श्रीगंगानगर-नगर के हृदय स्थल गांधी चौक पर कई दशक से अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाला पैगोड़ा होटल अब किसी और का हो गया है। इसे साठ के दशक में वेद प्रकाश सेठी ने स्थापित किया था। कुछ समय ने पैगोड़ा ने अपने खास पहचान बना ली। उसके बाद उनको पुत्रों ने इसकी ख्याति में और बढ़ोतरी की। इसका नाम चमकता ही गया। जो भी खास व्यक्ति इस क्षेत्र मे आया तो उसकी पसंद यही पैगोड़ा होटल रहा। लगभग पांच दशक के अपने सफर में पता नहीं कितनों व्यक्तियों की खातिर इस होटल ने की। आयोजन को भव्यता प्रदान की। इस होटल में कोई कार्यक्रम होते ही वह खुद खास हो जाता था। चाहे वह सगाई का हो या पार्टी का। रिश्तेदार,मित्र यही चर्चा करते...अरे पैगोड़ा में है तो बढ़िया ही होगा। आज तक किसी विवाद में इस होटल का नाम नहीं आया। साफ सुथरा। एक दम फिट। कहीं कोई कमी की गुंजाइश नहीं। यस, वही होटल अब सेठी परिवार का नहीं रहा। किसी और का हो गया। सेठी परिवार पैगोड़ा को बेच दिया है। अब यह गौरी शंकर जिंदल परिवार का है। यह कितने में खरीदा बेचा गया,यह लिखना कोई मायने नहीं रखता। शहर के बीच में इतना पुराना होटल बेचा खरीदा गया है तो निश्चित रूप से बड़ी रकम होगी। खैर,यह तो लेने और देने वालों के आपस का मामला है। खबर बस यही कि अब पैगोड़ा होटल सेठी परिवार का नहीं रहा। चर्चा तो पैगोड़ा रिसोर्ट की डील भी होने की है। लेकिन पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है।
Monday, December 26, 2011
गर्मियों में नहर बंदी का विरोध, क्षेत्र के बाग उजड़ने की आशंका
श्रीगंगानगर-इस क्षेत्र की लाइफ लाइन तीनों नहरों गैंग कैनाल,इन्दिरा गांधी नहर और भाखड़ा नहर में अप्रैल 2012 में प्रस्तावित बंदी को किसान क्षेत्र को बरबाद करने वाला मान रहे हैं। नहर बंदी 50 से 90 दिन तक की होगी। इस दौरान नहरों में पानी नहीं होगा। आज इस बंदी के विरोध में बागों के मालिक जिला कलेक्टर अंबरीष कुमार से मिले और उनको ज्ञापन दिया। किसानों का कहना था कि उनके गर्मी में उनके बागों को दो माह के बाद पानी उपलब्ध हो सकेगा। दो माह तक पानी ना मिलने के कारण बागों में लगे सभी फलों के पेड़ समाप्त होने की आशंका है। इस क्षेत्र की पहचान किन्नू तो बिना पानी के बिलकुल भी नहीं हो सकेगा। किसानों का कहना था कि बंदी सर्दी में ली जानी चाहिए। हालांकि बागों में पानी की डिग्गी हैं मगर उनकी क्षमता अधिकतम एक माह ही है। इस वजह से पानी की उपलब्धता लगातार संभव नहीं।
विभिन्न सूत्रों से पता चला है कि तीनों नहरों के मरम्मत के लिए 1352 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत हुआ है। यह राशि चार साल में खर्च की जानी है। पहले साल बंदी का समय कुछ अधिक रहेगा। उसके बाद आगामी तीन साल इसकी अवधि कम रहेगी। सूत्रों ने कहा कि अगर यह काम नहीं हुआ तो किसानों को उतना पानी भी नहीं मिलेगा जितना अब मिल रहा है। क्योंकि नहरों की हालत बहुत खराब है। सरकारी सूत्र मानते हैं कि बंदी से किसानों पर फर्क तो पड़ेगा,लेकिन उतना नहीं जितना किसान बता रहें हैं।
Friday, December 23, 2011
बड़े बड़े कांग्रेस नेता ज्योति कांडा की छतरी के नीचे
श्रीगंगानगर-नगर विकास न्यास के चेयरमेन ज्योति कांडा का कांग्रेस में कोई बड़ा कद बेशक ना हो किन्तु क्षेत्र के जाने माने बड़े बड़े कांग्रेस नेता उसकी छतरी के नीचे जरूर आ गए। सच है,जो पद पर है वही बड़ा। बाकी जो बचा वह दही में पड़ा हुआ बड़ा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास राजकुमार गौड़। दूसरे खास पूर्व सांसद शंकर पन्नू। तीसरे खास कुलदीप इंदौरा.....ऐसे ही सभापति जगदीश जांदू,कश्मीरी लाल जसूजा,ब्लॉक अध्यक्ष गुरजीत वालिया,ललित बहाल,युवक कांग्रेस के हनुमान मील,रोहित जाखड़,भूपेन्द्र चौधरी,श्याम शेखावटी,महिला कांग्रेस की बबीता वालिया,मनिन्दर कौर नन्दा,विक्रम चितलांगिया...