Wednesday, December 31, 2008
प्रीत,प्यार,स्नेह और संबंधों की धरा पर
Tuesday, December 30, 2008
युद्ध? को भी बना देंगे बाज़ार
अख़बारों में बॉर्डर के निकट रहने वाले लोगों के देश प्रेम से ओत प्रोत वक्तव्य छाप रहें हैं।अब कोई ये तो कहने से रहा कि हम कमजोर हैं या हम सेना को अपने खेत नहीं देंगें। मुफ्त में देता भी कौन है। जिस जिस खेत में सुरंगें बिछाई गई थीं उनके मालिकों को हर्जाना दिया गया था। हमारे इस बॉर्डर पर तो सीमा सुरक्षा बल अपनी ड्यूटी कर रहा है. सेना उनके आस पास नहीं है। हैरानी तो तब होती है जब दिल्ली ,जयपुर के बड़े बड़े पत्रकार ये कहतें हैं कि आपके इलाके में सेना की हलचल शुरू हो गई। अब उनको कौन बताये कि इस इलाके में कई सैनिक छावनियां हैं , ऐसे में यहाँ सेना की हलचल एक सामान्य बात है। आम जन सही कहता है कि युद्ध केवल मीडिया में हो रहा है।
Tuesday, December 23, 2008
करना नहीं माफ़
निश्चय कर लो
ये साफ़,
पाक को
करना नही माफ़,
अगर कर दिया
इस बार भी माफ़,
तो सर पर
नाचेगा ये
नापाक पाक।
----गोविन्द गोयल
Monday, December 22, 2008
मंदी की मार, पत्रकार बेकार
Sunday, December 21, 2008
मन है पाकिस्तानी
हमारे नेताओं की
देखो कारस्तानी,
तन है हिंदुस्तान में
मन है पाकिस्तानी।
----गोविन्द गोयल
Saturday, December 20, 2008
उसका नाम है पाकिस्तान
--- चुटकी----
जिसका ना दीन
ना कोई ईमान,
उसका नाम है
पाकिस्तान।
Friday, December 19, 2008
कमाऊ पूत की उपेक्षा
अक्सर यह सुनने को मिल ही जाता है कि माँ भी उस संतान का थोड़ा पक्ष जरुर लेती है जो घर चलने में सबसे अधिक योगदान देता हो। किंतु राजनीति में ऐसा नही है। ऐसा होता तो राजस्थान के सी एम अशोक गहलोत अपने मंत्री मंडल गठन में श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ की उपेक्षा नही करते। दोनों जिले खासकर श्रीगंगानगर आर्थिक,सामाजिकऔर सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। किंतु श्री गहलोत ने अपने मंत्री मंडल में इस जिले के किसी विधायक को शामिल नही किया। यह जिला सरकार को सबसे अधिक राजस्व देता है,लेकिन इसकी कोई राजनीतिक पहुँच दिल्ली और जयपुर के राजनीतिक गलियारों में नही है। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले से कांग्रेस को ६ विधायक मिले। इसके अलावा २ निर्दलियों ने सरकार बनने हेतु अशोक गहलोत ने समर्थन दिया। समर्थन देने वाला एक निर्दलीय सिख समाज से है इसी ने सबसे पहले अशोक गहलोत को समर्थन दिया। यह पहले भी विधायक रह चुका है। सब लोग यहाँ तक की मीडिया भी सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिलने के गीत गा रहा है। पता नहीं उनका ध्यान भारत-पाक सीमा से सटे श्रीगंगानगर जिले की ओर क्यूँ नही जाता। क्या इस इलाके के विधायक उस गोलमा देवी जितने भी लायक नहीं जिसको शपथ लेनी भी नही आई। इस से साफ साबित होता है कि जयपुर के राजनीतिक गलियारों में हमारे जिले की क्या अहमियत है।
किसी को यह सुनने में अटपटा लगेगा कि राजस्थान के इस लाडले जिले की कई मंडियों में रेल लाइन तक नहीं है जबकि वहां करोड़ों रुपयों का कारोबार हर साल होता है। छोटे से छोटा मुकदमा भी एस पी की इजाजत के बिना दर्ज नही होता। जिला कलेक्टर ओर एस पी नगर की गली ओर बाज़ार तक नहीं जानते। उनके पास नगर के ऐसे पॉँच आदमी भी नहीं जो नगर में कोई कांड होने पर उनकी मदद को आ सके, या उनके कहने से विवाद निपटाने आगे आयें। यहाँ उसी की सुनवाई होती है या तो जिसके पैर में जूता है या काम के पूरे दाम। इसके अलावा कुछ नहीं । हमारें नेताओं में इतनी हिम्मत ही नहीं जो अपना दबदबा जयपुर और दिल्ली के गलियारों में दिखा सकें।
"चिंताजनक हैं आज जो हालात मेरी जां,हैं सब ये सियासत के कमालात मेरी जां"
"खुदगर्जियों के जाल में उलझे हुये हैं सब,सुनकर समझिये सबके ख्यालात मेरी जां"
"अब अपराधियों से ख़ुद ही निपटो, फरियादी का तो रपट लिखवाना मना है"
Wednesday, December 17, 2008
जूते की हसरत दिल में रह गई
पैरों में रहना
मेरी नियति है,
फ़िर पैर मेरा हो
आपका उसका
या हो बुश का,
पहली बार किसी ने
मुझ पर दया दिखाई
किसी बड़े के मुंह
लगने की उम्मीद जगाई,
उसने पैरों में पड़े जूते को
हाथ में लिया और
फैंक दिया पूरी ताकत से
ताकि मैं ठीक से
बुश के मुंह जा लगूं
या उसके शीश पर
सवार हो ताज बनू ,
अफ़सोस बुश के
घुटनों ने वफ़ा निभाई
मुझे आता देख तुंरत
झुक गए मेरे भाई,
दोनों बार ऐसा ही हुआ
पर, मैं तो कहीं का ना रहा,
मुंह लगने की हसरत
तो पूरी क्या होनी थी
मैं तो पैरों से भी गया,
हाँ इस बात का
गर्व जरुर है कि
जो किसी के
बस में नहीं आता है
वह हमें आते देख
घुटनों के बल झुकने को
मजबूर हो जाता है।
Tuesday, December 16, 2008
लो मैं आ गया
