी अग्रवाल [मुख्य सरंक्षक ]
अग्रवाल सेवा समिति ,विकास दाल मिल परिसर
नई धान मंडी गेट नंबर २,श्रीगंगानगर ३३५००१
फोन ०९४१३९३४६४४ , ई मेल- beedeeagarwal@gmail.com
निवेदक
बी डी अग्रवाल,प्रबंध निदेशक
विकास डब्ल्यू एस पी लिमिटेड
श्रीगंगानगर
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विकास डब्ल्यू एस पी के प्रबंध निदेशक श्री बी डी अग्रवाल राजस्थान का तो पता नहीं श्रीगंगानगर में पहले ऐसे आदमी है जिन्होंने अपने समाज के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए प्रोत्साहन योजना शुरू की है। कुछ दिन पहले इन्होने समिति के माध्यम से कई लाख रूपये की सहायता अग्रवाल समाज के उन विद्यार्थियों के लिए दी जो अपनी फीस जमा नहीं करवा पाए थे। श्री अग्रवाल ने कल प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि यह सब हमारे जाने के बाद भी चलता रहेगा, इस प्रकार की व्यवस्था की जा रही है।
Tuesday, October 5, 2010
नेताओं के चंगुल में मास्टर/मास्टरनी
मास्टर/मास्टरनी को किसी ज़माने में बेचारा कहा जाता था। तब से अब तक नहरों में बहुत पानी बह गया। अब मास्टर/मास्टरनी बेचारे नहीं रहे। बढ़िया तनख्वाह है। अच्छा घर चलता है। खुद सरकारी हैं लेकिन बच्चे निजी स्कूल्स में पढ़ते हैं। क्योंकि वहां व्यवस्था ठीक नहीं रहती। जब मास्टर जी अपने लाडलों को इन स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे तो कोई और क्यों ये रिस्क ले। लिहाजा सरकारी स्कूल्स में मास्टर/मास्टरनी को पढ़ाने के अलावा और काम करने का खूब समय मिल जाता है। अब कुछ मुश्किल होने लगा है। मास्टरजी को सत्तारूढ़ पार्टी के छोटे बढे नेताओं की चौखट पर हाजिरी देनी पड़ती है। किसी समय इनके तबादलों से नेताओं का कोई लेना देना नहीं था। अब तो विधायक या विधानसभा का चुनाव हुए नेता के परवाने के बिना तबादला नहीं होता। जिन मास्टर/ मास्टरनियों की राजनीतिक गलियारों में पहुँच थी उन्होंने अपने तबादले अपनों मनपसंद जगह करवा लिए। बाकियों को फंसा दिया। ऐसे लोग राजनीतिज्ञों के यहाँ धोक लगा रहे हैं। किसी की धोक सफल रहती है किसी की नहीं। चढ़ावे के बिना तो कोई मन्नत पूरी ही नहीं होती। राजनीति की दखल जितनी शिक्षा में है उतनी तो किसी में भी नहीं है। प्रदेश में हजारों हजार मास्टर/मास्टरनी है। इतना चढ़ावा है कि गिनती करने के लिए मशीन लगानी पड़े। नीचे से ऊपर तक सब जानते हैं। कहाँ कहाँ कौन कौन ये सब करवा रहा है, ना तो सरकार की नजर से छिपा है न अधिकारिओं की आँखों से। लेकिन होगा कुछ नहीं। जिसकी अप्रोच है वह मजे में है। जिसको तबादल के रास्ते पता है, उसको कोई टेंशन नहीं है। बाकी सब निराश होकर ऐसे बन्दों की तलाश कर रहे है जो उनका काम करवा सके, दाम लेकर। राजस्थान सरकार का एक मंत्री खुद कहता है कि पैसे देकर करवा लो मेरे बसकी बात नहीं है। इस से अधिक लिखना कोई मायने नहीं रखता। तबादले शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए नहीं होते। ये तो कमाई का जरिया है। जो मास्टर/मास्टरनी एक से दो घंटे का सफ़र करके अपने स्कूल में पहुंचेगा वह क्या तो पढ़ा पायेगा क्या देश की शिक्षा के बारे में चिंतन मनन करेगा। ऐसा तो है नहीं की जिसको जिस गाँव में लगाया है वह वहीँ रहेगा। पता नहीं सरकार कब इन मास्टर/मास्टरनियों को अपने नेताओं के चंगुल से मुक्त करेगी।
Saturday, October 2, 2010
तुझे पराई क्या पड़ी
ओरों के घर
के झगड़े
ए रावण
ना छेड़ तू,
तुझे पराई
क्या पड़ी
अपनी
नीबेड़ तू।