सब के सब चेयरमेन ज्योति कांडा के बुलावे पर नगर विकास न्यास गए। चाहे श्री कांडा ने न्यास के चेयरमेन के रूप में अभी कुछ ना किया हो परंतु कांग्रेस नेता के रूप में वह कर दिया जिसकी धमक देर तक और दूर तक सुनाई देगी। जो नेता अपने आप से बड़ा किसी को मानते ही नहीं वे ज्योति कांडा के सामने जा बैठे सुझाव देकर उसकी चेयरमेनी को सफल बनाने के लिए। राजनीति में तो ऐसा होता नहीं। सब दूर से तमाशा देखते हैं। मन ही मन उसकी असफलता की कामना करते हैं ताकि उसकी विफलता से राजनीतिक फायदा उठाया जा सके। यहां इसके विपरीत हुआ। ज्योति कांडा वह कर दिखाया जो शायद अभी जगदीश जांदू भी नहीं कर सके। जबकि वे मैनेजमेंट में माहिर हैं। राजनीति में ज्योति कांडा की चेयरमेन बनने से पहले शायद यही उपलब्धि थी की वे कांग्रेस नेता मदन लाल कांडा के पुत्र हैं। अब बात और है। वे न्यास के चेयरमेन तो हैं ही इसके अलावा वे वो नेता हो गए जो सभी गुटों के कांग्रेस नेताओं को एक छत के नीचे ला सकने की क्षमता रखते हैं। यह कोई मामूली बात नहीं है। इसके कई संदेश आएंगे, जाएंगे। चाहे कोई अपनी जुबान से कुछ ना कहे। किन्तु राजनीति में एक मुलाक़ात भी बड़ी खबर,बड़ी चर्चा का विषय होती है। राजनीति में यह संदेश कम महत्व पूर्ण नहीं होगा। कई बार मौन बहुत अधिक कह जाता है। एक चित्र एक कहानी बयां करने में सक्षम होता है। राजनीति में इस प्रकार की बैठक तो बहुत कुछ कहने की क्षमता रखती है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ऊपर से सभी को ज्योति कांडा के हाथ मजबूत करने के निर्देश मिले हों। बिना निर्देश तो ये बड़े नेता किसी के पास जाने से रहे। संभव है आने वाले समय में यहां की कांग्रेस राजनीति में कुछ नए प्रष्ठ जुड़ें। क्योंकि दो साल बाद चुनाव हैं और कांग्रेस की हालत खराब। ऐसे में ऊपर वाले अभी से किसी नए को तैयार कर रहें हों तो क्या बड़ी बात हैं। किसी ने कहा है—इश्क मोहब्बत बहुत लिखा है,लैला-मंजनू रांझा-हीर,माँ की ममता,प्यार बहिन का,इन लफ्जों के मानी लिख।
Thursday, December 22, 2011
सर्दी में सीमा पर अधिक चौकसी—डीआईजी

श्रीगंगानगर-सीमा सुरक्षा बल के डीआईजी रणजीत सिंह ने बार्डर पर तैनात सभी अधिकारियों,जवानों को सर्दी में और अधिक चौकन्ना रहने की हिदायत दी है। उन्होने बताया कि बार्डर क्षेत्र में इस बात पर खास निगाह रखी जा रही है कि सर्दी धुंध में कोई राष्ट्र विरोधी तत्व कोई फायदा नी उठा ले। उनका कहना था कि सर्दी में दूर तक देख सकने वाले आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा ऐसे मौसम के लिए विधेश आधुनिक उपकरण भी हैं। धुंध के समय पांच सात किलोमीटर के आगे देखना अधिक मुश्किल हो जाता है। ऐसे में इसी प्रकार के उपकरण सीमा पर तैनात अधिकारियों,जवानों के काम आते हैं। डीआईजी रणजीत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई यहीं के खालसा कॉलेज से की। वे लॉन्ग जंप के जाने माने खिलाड़ी थे। उसी दौरान उनका चयन बीएसएफ में हो गया था। रणजीत सिंह चुरू जिले के रहने वाले हैं। उनके दिल में कॉलेज की यादों का विशाल संग्रह है। कोई भी उनसे कॉलेज की बात करता है तो उनके चेहरे पर आनंद साफ दिखाई पड़ता है।
Wednesday, December 21, 2011
बाहर हंगामा...अंदर चिंतन.....न्यास में नया प्रयोग
Monday, December 19, 2011
पुलिस विभाग में बड़ा फेरबदल जनवरी में संभावित
Thursday, December 15, 2011
मुद्दा एक,बयान अलग अलग,मीडिया ने जताया एतराज,प्रभारी मंत्री से कार्यवाही को कहा
प्रभारी मंत्री ने किया विकास प्रदर्शनी का उदघाटन
Tuesday, December 13, 2011
सो प्रोग्राम पिटे तो पिटे।