सॉरी ! अचानक बिना बताये गायब रहना पड़ा। इस बीच बुश के साथ वो हो गया जो किसी ने कल्पना भी नही की होगी। कभी ज़िन्दगी में ऐसा होता है कि हम सोच भी नहीं पाते वह हो जाता है। अमेरिका के प्रेजिडेंट की ओर किसी की आँख उठाकर देखने भर की हिम्मत नहीं होती यहाँ जनाब ने दो जूते दे मारे, वो तो बुश चौकस थे वरना कहीं के ना रहते बेचारे। अमेरिकी धौंस एक क्षण में घुटनों के बल झुक गई। इसे कहते हैं वक्त ! वक्त से बड़ा ना कोई था और ना कोई होगा। यह वक्त ही है जिसे हिन्दूस्तान की लीडरशिप को इतना कमजोर बना दिया कि वह पाकिस्तान को धमकी देने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। यह वही हिन्दूस्तान तो है जिसने आज के दिन [ १६/१२/१९७१] को पाकिस्तान का नक्श बदल दिया था। आज हमारी हालत ये कि जब जिसका जी चाहे हमें हमारे घर में आकर पीट जाता है। हमारी लीडरशिप के पैर इतने भारी हो गए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ उठ ही नहीं पा रहे। हिन्दूस्तान की विडम्बना देखो कि उसके लिए क्रिकेट ही खुशी और गम प्रकट करने का जरिए हो गया। क्रिकेट में टीम जीती तो भारत जीता। कोई सोचे तो कि क्या क्रिकेट में जीत ही भारत की जीत है? इसका मतलब तो तो क्रिकेट टीम भारत हो गई, वह मुस्कुराये तो हिन्दूस्तान हँसे वह उदास हो तो हिन्दुस्तानी घरों में दरिया बिछा लें, ऐसा ही ना।
क्या हिन्दूस्तान की सरकार उस इराकी पत्रकार की हिम्मत से कुछ सबक नही ले सकती? उसका जूता मारना ग़लत है या सही यह बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन उसने अपनी भावनाएं तो प्रकट की। हिन्दुस्तानी अगर मिलकर अपने दोनों जूते पाकिस्तान को मारे तो वह कहीं दिखाई ना दे। सवा दो करोड़ जूते कोई काम नहीं होते। लेकिन हम तो गाँधी जी के पद चिन्हों पर चलने वाले जीव हैं इसलिए ऐसा कुछ भी नही करने वाले। चूँकि लोकसभा चुनाव आ रहे हैं इसलिए थोड़ा बहुत नाटक जरुर करेंगें।
Friday, December 12, 2008
मौन! सबसे बड़ा झूठ
मौन ! अर्थात
सबसे बड़ा झूठ
भला आज
मौन सम्भव है?
बाहर से मौन
अन्दर बात करेगा
अपने आप से
याद करेगा उन्हें
जिन्होंने उसे किसी भी
प्रकार से लाभ पहुँचाया
या मदद की,
कोसेगा उन जनों को
जिनके कारण उसको
उठानी पड़ी परेशानियाँ
झेलनी पड़ी मुसीबत,
मौन है , मगर
अपनी सफलताओं की
सोच मुस्कुराएगा
जब अन्दर ही अन्दर
कुछ ना कुछ
होता रहा हर पल
तो मौन कहाँ रहा?
मौन तो तब होता है
जब निष्प्राण हों
तब सब मुखर होते हैं
और वह होता है
एकदम मौन
जिसके बारे में
सब के सब
कुछ ना कुछ
बोल रहे होते हैं
यही तो मौन है
जब सब
जिसके बारे में बोले
वह कुछ ना बोले
पड़ा रहे निश्चिंत
अपने में मगन
Wednesday, December 10, 2008
तुम क्या हो!
मैं नहीं जानता
तुम क्या हो, और
क्या बनना चाहते हो
लेकिन तुम्हारा होने के नाते
तुमसे इतना तो कहूँगा
कि तुम जो हो वही रहो
वो बनने की कोशिश
ना करो जो
तुम नहीं हो
कही ऐसा ना हो
कि भविष्य का
कोई आता जाता झोंका
तुम्हारे वर्तमान
अस्तित्व को मिटा दे
और उसके बाद
तू अपने अतीत
को याद करके
अपनी करनी पर
पछताते रहो।
Tuesday, December 9, 2008
आपका कर्जदार हूँ--कुन्नर
आदर और मान के हकदार मेरे इलाके के नागरिकों आपने अपने इरादों से ना केवल लोकतंत्र का मतलब सार्थक किया है बल्कि यह संदेश भी घर घर पहुँचाया है कि लोकतंत्र में लोक ही सबसे शक्तिशाली और सर्वोपरि होता है। मैंने आप के बीच में पंच से विधायक तक का चुनाव लड़ा। मगर ये चुनाव इनमे सबसे अलग था। क्योंकि यह चुनाव जनता ने जनता के लिए लड़ा। आप सब जानते हैं कि मैं तो अपने कदम पीछे हटा चुका था लेकिन वह आपका संकल्प और पक्का इरादा ही था जो ताकत बनकर मेरे साथ आ खड़ा हुआ। आप सब मेरे सारथी बने और मुझे चुनाव मैदान में उतर दिया। मगर मैं एकला नहीं था आप सब थे मेरे साथ कदम कदम पर। लोकतंत्र का क्या अदभुत नजारा था जब जनता अपने आप के लिए घर घर वोट मांग रही थी। जीत आप सब की हुई,लोकतंत्र जीता, आपकी भावना को विजयी मिली मगर कर्जदार हुआ गुरमीत सिंह कुन्नर ,आपके प्यार और स्नेह का। चुनाव तो मैं इस से भी पहले जीता हूँ मगर असल जीत अब हुई जब जन जन मेरे लिए गुरमीत सिंह कुन्नर बनकर मैदान में आया। आप विश्वास रखें आपकी भावना को सम्मान मिलेगा,आपके इरादे और संकल्पों को मिलकर पुरा करेंगें। जिस लोकतंत्र के नाम को आपने सार्थक किया है मैं उसको कलंकित नहीं होने दूंगा। मन,कर्म और वचन से आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं जिस हाल में जैसे भी हूँ हमेशा आपका था आपका रहूँगा। मेरा हर कदम आम जन की भलाई और इलाके के विकास के लिए उठे ऐसा आशीर्वाद मैं आपसे चाहता हूँ।
---आपका - गुरमीत सिंह कुन्नर
Monday, December 8, 2008
जनता ने की नई पहल
Sunday, December 7, 2008
पत्रकारों पर भी अंकुश
Friday, December 5, 2008
फ़िर से बचपन लौट आए
जीवन के सबसे हसीं वो पल मिल जाए
चल फ़िर से बनायें बारिस में कागज की नाव
शायद फ़िर से अपना बचपन मिल जाए।
---
खामोशी में जो सुनोगे वो आवाज मेरी होगी
जिंदगी भर साथ रहे वो वफ़ा मेरी होगी
दुनिया की हर खुशी एक दिन तुम्हारी होगी
क्योंकि इन सब के पीछे दुआ हमारी होगी।
---
कसमों से बंधी रस्में, रस्मों से बंधे रिश्ते,रिश्तों से बंधे अपने,अपनों से बंधे दिल,दिल से बंधी धड़कन, धड़कन से बंधी जान, जान से बंधे आप, आप से बंधे हम।
----
जिक्र हुआ जब खुदा की रहमतों का
हमने ख़ुद को सबसे खुशनसीब पाया,
तमन्ना थी एक प्यारे से दोस्त की
खुदा ख़ुद दोस्त बन के आया।
---
पल दो पल में ही मिलती हर खुशी
पल दो पल में ही मिलता हर गम
पर जो हर पल साथ निभाए
वो दोस्त मिलते हैं कम। जैसे आप सब...