पहुंचाया धक्का, नहीं जुटी भीड़
श्रीगंगानगर-जिला कांग्रेस कमेटी ने सोमवार को सरकार के दो मंत्रियों की इमेज को बहुत धक्का पहुंचाया। पता नहीं यह सब उनकी रणनीति का हिस्सा था या अनजाने में हुआ। कमेटी ने सरकार के तीन साल पूरे होने पर महावीर दल मंदिर में कार्यक्रम आयोजित किया। जिसमे राजस्थान के चिकित्सा मंत्री दुर्रु मियां,कृषि विपणन मंत्री गुरमीत सिंह कुन्नर भी आए। चलो कुन्नर का कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं है। किन्तु यह प्रोग्राम सरकार की उपलब्धियों को बताने के बारे में था। और कुन्नर सरकार का एक हिस्सा हैं। जब तक मंत्री रहे तब तक भीड़ के नाम पर नाम मात्र के कांग्रेस जन थे। आम आदमी ने तो होना ही क्या था। कहने को यहां नगर परिषद में कांग्रेस के सभापति हैं। नगर विकास न्यास में कांग्रेस के चेयरमेन हैं। लेकिन इसके बावजूद मंत्रियों की बात सुनने वालों का टोटा हो गया। असल में त कोई भी कांग्रेसी किसी दूसरे के कार्यक्रम में भीड़ देखना ही नहीं चाहता। इस खींचतान के कारण किसी भी प्रोग्राम में भीड़ नहीं होती जो सत्ता पार्टी के कार्यक्रम में होने की उम्मीद की जा सकती है।एक बात और कमेटी के जिलाध्यक्ष कुलदीप इंदौरा का गंगानगर से अब कोई लेना देना रहा नहीं। उनका पूरा ध्यान अनूपगढ़ क्षेत्र पर है। जहां से उन्होने पिछली बार विधान सभा का चुनाव लड़ बड़ी पराजय का सामना किया था। बाकी नेता क्यों कौलदीप की बल्ले बल्ले करवाने लगे। सो प्रोग्राम पिटे तो पिटे।
Sunday, December 11, 2011
बी डी अग्रवाल भी असफल रहे कांडा के लिए भीड़ जुटाने में

श्रीगंगानगर-नगर विकास न्यास के चेयरमेन ज्योति कांडा अग्रवाल के लिए अग्रवाल सेवा समिति के मुख्य संरक्षक बीडी अग्रवाल भी सम्मान जनक भीड़ जुटाने में कामयाब नहीं हो सके। बी डी अग्रवाल ने समिति और सेठ मेघराज चैरिटेबल ट्रस्ट के बैनर तले कांडा का अभिनंदन समारोह आयोजित किया था। नगर में अग्रवालों के 20 से 25 हजार वोट होने की बात की जाती है किन्तु समारोह में एक हजार अग्रवाल भी नहीं पहुंचे। जब समारोह अपने पूरे शबाब पर था तब भी उपस्थिति गरिमापूर्ण नहीं थी। जिले की कई मंडियों से बड़ी संख्या में अग्रवाल समाज के लोग पहुंचे इसके बावजूद कार्यक्रम की वह शान नहीं बन सकी जो होनी चाहिए थी। अनेकानेक संगठनों का कार्यक्रम होने के बाद भी भीड़ कम होना चर्चा का विषय बना हुआ था। कम भीड़ के कारण बी डी अग्रवाल को अपने सम्बोधन में अहम छोड़ने की बात काही। बिना बुलाये समाज के कार्यक्रम में पहुँचने की अपील की। उनको यह कहना पड़ा कि या तो खुद नेतृत्व करो या फिर किसी के समर्थक बनो। बी डी के नेतृत्व में यह पहला ऐसा कार्यक्रम था जिसमें आशा के अनुरूप भीड़ नहीं जुटी। वरना हमेशा इस प्रकार के कार्यक्रम में ना केवल भीड़ होती रही है बल्कि भीड़ में उत्साह भी देखने को मिलता था। इस बार ना तो कोई उत्साह था ना कोई उमंग। भीड़ के लिए खुद बी डी अग्रवाल ने समाज के लोगों को व्यक्तिगत रूप से कहा। ऐसा लगता है कि जैसे समाज में ज्योति कांडा को लेकर कोई खास उत्साह नहीं है। इसके साथ साथ संगठन के पदाधिकारी खुद तो आ गए किन्तु अपने परिवार को नहीं लाये। बहुत से कांडा जी को माला पहना कर चलते बने। जो आए उनमें से अधिकांश केवल और केवल बी डी अग्रवाल को सूरत दिखाने के लिए ही आए।
अग्रवाल समाज चार विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगा-बी डी
काम से पहले ही होने लगा सम्मान

श्रीगंगानगर-नगर विकास न्यास के चेयरमेन ज्योति कांडा अग्रवाल ने चेयरमेन के रूप में अभी कोई काम नहीं किया। कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया। इसके बावजूद चेयरमेन का सम्मान होना शुरू हो गया। पता नहीं यह परंपरा है या चापलूसी। इससे तो ऐसे लगता है जैसे काम का कोई महत्व ही नहीं है,पद ही सब कुछ हो गया। एक बार जो सम्मान का सिलसिला आरंभ हो गया वह तब चलेगा जब तक इनकी विदाई नहीं हो जाती और तब काम करने के लिए कुर्सी नहीं बचेगी। विश्वास नहीं तो राजकुमार गौड़ से पूछ लो। न्यास क्षेत्र का कोई गली,मोहल्ला ऐसा नहीं जहां गौड़ साहब का सम्मान नहीं हुआ हो। शहर के आम जन में ज्योति के चेयरमेन बनने पर अच्छी प्रतिक्रिया है मगर सम्मान करवाने को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जा रहा। एक बात और चेयरमेन बनने के बाद जो चहल पहल ज्योति कांडा अग्रवाल के आस पास होनी चाहिए वह नहीं हो पाई है। ना तो बड़ी संख्या में लोग उनसे मिलने के लिए न्यास दफ्तर पहुंचे ना ही निवास। दो,चार,पांच लोगों का आना कोई आना नहीं है। इतने तो वैसे भी आते जाते होंगे। पुराना परिवार है। कारोबार है। समाज है। रिश्तेदार है। इस प्रकार के पद मिलने के बाद जो भीड़ दिखनी चाहिए वह नजर नहीं आ रही। राजनीतिक आदमी के पास पद होने के बावजूद भीड़ ना हो तो जनता में संदेश बढ़िया नहीं जाता। खुद को भी अनमना महसूस होता है। अभी तक जीतने भी प्रोग्राम श्री कांडा के हुए उनमे नाम मात्र के लोग थे। इसी प्रकार रहा तो जो रुतबा कांडा परिवार का था वह भी नहीं रहेगा। बेशक जनता खुल कर बोलने की हिम्मत ना करे किन्तु आपस में बातचीत के समय इस प्रकार की बातें चर्चा का मुख्य विषय होतीं हैं। धीरे धीरे एक दूसरे से होती हुई यही टिप्पणियाँ शहर भर में प्रचलित हो किसी भी राजनीतिक आदमी का बंटाधार कर देती हैं। नए चेयरमेन के साथ आरंभ में ही ऐसा हुआ तो उनके लिए यह गंभीर और सभापति जगदीश जांदू,राजकुमार गौड़ के लिए सुकून देने वाली बात है। आखिर तीनों का लक्ष्य भी एक ही तो है।
Saturday, December 10, 2011
रिसर्च के लिए शव का दान किया


श्रीगंगानगर- स्थानीय विनोबा बस्ती के एक परिवार ने अपने मुखिया का निधन हो जाने पर उसके परिजनों ने समाज सेवा का अनुकरणीय उदाहरण पेश किया। उन्होंने मृत देह को मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर दिया। इस मौके पर जहां गुरूद्वारा साहब के ग्रंथी ने अरदास की, वहीं डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों ने भी दिवंगत की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना । डेरा सच्चा सौदा की देहदान कमेटी के रामचन्द्र चौपड़ा ने बताया कि 287 विनोबा बस्ती निवासी डा. श्यामसुंदर के पिता सुरेश अरोड़ा का कल निधन हो गया था। जिस पर उनकी अंतिम इच्छा को देखते हुए उनके परिजनों ने नेत्रदान-देहदान कमेटी से सम्पर्क किया। कमेटी ने सुरक्षित नेत्र उत्सर्जित करवा जगदम्बा धर्मार्थ नेत्र चिकित्सालय भिजवाये। परिजनों की देहदान की इच्छा को देखते हुए कमेटी ने टांटिया मेडिकल कॉलेज से सम्पर्क किया। देहदान के लिए सहमति व्यक्त करवाकर डेरा अनुयाईयों व परिजनों की उपस्थिति में रिसर्च के लिए देहदान कर दी गई। अंतिम शव यात्रा में सुरेश अरोड़ा की अर्थी को पुत्रों डा. श्यामसुंदर, प्रवीण व पुत्री कंचन अरोड़ा ने कंधा दिया। शव यात्रा में शहर के गणमान्य नागरिक, पार्षद व पूर्व पार्षद सहित सैंकड़ों डेरा अनुयाई शामिल हुए। ज्ञात रहे कि नगर में पहले भी कई परिवार अपने परिजन के शवों को रिसर्च के लिए मेडिकल कालेज को दान कर चुके हैं।
कांडा के नियुक्ति से अग्रवाल समाज का मान बढ़ा है-बी डी
Thursday, December 8, 2011
कांग्रेस में सत्ता के तीन केंद्र गौड़,जांदू और कांडा
कांग्रेस की खिलाफत करने वाला बना यूआईटी का अध्यक्ष
Monday, December 5, 2011
Sunday, December 4, 2011
कलेक्टर,एसपी का शासन नहीं है