----
दोस्ती शब्द नहीं जो मिट जाए
उम्र नहीं जो ढल जाए
सफर नहीं जो ख़त्म हो जाए
ये वो अहसास है
जिसके लिए जिया जाए
तो जिंदगी कम पड़ जाए।
---ये सब भाव दोस्तों ने एस एम एस के द्वारा प्रकट किए हैं।
Thursday, December 4, 2008
आपकी जां की कसम
खेलकर मेरी खुशियों से
तोड़कर मेरे दिल को
अपने झूठे वादों से फुसलाकर
चली गई तुम
शहनाई के साये में
मेरी छोटी सी दुनिया में
आग लगाकर,
दुनिया क्या जाने
आज की रात मुझ पर
कहर बरपाएगी
मगर तुम्हारे लिए यही रात
एक यादगार बन जायेगी,
क्योंकि तुम्हारे वो
तुम्हें अपने पास बिठायेंगें
अपने हाथों से तुम्हारा
घूँघट हटायेंगें
और तुम कुछ शरमाकर
कुछ घबराकर
मेरे साथ बिताये पलों को भुलाकर
अपने दिल से मेरी
तस्वीर मिटाकर
सीने में बसी यादों को हटाकर
अपने ओठों को
उसके ओठों से लगाकर
बड़ी अदा से यह कहोगी
आपकी जां की कसम
मेरी जां, मुझे आपसे
बेपनाह मोहब्बत है।
Wednesday, December 3, 2008
अकेला तो मेला,मेला तो अकेला
अकेला तो मेला
मेला तो अकेला
वो शख्स है
बड़ा अलबेला।
---
ना कोई गुरु
ना कोई चेला
हर कोई जेब में
हाथ नहीं धेला
मगर वो है
बहुत अलबेला।
---
भीड़ में मौन
एकांत में वार्ता
अपनी जिंदगी
ओरों पर वार्ता
पता नहीं उसने
क्या क्या है झेला।
वो शख्स है
बहुत अलबेला।
----
ऊपर पत्थर
अन्दर मोम
उसकी कहानी
सुनेगा कौन
पता नही क्या है
जां को झमेला
वो शख्स है
बड़ा अलबेला।
Tuesday, December 2, 2008
"बड़े" मरे तब बड़े जागे
"बड़े" लोग मरे
तब "बड़े" जागे,
नजर भी ना आए
इस्तीफा दे भागे।
इस से पहले
जो भी थे मरे
वे सब के सब थे
बहुत अभागे।
अभी तो देखना
और
क्या क्या होता है आगे।
Monday, December 1, 2008
उफ़! बड़ा ही कन्फ्यूजन है जनाब
"मान के समर्थन में विशाल जनसभा, समर्थन में उमड़ा जनसैलाब","हजारों की भीड़ ने शहर की फिजां बदली, राधेश्याम की जीत के चर्चे"," गौड़ को समर्थन देने वालों की तादाद बढ़ी"" शिव गणेश पार्क के निकट गौड़ की सभा में उमड़ी भीड़"। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये तीनों[ मनिंदर सिंह मान, राधेश्याम,राजकुमार गौड़] श्रीगंगानगर से उम्मीदवार हैं। सभी अखबारों में सभी १३ उम्मीदवारों की बल्ले बल्ले होती है। खबरें अब विज्ञापन बन गईं हैं। कोई विज्ञापन लिख कर खबरें छाप रहा है, कोई इम्पेक्ट के साथ।
कोई अखबार ऐसा नहीं जो ये लिख सके कि फलां उम्मीदवार की हालत ख़राब, दूसरा जीतेगा। खबरों का नजरिया पुरी तरह बदल गया है। अब तो हालत ये कि जो ख़बर है वह अखबार और चैनल मालिक/संचालक की नजरों में ख़बर है ही नहीं। न्यूज़ चैनल के लिए तो जो महानगर में हुआ वही न्यूज़ है। छोटे नगर में कोई पहल हो तो कोई मतलब नहीं।
सब की अपनी अपनी मज़बूरी है। पाठक/दर्शक लाचार और बेबस। वह दाम खर्च कर वह सब देखता और पढता है जो उसे दिखाया और पढाया जाता है। खैर चूँकि मीडिया ताक़तवर है इसलिए ये जो कुछ कर रहें हैं सर माथे।
शर्म नैतिकता बाकी है!