श्रीगंगानगर-आनंद कुमार गौरव की दो लाइनों से बात शुरु करते हैं-खड़े बिजूके खेत में,बनकर पहरेदार,भोले भाले डर रहे,चतुर चरें सौ बार। जिस देश में सभी धर्म,पंथ एक समान हैं उसी देश के श्रीगंगानगर क्षेत्र में किसके घर,गली,मोहल्ले,में कौन किस देवी,देवता,धर्म गुरु,संत,महात्मा......का नाम लिया जाएगा,किसका नहीं। शहर में कौन आएगा? किस मंदिर में किस किस को आरती,पूजा करने की स्वीकृति होगी! मस्जिद में नमाज पढ़ी जाएगी या नहीं!बाइबल पढ़ने,सुनने के अधिकारी कौन हैं! समाज सेवा का कार्य होगा या नहीं, यह सब टिम्मा एंड कंपनी तय करेगी।उनकी मर्जी इजाजत दे ना दे। इजाजत मिल गई तो करो कार्यक्रम वरना नहीं। कलेक्टर,एसपी कुछ नहीं अब तो जो कुछ है टिम्मा एंड कंपनी ही है। क्षेत्र में कितने ही ऐसे लोग हैं जो आईपीसी,सीआरपीसी,पुलिस एक्ट,आबकारी एक्ट...की धाराओं में मुल्जिम हैं। बहुत लोगों ने दोषी होने पर सजा भी काटी है। इन सभी ने किसी आदमी,परिवार,समाज की भावनाओं को आहत किया होगा! तो क्या इन सबको शहर से बाहर कर दिया जाए। विभिन्न धाराओं में आरोपित लोगों को शहर में आने ही ना दिया जाए। यह संभव नहीं। क्योंकि इनके लिए कोई अलग ठिकाना नहीं है। सभी घर,समाज,गली,मोहल्ले,नगर,शहर कहीं भी आने जाने के लिए स्वतंत्र हैं। तो फिर संत राम रहीम गुरमीत सिंह को क्यों रोका जा रहा है। मत मानो संत,एक साधारण से साधारण आदमी ही सही। कोई इंसान जिस पर चाहे जैसे भी कितने ही गंभीर आरोप हों क्या वह कोई सामाजिक,धार्मिक कार्य नहीं कर सकता। हमारे यहां तो ऐसे लोगों को मुख्य अतिथि तक बनाने का रिवाज है। क्या अब यहां वही होगा जो टिम्मा एंड कंपनी चाहेगी?यह प्रश्न कलेक्टर एसपी से करना बेमानी है। उन्होने तो अपनी कार्य प्रणाली से बता दिया। इसलिए प्रश्न जनता की अदालत में । क्योंकि जो प्रशासन चंद लोगों की धमकी से डर कर सामाजिक कार्य की इजाजत नहीं दे सकते, वे ये जिला चला रहें हैं, कैसे मान लें। जनता जान गई कि कलेक्टर,एसपी वो नहीं है जो सबकी भावनाओं की कद्र के लिए,सबका मान सम्मान बनाए रखने के लिए,सबकी स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए सरकार नियुक्त करती है। कलेक्टर,एसपी तो यह कंपनी है। यही कंपनी है यहां की शासक,प्रशासक और सरकारी अधिकारी,कर्मचारी हैं इनके सामंत। जनता है डरपोक प्रजा। जो कंपनी के भय के चलते अभियान के पक्ष में खड़ी नहीं हो सकी। सही सुनते थे कि रब नेड़े या घुसण्ड। बेचारी प्रजा क्या करे! जब एसपी कलेक्टर ही हिम्मत नहीं दिखा सके तो आम आदमी की क्या बिसात! डर सबको लगता है। गला सबका सूखता है। आनंद गौरव की ही लाइन से बात समाप्त करते हैं—बहेलिया और चील में पनपा गहरा मेल,कबूतरों के साथ में खेलें खेल गुलेल।
Tuesday, November 15, 2011
जादूगर के जादू का इंतजार
Thursday, October 13, 2011
समय के मारे हैं
समय के मारे हैं इसलिए बेचारे हैं।
वरना चाहने वाले तो हमारे भी
आपके जैसे बहुत सारे हैं।
Tuesday, October 11, 2011
ओवरब्रिज। अंडरपास। बढ़िया सड़कें।हरियाली। सुंदर स्ट्रीट लाइट...मुर्दों के लिए
श्रीगंगानगर-सिवरेज। ओवरब्रिज। अंडरपास। बढ़िया सड़कें। चारों तरफ हरियाली। सुंदर स्ट्रीट लाइट........और भी बहुत कुछ जो शहर को बहुत अच्छा कहलाने को मजबूर कर दे। मगर ये सब क्या मुर्दों के लिए होगा? वर्तमान हालात में तो इसका जवाब यस ही है। जिंदा ही नहीं रहे तो इन सबका क्या मतलब। ये सब तो इन्सानों के लिए होता है। इंसान इनके लिए नहीं। लाइट आज आवश्यक क्या अतिआवश्यक है। इसके बिना जीवन की कल्पना......बहुत ही मुश्किल है। श्रीगंगानगर शहर में तो कुछ अधिक ही कठिन। क्योंकि यहां इंसान कम मच्छर अधिक है। इंसान तो कई लाख होंगे मच्छर कई करोड़। इंसान गर्मी तो काट ला मगर मच्छरॉ का क्या करे? सोमवार सुबह से मंगलवार सुबह तक शहर में लाइट की क्या स्थिति रही है! सब जानते हैं। संभव है बड़े अधिकारी ना जानते हों। कारण कि उनके यहां वैकल्पिक व्यवस्था रहती है।