इस बात पर
हँसी आती है,
कि पाटिल में
शर्म और नैतिकता
अभी बाकी है।
घर में मारते हैं
वो हमें जब चाहें
घर में
घुसकर मारतें हैं,
और फ़िर हम
लुटी पिटी हालत में
अपनी बहादुरी की
शेखी बघारतें है।
Sunday, November 30, 2008
शोक नहीं आक्रोश जताओ
शोक नही
आक्रोश जताओ,
नेताओं को
ओकात बताओ,
घर में बैठे
कुछ ना होगा,
पाक में जा
कोहराम मचाओ,
बहुत सह लिया
अब ना सहेंगें
भारत माँ की
लाज बचाओ।
Saturday, November 29, 2008
बहादुरों को सलाम,शहीदों को नमन
अहिंसा परमो धर्म है
गाँधी जी के पदचिन्हों
पर चल प्यारे,
दूसरा गाल भी
पाक के आगे कर प्यारे।
---
अहिंसा परमो धर्म है
रटना तू प्यारे,
एक तमाचा और
जरदारी जब मारे।
----
ये बटेर हाथ में तेरे
फ़िर नहीं आनी है,
लगे हाथ तू
देश का सौदा कर प्यारे।
ज़िन्दगी मेरे नाम से घबराती क्यूँ है
आके दरवाजे पे मेरे लौट जाती क्यूँ है
मैं भी एक इन्सान हूँ तुम्हारी इस दुनिया का
फ़िर तू मुझसे अपना दामन बचाती क्यूँ है।
ऐ ज़िन्दगी तू.........................
दो घड़ी पास बैठो पूछो हाल हमसे भी
ना जाने तू मेरी सूरत से डर जाती क्यूँ है
सताता है मुझे हर रोज हर इन्सान दुनिया का
तू भी इतनी बेरुखी से कहर ढाती क्यूँ है
ऐ ज़िन्दगी....................
जो दुश्मन हैं बाग़ की हर खिलती हुई कली के
वहां जाकर तू अपनी खुश्बू फैलाती क्यूँ है
हर वक्त सामने रहे तेरी सूरत मेरी आंखों के
उसके बीच में तू अपना दामन लाती क्यूँ है।
ऐ ज़िन्दगी तू .........................
Friday, November 28, 2008
आडवानी जी आए पर भाए नहीं
जरा बाहर तो आओ
क्या हमको ऐसा नही लगता कि हमारी सरकार भी डबल बेड के नीचे से आतंकवादियों को धमका रही है। वे जब चाहें जहाँ कुछ भी कर देतें हैं और हमारे नेता सिवाए बयानों के कुछ नहीं करते।
---- चुटकी---
बिना आँख और
बिना कान
वाली सरकार,
तुझको हमारा
बार बार नमस्कार।
Thursday, November 27, 2008
कब तक सोये रहोगे, अब जाग जाओ
----स्वाति अग्रवाल
सरकार हमारी गांधीवादी
मानवता डर गई
नैतिकता मर गई
बहुत मुश्किल घड़ी है,
सरकार हमारी
पक्की गाँधीवादी
हाथ बांधे खड़ी है।
---- गोविन्द गोयल
मिली क्यों,मिली तो बिछड़ी क्यों
सयाने ने बताया भी था कि
भाग्य में जो है वह मिलेगा
तुम मिलीं, मिलकर बिछड़ गईं
सवाल ये कि
तुम मेरे भाग्य में थीं
तो बिछड़ क्यों गईं
अगर भाग्य में नहीं थीं तो
तुम मिलीं कैसे
अगर दोनों बात भाग्य के साथ है
तो फ़िर ये बिल्कुल साफ है कि
भाग्य बदलता है
इसलिए तुम उदास मत होना
अपना मिलन फ़िर हो सकता है।
Wednesday, November 26, 2008
एक छोटी सी नाव
उसमे उमड़ रहा भयंकर तूफान
आकाश से मिलने को आतुर
ऊपर ऊपर उठती लहरें
ऐसे मंजर को देख
बड़े बड़े जहाजों के कप्तान
हताश होकर एक बार तो
किनारे की आश छोड़ दें,
मगर एक छोटी सी नाव
इस भयंकर तूफान में
इधर उधर हिचकोले खाती हुई
किस्मत की लकीरों को मिटाती हुई
यह सोच रही है कि
कभी ना कभी तो
मुझे किनारा नसीब होगा
या बीच रस्ते में ही इस
समंदर की अथाह गहराइयों में
खो जाउंगी सदा के लिए।
नाव की कहानी मेरे जैसी है
वह समुंदरी तूफान में
किनारे की आस में है
चली जा रही हैं,
और मैं जिंदगी के तूफान में
जिंदगी की आस में
जिए जा रहा हूँ।
Monday, November 24, 2008
नेता और अभिनेता
जो जितना
बड़ा नेता,
वह उतना
बड़ा अभिनेता।
----
जन जन के सामने
करता है विनय,
यही तो है उसका
सबसे बड़ा अभिनय।
---गोविन्द गोयल
सूरत तक भूल जायेंगें
आज जो नेता आपको
अपना सबसे खास
आदमी बतायेंगें,
चुनाव जीतने के बाद
वही नेता जी आपकी
सूरत तक भूल जायेंगें।
--- गोविन्द गोयल
Sunday, November 23, 2008
यूँ अचानक वो हर बात पे याद आतें हैं।
----
दास्ताने इश्क में कुछ भी हकीकत हो तो फ़िर
एक अफ़साने के बन जाते हैं अफ़साने बहुत।
----
आज दुनिया में वो ख़ुद अफसाना बन के रह गए
कल सुना करते थे जो दुनिया के अफ़साने बहुत।
---
पीते पीते जब भी आया तेरी आंखों का ख्याल
मैंने अपने हाथों से तोडे हैं पैमाने बहुत।
----
नहीं मालूम अब क्या चीज आंखों में रही बाकी
नजर तो उनके हुस्न पे जाकर जम गई अपनी।
----
उन आंखों में भी अश्क भर्रा गए हैं
हम जो bhule से उनको याद आ गए हैं
---
खिजां अब नहीं आ सकेगी चमन me
baharon से कह दो की हम आ गए हैं।
----सब कुछ संकलित है
मैं देरी से नहीं उठा
वक्त ने मुझे हमेशा की तरह
सूरज की पहली किरण से भी पहले
आकर जगा दिया था,
और मैं उठ भी गया था
मगर मैंने इंसानियत को
जब सोते हुए देखा,
पीड़ित,बेबस,लाचार,गरीब इंसानों को
अपने अपने दर्द से रोते बिलखते देखा,
नगर के इंसानों के परिवारों के
घरों को उजड़ते देखा
तो मैं जाग नहीं सका
मुझे गहरी नींद आ गई,
क्योंकि जब तक इंसानियत
नहीं जागती, मेरे जैसा अकेला
इंसान जग कर क्या करता
और इसलिए मैं सो गया
अपना मुहं ढांप कर