लाइट जाने का मतलब क्या होता है ये वे भी नहीं समझते होंगे जिनके यहां इंवर्टर है। जनरेटर की सुविधा है। लाइट ना होने का असली अर्थ वही बता सकते हैं जो सारी रात जागे हैं। लाइट तो गई सो गई। मच्छरों ने कुछ पल भी चैन से सोने नहीं दिया। रात को बिजली ना होने से क्या होता है उस शिशु की माँ से पूछो जो रात भर कभी पंखे से। कभी गत्ते से और कभी आँचल से हवा कर मच्छर भागती रही। वह बताएगी उसकी बेचैनी। नहीं भी बताए तो उसकी आँखों में पढ़ लेना। सुबह उसको सुला कर तब कहीं माँ को करार आया होगा। धीरे धीरे घर का काम निपटाती है कि कहीं उसके लाडले की नींद ना टूट जाए। ऐसा ही हाल था बुजुर्गों का। रात भर परेशान रहे। इतनी बेचैनी कि उसका वर्णन करना संभव नहीं। रात भर जागा इंसान जल्दी ड्यूटी करने क्या तो जाएगा। चला भी गया तो क्या काम कर पाएगा। कलेक्टर कहते हैं सिवरेज का निर्माण जल्दी शुरू होगा। अंडर पास भी बनवा देंगे। सड़कों की मरम्मत भी हो जाएगी। स्ट्रीट लाइट भी शहर को जगमग करेंगी। लेकिन कलेक्टर साहब ये सब काम किसके आएगा।लाइट होती नहीं। मच्छरों की भरमार। ऐसे में जिंदा कौन रहेगा? जो स्वस्थ होगा वही। ऐसे हालात में कोई स्वस्थ कैसे रह सकता है। इसलिए आपको कुछ करना है तो पहले मच्छरों ने निजात दिलवाइए। लाइट 24 घंटे नहीं तो उस समय तो रहे जब सबसे अधिक जरूरी हो। यह सब नहीं भी करवा सकते तो कोई बात नहीं। क्योंकि हम तो हमारे चुने जन प्रतिनिधियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते आपको कहने की हिम्मत तो बहुत बड़ी बात है।
Sunday, October 9, 2011
शुक्रिया जिला कलेक्टर। धन्यवाद एसपी साहब।
श्रीगंगानगर-शुक्रिया जिला कलेक्टर। धन्यवाद एसपी साहब। आभार उन सभी अधिकारियों का जो उनके साथ थे।श्रीगंगानगर के इतिहास में यह पहला मौका था जब कलेक्टर,एसपी की अगुवाई में विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने बस में एक साथ जिला मुख्यालय का भ्रमण किया। उसकी मुख्य समस्या को देखा। उसके समाधान के बारे में चर्चा की।यह तो संभव है कि कलेक्टर एसपी शहर का दौरा करें। अधिकारियों को भी बुला लें। धूल उड़ाती कई सरकारी गाड़ियां इधर उधर आती जाती दिखाई दें। जनता को लगे कि कुछ हो रहा है। मीडिया ये समझे कि कोई बड़ी गंभीर घटना हो गई। पर यह बात कल्पना से परे थी कि जिला प्रशासन ही बस में सवार हो नगर के हालात खुद देखेगा। ना केवल देखेगा बल्कि वहीं चर्चा भी करेगा। शहर का कोई हिस्सा शायद ही बचा होगा जहां बस ना पहुंची हो। बात ये नहीं कि समस्याओं का समाधान होगा या नहीं। बात ये भी तो है कि अब तो खुद प्रशासन ने अपनी आंख से सब कुछ देख लिया। कुछ ना कुछ तो होगा ही। यह सब पब्लिसिटी के लिए किया हो लगता नहीं। क्योंकि कलेक्टर,एसपी को पब्लिसिटी करवा के क्या करना है। प्रशासनिक सूत्रों से पता चला है कि कलेक्टर और एसपी में बहुत अच्छी ट्यूनिंग है। इनका मकसद दीपावली तक शहर की दशा में सुधार करने की है। ताकि इस बड़े त्योहार पर जनता को अपना शहर ठीक ठाक लगे। चाहे बहुत बड़ा सुधार कम समय में करने में कलेक्टर,एसपी सफल ना हों लेकिन इतना जरूर हो जाएगा जिससे जनता को ये लगे कि बस में प्रशासन घूमा तो कुछ तो हुआ। ये संयोग ही है कि ठीक दिवाली के दिन ही इस बार श्रीगंगानगर का स्थापना दिवस भी है। दोनों ही श्रीगंगानगर का स्थापना दिवस नए स्टाइल से मनाने के बारे में न केवल सोच रहें हैं बल्कि दोनों के पास कोई प्लानिंग भी है। सूत्र कहते हैं कि बुजुर्ग व्यक्तियों के अनुभव भी इस प्लानिंग का हिस्सा होंगे। इसके अलावा नगर के अनेक ऐसे व्यक्ति भी स्थापना दिवस समारोह में सक्रिय योगदान देने के लिए प्रशासन के साथ हो सकते हैं जो निर्विवाद हैं। जिनकी सोच कुछ हट के करने की हो। प्रशासन सूत्रो से इसी प्रकार के व्यक्तियों की जानकारी प्राप्त करने में लगा है। संभव है उन तक प्रशासन का संदेह पहुंचे।अनिल गुप्ता कहते हैं-समय स्वयं समझा देगा अपने और पराए कौन,मैं मुद्दत से उसका हूं लेकिन उसे बताए कौन। एसएमएस मनीष गर्ग का—संता बंता से,कौनसी कास्ट के लोग देश के अच्छे नागरिक होते हैं? बंता-बनिए। संता-कैसे?बंता-हर स्थान पर लिखा होता है देश के अच्छे नागरिक “बनिए”।