सदा के लिए, सदा के लिए।
Friday, November 21, 2008
श्रीगंगानगर--बीजेपी बचाव की मुद्रा में
श्रीगंगानगर- यहाँ से कांग्रेस के राज कुमारगौड़,बीजेपी के राधेश्याम गंगानगर मुख्य उम्मीदवार हैं। गजेंद्र सिंह भाटी बीजेपी का बागी है। बीएसपी का सत्यवान है। इनके अलावा 9 उम्मीदवार और हैं। जिनके नाम हैं-ईश्वर चंद अग्रवाल,केवल मदान,पूर्ण राम, भजन लाल, मनिन्द्र सिंह मान, राजेश भारत,संजय ,सत्य पाल और सुभाष चन्द्र। बीजेपी के राधेश्याम गंगानगर गत चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर ३६००० वोट सर हारे। उन्होंने कुछ दिन पहले ही बीजेपी का दामन थामा और बीजेपी ने टिकट उनको थमा दी। बस यह बात जन जन को हजम नहीं हो रही। जिसको जनता ने ३६०० मतों से हराया वह चौला बदल कर फ़िर सामने है। जिस कारण राजकुमार गौड़ भारी पड़ रहें हैं। बीजेपी के दिमाग में यह बात फिट करदी कि श्रीगंगानगर से केवल अरोडा बिरादरी का उम्मीदवार ही चुनाव जीत सकता है। राधेश्याम गंगानगर इसी बिरादरी से है। जैसे ही कांग्रेस ने इनको नकारा बीजेपी ने लपक लिया। मगर ये बात याद नही आई कि इसी अरोडा बिरादरी के राधेश्याम गंगानगर ने सात चुनाव में से केवल तीन चुनाव ही जीते। जो जीते वह कम अन्तर से जो हारे वह भारी अन्तर से। बीजेपी कार्यकर्त्ता क्या आम वोटर को राधेश्याम का चौला बदलना हजम नहीं हो रहा। राधेश्याम अभी तक बीजेपी के नेताओं को अपने पक्ष में नहीं कर पाए। एक को मना भी नहीं पाते कि दूसरा कोप भवन में चला जाता है। सब जानते हैं कि राधेश्याम गंगानगर ने कांग्रेस में किसी को आगे नहीं आने दिया, इसलिए अगर यह बीजेपी में जम गया तो उनका भविस्य बिगड़ जाएगा। लोग सट्टा बाजार और अखबारों में छपी ख़बरों की बात करतें हैं। लेकिन इनका भरोसा करना अपने आप को विचलित करना है। १९९३ में सट्टा बाजार और सभी अखबार श्रीगंगानगर से बीजेपी के दिग्गज नेता भैरों सिंह शेखावत की जीत डंके की चोट पर दिखा रहे थे। सब जानतें हैं कि तब श्री शेखावत तीसरे स्थान पर रहे थे।
Thursday, November 20, 2008
हाँ, वह तुम ही तो थी
हाँ वह तुम ही तो थी, उस रोज
मेरे साथ मेरे घर के आँगन में
तुम्ही ने तो मेरा हाथ पकड़ कर
इन तूफानों से निकल जाने की
क़समें खाई थी,
मगर ये क्या,आज तुम कह रही हो
अब और ना चल सकुंगी
मैं तुम्हारे साथ इन तूफानों में,
मगर क्यों,
क्या अब तुम्हे डर लगने लगा है
या किसी नाव के साथ मल्लाह मिल गया है
जो तुम्हे अपने सीने से लगा
बिना किसी डर के तुफानो से
सुरक्षित निकाल कर
किनारे पर पहुँचा देगा,
ठीक है, तुम जाओ
अपने उस मल्लाह के साथ
खुदा तुम्हारे तूफानों को भी
मेरे रास्ते में डाल दे
और तुम पहुँच जाओ
अपने साथी के साथ बे खौफ
अपनी मंजिल पर
और मैं अकेला देखता रहूँ
तुम्हे उस पार जाते हुए।
---गोविन्द गोयल
कांग्रेस ने थूका,बीजेपी ने चाटा
Tuesday, November 18, 2008
वजूद ही ख़त्म हो जाए
स्वार्थी व मौका परस्त लोगों का जमघट है
मुझ ये भी मालूम था कि
ये सब अपने स्वार्थ के लिए
मेरे खून का कतरा कतरा
पीने से भी नहीं हिचकिचायेंगें
मगर मैंने ये नहीं सोचा था कि
यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा
मुझे बिस्तर पर पड़ा देख
ये लोग यह सोचते हुए
मुझसे दूर चले जायेंगें कि
इसमे अब खून रहा ही कहाँ है
जो हमें पीने को मिलेगा
और मैं अकेला बिस्तर पर पड़ा
अपनी टूटी फूटी छत को घूरने लगा
यह सोचते हुए कि कहीं
यह उन लोगो की तरह
साथ छोड़ने के स्थान पर मुझे
अपने आँचल में सदा के लिए
ना छिपा ले
जिससे कि मेरा रहा सहा
वजूद ही ख़त्म हो जाए।
---गोविन्द गोयल
कुर्सी ही है ईमान

कुर्सी पार्टी
कुर्सी निष्ठा
और कुर्सी
ही है ईमान,
अपने नेता का
सच यही है
तू मान
या ना मान।
----गोविन्द गोयल
Monday, November 17, 2008
जनता का उम्मीदवार कुन्नर
बे पैंदे के लौटे
नेता, छोटे
हो या मोटे,
सब के सब हैं
बे पैंदे के लौटे।
-----
नेता, छोटे
हो या बड़े,
सब होतें हैं
चिकने घड़े।
--- गोविन्द गोयल
Sunday, November 16, 2008
गिरगिट समाज के लिए संकट
गिरगिट समाज के मुखिया ने कहा, इन नेताओं ने हमें बदनाम कर दिया। ये लोग इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि हम लोगों को शर्म आने लगती है। जब भी कोई नेता रंग बदलता है , ये कहा जाता है कि देखो गिरगिट कि तरह रंग बदल लिया। हम पूछतें हैं कि नेता के साथ हमारा नाम क्यों जोड़ा जाता है। नेता लोग तो इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि गिरगिट समाज अचरज में पड़ जाता है। मुखिया ने कहा, हम ये साफ कर देना चाहतें है कि नेता को रंग बदलना हमने नहीं सिखाया। उल्टा हमारे घर कि महिला अपने बच्चों को ये कहती है कि -मुर्ख देख फलां नेता ने गिरगिट ना होते हुए भी कितनी जल्दी रंग बदल लिया, और तूं गिरगिट होकर ऐसा नहीं कर सकता,लानत है तुझ पर ... इतना कहने के बाद तडाक और बच्चे के रोने की आवाज आती है।मुखिया ने कहा हमारे बच्चे हमें आँख दिखातें हैं कहतें हैं तुमको रंग बदलना आता कहाँ है जो हमको सिखाओगे, किसी नेता के फार्म हाउस या बगीचे में होते तो हम पता नहीं कहाँ के कहाँ पहुँच चुके होते। मुखिया ने कहा बस अब बहुत हो चुका, हमारी सहनशक्ति समाप्त होने को है। अगर ऐसे नेताओं को सबक नहीं सिखाया गया तो लोग "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को भूल जायेंगे।
लम्बी बहस के बाद सभा में गिरगिटों ने प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में सभी दलों के संचालकों से कहा गया कि अगर उन्होंने रंग बदलने वाले नेता को महत्व दिया तो गिरगिट समाज के पाँच जीव हर रोज उनके घर के सामने नारे बाजी करेंगे। मुन्ना गिरी से उनको समझायेंगे। इन पर असर नही हुआ तो सरकार से "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को किताबों से हटाने के लिए आन्दोलन चलाया जाएगा। ताकि ये लिखवाया जा सके "नेता की तरह रंग बदलना"। सभा के बाद सभी गिरगिट जोश खरोश के साथ वापिस लौट गए।
Saturday, November 15, 2008
बीजेपी के पास है क्या ? आयातित नेता
चाँद पर पहुँच गया भारत
बीजेपी- कांग्रेस में
लग रहें हैं
टिकटों के दाम,
इसका मतलब
भारत सचमुच
चाँद पर
पहुँच गया श्रीमान।
---गोविन्द गोयल
Friday, November 14, 2008
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है
कुछ ना कुछ खोना पड़ता है,
लेकिन मैं इस बात से अंजान था कि
मैं कुछ पाने के लिए
इतना कुछ खोता चला जाउंगा
कि मेरे पास कुछ और
पाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा,
और मैं और थोड़ा सा कुछ
पाने के लिए
अपना सब कुछ खोकर
उनके चेहरों को पढता हूँ ,
जो मेरे सामने
कुछ पाने की आस में आए ,
मैं उनको कुछ देने की बजाये
अपनी शर्मसार पलकों को झुका,
उनके सामने से एक ओर चला जाता हूँ
किसी ओर से कुछ पाने के लिए।
Thursday, November 13, 2008
कभी श्याम बन के कभी राम बन के
नेता जी का नाम है राधेश्याम और ये बीजेपी में शामिल हुए हैं। तो कहना पड़ेगा---
कभी श्याम बन के
कभी "राम" बन के
चले आना, ओ राधे चले आना।
कभी तीन रंग में आना
कभी दुरंगी चाल सजाना
ओ राधे चले आना।
अब राधेश्याम का नाम बदल कर राधेराम कर दिया गया है। ताकि सनद रहे और वक्त जरुरत काम आए। श्रीगंगानगर इलाके में राधेश्याम के राधेराम में बदल जाने की बात लोगों को हजम नही हो रही। क्योंकि यह आदमी कांग्रेस को अपनी माँ कहता था।
नैनो का का सारा काजल
सावन के काले बादल
रो रो कर बिखर गया
नैनो का सारा काजल।
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यादों की तरह छा जातें हैं
मानसून के मेघ
काँटों जैसी लगती है
हाय फूलों की सेज।
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हिवडा मेरा झुलस रहा
ना जावे दिल से याद
सब कुछ मिटने वाला है
जो नहीं सुनी फरियाद।
Wednesday, November 12, 2008
तिरंगे नेता की दुरंगी चाल
श्रीगंगानगर में नेशनल कांफ्रेंस
यहाँ यह इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि एक तो यह उस कॉलेज में हो रही है जिसमे मैं पढता था। दूसरा इसके संयोजक हैं मेरे लिए सम्माननीय डॉ ओ पी गुप्ता। कोई भी जानकारी या सुझाव का आदान प्रदान उनसे इस नम्बर ०९४१४९४८९१३ पर किया जा सकता है।
झूठे हैं तेरे वादे
तेरे चालाक इरादे
तूने तो अब आना नहीं
झूठें हैं तेरे वादे।
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तिल तिल मैं यहाँ जल रही
तूं लिख ले मेरे बैन
चिता को आग लगा जाना
मिल जाएगा चैन।
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कितने सावन बीत गए
मिला ना मन को चैन
बादल तो बरसे नहीं
बरसत है दो नैन।
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तेरे दर्शन की आस को
जिन्दा है ये लाश
इस से ज्यादा क्या कहूँ
समझ ले मेरी बात।
---गोविन्द गोयल
Tuesday, November 11, 2008
तुम्हारी किताबों की किस्मत
इन किताबों की किस्मत
जिन्हें तुम हर रोज़
अपने सीने से लगाती हो
मेरे बालों से कहीं अधिक
खुशनसीब है
तुम्हारी इन किताबों के पन्ने
जिन्हें तुम हर रोज़ बड़े
प्यार से सहलाती हो
मेरी रातों से भी हसीं हैं
तुम्हारी इन किताबों की रातें
जिन्हें तुम अपने पास सुलाती हो
इतनी खुशनसीबिया देखकर भी
तुम्हारी इन किताबों की
मेरी आँखे हर पल बार बार रोतीं हैं
क्योंकि हर साल तुम्हारे सीने से लगी
एक नई किताब होती है
वो पुरानी किताब पड़ी रहती है
एक तरफ़ आलमारी में 'गोविन्द" की तरह
इस उम्मीद के साथ कि
शायद एक फ़िर सीने से लगा लो
तुम इस पुरानी किताब को।
Monday, November 10, 2008
प्रीत-विरह-फाल्गुन-सजनी
सजनी करे विचार
फाल्गुन कैसे गुजरेगा
जो नहीं आए भरतार।