Tuesday, October 4, 2011
Sunday, October 2, 2011
अचरज,प्रसन्नता,खिन्नता,चिंता,उम्मीद और असमंजस है दवा योजना
श्रीगंगानगर-अचरज,प्रसन्नता,खिन्नता,असमंजस, थोड़ी चिंता और उम्मीद। बस यही है राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना। वह गरीब जिसको मुफ्त दवा मिली उसको अचरज और प्रसन्नता दोनों का अनुभव हुआ। डाक्टरों के लिमिट तय हो गई।उनको वही दवा लिखनी थी जो उनकी लिस्ट में है।जो नर्सिंग स्टाफ कभी काम नहीं करता था उनको काम करना पड़ा। इसलिए उनको खिन्नता हुई। वे लोग भी ऐसे ही दिखे जिनको पूरी दवा मुफ्त नहीं मिली। सरकारी अस्पतालों के आस पास जो दवाइयों की दुकाने हैं उनके मालिकों के चेहरों पर कुछ उदासी,चिंता थी।आज उनका काम 50 से 75 प्रतिशत कम रहा।मगर इसके बावजूद उनको उम्मीद थी कि उनके कारोबार पर इस योजना का अधिक असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि सरकार पूरी दवा उपलब्ध नहीं करवा सकती। जो दवा सरकारी दुकान पर नहीं होगी वह मरीज को बाहर से लानी ही होगी। इसके अलावा ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत होगी लाइन में लगने की बजाए प्राइवेट दुकान से दवा खरीद कर जल्दी घर या अपने काम पर जाना चाहेंगे। एक वर्ग ऐसा भी है जो असमंजस में है कि उनका क्या होगा? इस वर्ग में पेंशनर्स अधिक हैं। सबसे अधिक राशि भी सरकार इन्ही की दवाओं पर खर्च करती थी। इसका दुरुपयोग भी भी बहुत अधिक होता था। कोई भी योजना पहले ही दिन सौ प्रतिशत सफल हो जाए,संभव नहीं। ऐसा ही यहां भी था। सरकारी दुकान पर जो दवा थी वह दे दी गई। जो नहीं थी पर्ची पर उसके नाम के आगे “उपलब्ध नहीं” की मोहर लगा दी गई। ताकि मरीज दवा कहीं और से ले खरीद सके। इसी योजना को शुरू करने के लिए राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त संसदीय सचिव श्री कुमावत यहां आए। सरकारी अस्पताल प्रांगण में समारोह हुआ। जिसमें आम जन की अनुपस्थिति साफ दिखाई दे रही थी। वहां श्री कुमावत के रूप में सरकार थी। सरकारी पार्टी के नेता थे।विपक्ष के रूप में बीजेपी विधायक राधेश्याम गंगानगर। सरकार के प्रतिनिधि के रूप में प्रभारी सचिव थे। जिला कलेक्टर थे। डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ तो होना ही था।
Friday, September 30, 2011
दुर्गा मंदिर में भी अतिथि जिला कलेक्टर देवो भवः

Thursday, September 22, 2011
अजय ने डाला मुश्किल में
गणेश जी फिर चर्चा में
श्रीगंगानगर- गणेश जी के नाम पर आज शाम को जो चर्चा शुरू हुई वह दुनिया भर में फैल गई। कौन जाने किसने किसको पहला फोन करके या मौखिक ये कहा, गणेश जी की मूर्ति के सामने घी का दीपक जला कर तीन मन्नत मांगो पूरी हो जाएगी। उसके बाद तीन अन्य लोगों को ऐसा करने के लिए कहो। बस उसके बाद शुरू हो गया घर घर में गणेश जी के सामने दीपक जलाने,मन्नत मांगने और आगे इस बात को बताने का काम। एक एक घर में कई कई फोन इसी बात के लिए आए। श्र्द्धा,विश्वास और आस्था कोई तर्क नहीं मानती। अगर किसी के घर में कुछ ऐसा करने को तैयार नहीं थे तो एक ने यह कह दिया-अरे दीपक जलाने में क्या जाता है। कुछ बुरा तो नहीं कर रहे। लो जे हो गया। बस, ऐसे ही यह सब घरों में होने लगा। किसी के पास जोधपुर से फोन आया। तो किसी के पास दिल्ली से। किसी को इसकी सूचना अपने रिश्तेदार से मिली तो किसी को दोस्त के परिवार से। शुरुआत कहाँ से किसने की कोई नहीं जान सकता। 1994 के आसपास गणेश जी को दूध पिलाने की बात हुई थी। देखते ही देखते मंदिरों में लोगों की भीड़ लग गई थी। लोग अपना जरूरी काम काज छोडकर गणेश जी को दूध पिलाने में लगे थे।