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फाल्गुन में मादक लगे
जो ठंडी चले बयार,
बाट जोहती सजनी के
मन में उमड़े प्यार।
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साजन का मुख देख लूँ
तो ठंडा हो उन्माद,
बरसों हो गए मिले हुए
रह रह आवे याद।
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प्रेम का ऐसा बाण लगा
रिस रिस आवे घाव,
साजन मेरे परदेशी
बिखर गए सब चाव।
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हार सिंगार छूट गए
मन में रही ना उमंग
दिल पर लगती चोट है
बंद करो ये चंग।
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परदेशी बन भूल गया
सौतन हो गई माया,
पता नहीं कब आयेंगें
जर जर हो गई काया।
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माया बिन ना काम चले
ना प्रीत बिना संसार,
जी करता है उड़ जाऊँ,
छोड़ के ये घर बार।
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बेदर्दी साजन मेरा
चिठ्ठी ना कोई तार,
एक संदेशा नहीं आया
कैसे निभेगा प्यार।
----गोविन्द गोयल
Sunday, November 9, 2008
Saturday, November 8, 2008
वंशवाद का बखेडा
नेहरू,इंदिरा
राजीव, राहुल
फ़िर शायद बढेरा,
हिंदुस्तान में पता
नहीं कब तक रहेगा
वंशवाद का बखेडा।
---गोविन्द गोयल
लोकतंत्र में वंश वाद की आंधी
नेहरू,इंदिरा
राजीव और
अब राहुल गाँधी,
लोकतंत्र में भी
खूब चल रही है
वंश वाद की आंधी।
---गोविन्द गोयल
Friday, November 7, 2008
सास बहू को दी विदाई
एक महिला ने
दूसरी से कहा
ये क्या हो गया हाय,
एकता कपूर ने
सास बहू को
बोल दिया बाय।
----
पता नहीं किसने
सास बहू को
नजर लगाई है,
जो इसको बंद
करने की नौबत आई है।
----
शायद "बा" का अमरत्व
ले बैठा इसको,
बा तो मरती नही
इसलिए ख़ुद ही खिसको।
----गोविन्द गोयल
Thursday, November 6, 2008
यमराज को बनाया भाई
नेताओं की छंटनी
कट गया टिकट
खडें हैं बीच मंझधार,
नेताओं पर भी
पड़ रही है
छंटनी की मार।
----गोविन्द गोयल
गंगा की भी होगी वही गति
गंगा को घोषित
किया रास्ट्रीय नदी,
हॉकी,चीता, मोर
जैसी हो जायेगी
अब इसकी गति।
--गोविन्द गोयल
निष्ठा केवल अपने स्वार्थ के लिए
Wednesday, November 5, 2008
बात बेबात ठहाके लगाओ
सब के सब अपने
नवजोत सिद्धू को
अपना आदर्श बनाओ,
बात हंसने की
हो या न हो
बस ठहाके लगाओ।
----गोविन्द गोयल
भात भरेगा मामा
झोली फैलाकर
खड़े रहो
होगी ऐसी करामात,
खुशियाँ घर घर
बरसेंगीं,मामा[चन्दा]
ऐसा भरेगा भात।
----गोविन्द गोयल
बंद कर दो हंगामा
दुःख,दर्द ,तकलीफ
सब भूल जाओ
ना करो कोई हंगामा,
सब समस्याओं का
समाधान कर देगा
अपना चंदा मामा।
---गोविन्द गोयल
Tuesday, November 4, 2008
क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब
जो सालों से नहीं मिला
वह अब मिलेगा,
स्नेह करेगा
तुम्हे पुचकारेगा,
प्यार से पूछेगा
हमसे दिल की बात,
हे सखी,क्यों तंग करती हो
क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब,
कुछ और ना समझ सखी
नेता जी आयेंगें
क्योंकि सामने हैं चुनाव।
---गोविन्द गोयल
Monday, November 3, 2008
कुत्ते को घुमाते हैं शान से
बुजुर्ग माँ-बाप
के साथ चलते
हुए शरमाते हैं हम,
अपने कुत्ते को
सुबह शाम
घुमाते हैं हम।
------
अधिकारों के लिए
लगा देंगें
अपने घर में ही आग,
अपने कर्त्तव्यों को
मगर भूल जाते हैं हम।
----
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
खंड खंड हो रहा है देश
फ़िर भी अनेकता में एकता
के नारे लगाते हैं हम।
----
सबको पता है कि
बिल्कुल अकेले हैं हम,
हम, अपने आप को
फ़िर भी बतातें हैं हम।
----गोविन्द गोयल
Sunday, November 2, 2008
काजल की कोठरी में भी झकाझक
गुरमीत सिंह कुन्नर जिताऊ और टिकाऊ नेता है किंतु यह कहानी कांग्रेस के लीडर्स को समझ नहीं आ रही। गत दिवस हजारों लोगों ने गुरमीत सिंह कुन्नर के यहाँ जाकर उनके प्रति समर्थन जताया, उनको अपना नेता और विधायक माना। ऐसी हालातों मेंकोई सोच सकता है कि ईमानदार और साफ छवि के लोग राजनीति में आयेंगें। पूरे इलाके में कोई भी एजेंसी सर्वे करे या करवाए, एक आदमी भी यह कहने वाला नहीं मिलेगा कि गुरमीत सिंह कुन्नर ने किसी को सताया है या अपनी पहुँच का नाजायज इस्तेमाल उसके खिलाफ किया। जब राजनीति का ये हाल है तो कोई क्या करेगा। यहाँ तो छल प्रपंच करने वालों का बोलबाला है। राजनीति को काजल की कोठरी कहना ग़लत नहीं है। जिसमे हर पल कालिख लगने की सम्भावना बनी रहती है। अगर ऐसे में कोई अपने आप को बेदाग रख जन जन के साथ है तो उसकी तारीफ की ही जानी चाहिए।
जागरूक ब्लोगर्स,इस पोस्ट को पढ़ने वाले बताएं कि आख़िर वह क्या करे? राजनीति से सन्यास लेकर घर बैठ जाए या फ़िर लडाई लड़े जनता के लिए जो उसको मानती है।
छठी का दूध याद आ गया
राज ठाकरे तो
एक दम से
पलटी खा गया ,
शायद उसको
छठी का दूध
याद आ गया।
----गोविन्द गोयल
Saturday, November 1, 2008
दीपावली की सजावट प्रतियोगिता
अंधेर नगरी चौपट राजा
अंधेर नगरी
चौपट राजा,
हिंदुस्तान का तो
बज गया बाजा।
टके सेर भाजी
टके सेर खाजा,
लूटनी है तो
जल्दी से आजा।
---गोविन्द गोयल
Friday, October 31, 2008
नारदमुनि ख़बर लाये हैं
सिक्युरिटी का साया है
-----चुटकी----
उफ़ ! कैसा घोर
कलयुग आया है,
"भगवान" के
चारों ओर भी
सिक्युरिटी का साया है।
--गोविन्द गोयल
Thursday, October 30, 2008
जो हो हिंदुस्तान का
ये उत्तर का
वो पश्चिम का
तू बिहार का
मैं राजस्थान का,
कोई एक तो बताओ
जो हो बस
केवल हिंदुस्तान का।
---गोविन्द गोयल
Wednesday, October 29, 2008
ये पब्लिक है सब जानती है
सारी रात जले वो भी
माना कि तुम दीप जला रही हो
दिवाली की खुशियाँ मना रही हो
क्या हाल होगा उसका, जरा सोचो
जिसको तुम भुला रही हो,
जला देना एक दीपक उसका भी
तुम्हारे दीपक के साथ जले वो भी
जिस तरह जलता है दिल मेरा
उसी तरह जिंदगी भर जले वो भी।
----गोविन्द गोयल
आज होगी उनकी दिवाली
Tuesday, October 28, 2008
जेब खाली तो कैसी दिवाली
जिसकी जेब खाली
उसकी कैसी दिवाली,
जिसके पास माया
उसकी तो हर रोज
दिवाली है भाया।
--- गोविन्द गोयल
नारदमुनि को मेनका का भ्रम
बाद में भेद खुला कि वह कोई लड़की नहीं बल्कि किसी डांसर ग्रुप का डांसर है। उसका चेहरा मोहरा बिल्कुल लड़कियों जैसा है इसलिए कभी कभी वह किसी त्यौहार और मेले ठेले में ऐसे किलोल करके लोगों को हैरत में डालता रहता है।
Monday, October 27, 2008
भज ले नारायण का नाम
भज ले नारायण का नाम
नारद, नारायण का नाम,
भज ले नारायण का नाम
नारद,नारायण का नाम।
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मनमोहन जी टिके हुए हैं
बिना किए कुछ काम,
उनकी जुबां पर रहता है
बस इक मैडम का नाम।
भज ले नारायण का ......
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पीएम पद का चिंतन करे तो
लगता नहीं है ध्यान
आडवाणी के ख्वाब में आए
इक मोदी का नाम।
भज मन नारायण का नाम.....
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चुनाव आए तो सारे नेता
झुक झुक करे सलाम,
उसके बाद वही नेता जी
दुत्कारे सुबह और शाम।
भज मन नारायण का नाम....
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महंगाई की बात करे जो
वो बालक नादान,
शेयरों के दाम गिर रहे
सेंसेक्स पड़ा धडाम।
भज मन नारायण का नाम....
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धर्मनिरपेक्ष है वही देश में
जो ले अल्लाह का नाम,
साम्प्रदायिक है हर वो बन्दा
जो भजता राम ही राम।
भज मन नारायण का नाम....
-----गोविन्द गोयल
Sunday, October 26, 2008
राशन का बजट बढ़ गया
राशन का बजट बढ़ गया
इन्कम वही पुरानी है,
अर्थशास्त्री फेल हो गया
घर घर यही कहानी है।
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बेटा मांगे एक फुलझडी
तो आँख में आए पानी है
माँ के चेहरे को पढ़ पढ़ के
बच्ची हुई सयानी है।
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माँ बेटी की चाहतें मर गई
देख रसोई का सन्नाटा,
नून तेल तो आ जाएगा
कहाँ से आएगा गोविन्द आटा।
----गोविन्द गोयल
Saturday, October 25, 2008
राजनीति के माध्यम से सेवा
उस दिन होगी असली दिवाली
घर घर मंगल दीप जलाएं
कोई कौन रहे न खाली,
चारों तरफ़ हो खुशियों का आलम
कोई पेट रहे ना खाली।
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सब के तन पर कपडें हों
बेघर के घर अपने हों,
नगर में दिखे ना कोई सवाली
उस दिन होगी असली दिवाली।
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अधरों पर मुस्कान खिले
हर हाथ को काम मिले,
घर घर बाजे खुशियों की थाली
कब आएगी ऐसी दिवाली।
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मस्ती में झूमे मतवाले
किसी के घर भी लगे ना ताले
रोशन हो एक कौना कौना
कहीं दिखे ना चादर काली
किस दिन आएगी ऐसी दिवाली।
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----गोविन्द गोयल
जनता का राज है
महाराज है,
महारानी है
युवराज है ,
जी हाँ, भारत में
जनता का राज है।
--- गोविन्द गोयल
Friday, October 24, 2008
चंदा मामा के यहाँ यान
चंदा मामा के यहाँ
गया है अपना यान,
शेयर बाज़ार चढेगा
घटेंगे राशन के दाम।
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सरकार की तरह
मस्त रहो जनाब,
पेट भरे न भरे
देखते रहो ख्वाब।
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चैनलों पर देखिये
राजनीति के रंग,
नेताओं के नाटक देख
लोग रह गए दंग।
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जितना जल्दी हो सके
सुरक्षित घर को भाग,
सबके अपने स्वार्थ है
कौन बुझाये आग।
---गोविन्द गोयल