गलती,भूल
श्रीगंगानगर के एक अखबार “सीमा संदेश”में आज पेज 10 पर विज्ञापन छपा। जिसमे राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा सम्मानित होने पर किसी को बधाई दी गई है। उनको शुभचिंतकों ने। विज्ञापन में जो फोटो लगा है वह है रिश्वत लेते पकड़े गए हनुमानगढ़ के जेल उपधीक्षक का। साथ में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अधिकारी। गलती होना तो स्वाभाविक है। अखबार में ऐसा हो जाता है। कल सुधार हो जाएगा। शायद इस गलती,भूल का पता नहीं लगता अगर रिश्वत वाली खबर इस विज्ञापन के निकट ना होती तो। आपको याद होगा कि एक गलती पर राजस्थान के मंत्री को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था।
Sunday, September 18, 2011
चिकित्सक बेटे के कंधे को तरस गई पिता की अर्थी
श्रीगंगानगर-सनातन धर्म,संस्कृति में पुत्र की चाहना इसीलिए की जाती है ताकि पिता उसके कंधे पर अंतिम सफर पूरा करे। शायद यही मोक्ष होता होगा। दोनों का। लेकिन तब कोई क्या करे जब पुत्र के होते भी ऐसा ना हो। पुत्र भी कैसा। पूरी तरह सक्षम। खुद भी चिकित्सक पत्नी भी। खुद शिक्षक था। तीन बेटी,एक बेटा। सभी खूब पढे लिखे। ईश्वर जाने किसका कसूर था? माता-पिता बेटी के यहाँ रहने लगे। पुत्र,उसके परिवार से कोई संवाद नहीं। उसने बहिनों से भी कोई संपर्क नहीं रखा। बुजुर्ग पिता ने बेटी के घर अंतिम सांस ली। बेटा नहीं आया। उसी के शहर से वह व्यक्ति आ पहुंचा जो उनको पिता तुल्य मानता था। सूचना मिलने के बावजूद बेटा कंधा देने नहीं आया।किसको अभागा कहेंगे?पिता को या इकलौते पुत्र को! पुत्र वधू को क्या कहें!जो इस मौके पर सास को धीरज बंधाने के लिए उसके पास ना बैठी हो। कैसी विडम्बना है समाज की। जिस बेटी के घर का पानी भी माता पिता पर बोझ समझा जाता है उसी बेटी के घर सभी अंतिम कर्म पूरे हुए। सालों पहले क्या गुजरी होगी माता पिता पर जब उन्होने बेटी के घर रहने का फैसला किया होगा! हैरानी है इतने सालों में बेटा-बहू को कभी समाज में शर्म महसूस नहीं हुई।समाज ने टोका नहीं। बच्चों ने दादा-दादी के बारे में पूछा नहीं या बताया नहीं। रिश्तेदारों ने समझाया नहीं। खून के रिश्ते ऐसे टूटे कि पड़ोसियों जैसे संबंध भी नहीं रहे,बाप-बेटे में। भाई बहिन में। कोई बात ही ऐसी होगी जो अपनों से बड़ी हो गई और पिता को बेटे के बजाए बेटी के घर रहना अधिक सुकून देने वाला लगा। समझ से परे है कि किसको पत्थर दिल कहें।संवेदना शून्य कौन है? माता-पिता या संतान। धन्य है वो माता पिता जिसने ऐसे बेटे को जन्म दिया। जिसने अपने सास ससुर की अपने माता-पिता की तरह सेवा की। आज के दौर में जब बड़े से बड़े मकान भी माता-पिता के लिए छोटा पड़ जाता है। फर्नीचर से लक दक कमरे खाली पड़े रहेंगे, परंतु माता पिता को अपने पास रखने में शान बिगड़ जाती है। अडजस्टमेंट खराब हो जाता है। कुत्ते को चिकित्सक के पास ले जाने में गौरव का अनुभव किया जाता है। बुजुर्ग माता-पिता के साथ जाने में शर्म आती है। उस समाज में कोई सास ससुर के लिए सालों कुछ करता है। उनको ठाठ से रखता है।तो यह कोई छोटी बात नहीं है। ये तो वक्त ही तय करेगा कि समाज ऐसे बेटे,दामाद को क्या नाम देगा! किसी की पहचान उजागर करना गरिमापूर्ण नहीं है।मगर बात एकदम सच। लेखक भी शामिल था अंतिम यात्रा में। किसी ने कहा है-सारी उम्र गुजारी यों ही,रिश्तों की तुरपाई में,दिल का रिश्ता सच्चा रिश्ता,बाकी सब बेमानी लिख।