खबरों की गढ़ाई गढ़ाई जैसी तो हो!
गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। समझ से परे है कि मीडिया/मीडिया
कर्मियों को हुआ क्या है! ऐसी ऐसी खबरें जिनका कोई वजूद नहीं! इसमें कोई शक नहीं कि
कुछ खबरें होती हैं और कुछ वक्त की मांग के अनुसार गढ़ी भी जाती हैं, यूं कहिये
की गढ़नी भी पढ़ती हैं, लेकिन गढ़ाई
गढ़ाई जैसी तो हो! ये क्या कि सिर कहीं और पैर
कहीं। बाबा गुरमीत सिंह राम रहीम और
मंत्री परिषद के पुनर्गठन विषय पर मीडिया ने जो कुछ कहा, उसमें कब कितना सच था,
सब सामने आ गया। झूठ, कोरे कयास और गढ़ाई सच की तरह परोसी जाती रही। आम जन के पास
ऐसा कोई जरिया होता नहीं जो सच को जान सके। उसके लिए तो मीडिया और मीडिया कर्मी ही भगवान होते हैं, ऐसे गरमा
गरम विषयों पर। बाबा के उत्तराधिकारी के संदर्भ मेँ क्या क्या ना छपा मीडिया मेँ और क्या नहीं दिखाया गया। गुप्त
बैठक मेँ क्या हुआ, यह तक बता दिया। बैठक की जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन मीडिया ने ये भी बता दिया कि उसमें हुआ क्या! कभी मुंह
बोली बेटी को उत्तराधिकारी बताया तो कभी बेटे को। सभी कयास लगा लिए। सभी प्रकार की
संभावना जता दी। सच के निकट एक भी नहीं। चूंकि बाबा के नाम पर आज के दिन हर खबर पढ़ी और देखी जाती है, इसलिए आने दो जो आ रहा है।
जाने दो जो हवा मेँ जा रहा है। आखिर डेरा की ओर से आए वीडियो ने सच बता दिया कि ऐसा
कुछ भी नहीं है। जिसका जिक्र कहीं ना था, उसको खूब
अधिकार थे। बात यहाँ तक कि उत्तराधिकारी बनाने का कोई प्रस्ताव तक नहीं है। खैर! ये तो उस
डेरे की बात है, जिसका मुखिया रेप के मामले मेँ सजा काट रहा है। अब बात नरेंद्र
मोदी मंत्री परिषद के पुनर्गठन की। जबसे सरकार के मुखिया ने पुनर्गठन के संकेत दिये, मीडिया मेँ
सूत्रों का काम शुरू हो गया। पता नहीं कौन-कौन जानकारी देने के नाम पर मीडिया का मज़ाक
बनाता रहा, मज़ाक उड़ाता रहा। ये सच है कि मीडिया को अपने सूत्रों पर भरोसा
करना पड़ता है, किन्तु ये भी तो देखो कि नरेंद्र मोदी हर बार अपने निर्णय से
मीडिया को ही नहीं देश भर को चौंकाते
रहे हैं, ऐसी स्थिति मेँ अपने सूत्र द्वारा दी गई जानकारी को क्रॉस चैक
करने मेँ हर्ज क्या! किसी के मन मेँ क्या है, ये जान लेना असंभव है। राजनीति मेँ किसी का अगला कदम क्या होगा, ये बता पाना
नामुमकिन है। इसलिए कयास लगते रहे। संभावित नामों की घोषणा होती रही। बात वही, जो संभावित
नाम मीडिया बता रहा था उसमें से इक्का दुक्का ही मोदी जी की असली लिस्ट मेँ थे। संभावित
मंत्रियों के नामों वाली लिस्ट मेँ उन व्यक्तियों और नेताओं के नाम थे, जिनके आस
पास तक भी मीडिया के कयास नहीं पहुँच पाए। ऐसा तो नहीं कि मोदी जी मीडिया से कोई
खेल ही खेल रहे हों, जो मीडिया कहे उसके अलग हट के किया जाए। राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव मेँ भी सेम टू सेम हुआ था। नए
नाम। वो नाम, जिनके बारे मेँ मोदी जी के अलावा किसी ने सोचा तक नहीं होगा।
हरियाणा मेँ सीएम मनोहर लाल खट्टर होंगे, किसने बताया! कहीं एक लाइन भी ना तो बोली गई और प्रकाशित हुई
थी। कितने ही उदाहरण है। इसमें कोई शक नहीं कि राजनीति की हर खबर जन जन की पसंद होती
है, किन्तु इसका मतलब ये तो नहीं कि इस पसंद के लिए वह परोस दिया
जाए जो सच के आस पास ही ना हो। जनता मीडिया मेँ परोसे गई ऐसी खबरों को हर हाल मेँ सच मानती है, क्योंकि उसकी नजर मेँ मीडिया का हर शब्द सच के
अतिरिक्त कुछ नहीं होता। पता नहीं मीडिया और इस पवित्र
काम से जुड़े व्यक्ति व्यक्तियों की किसी के प्रति कोई जवाबदेही भी होती है या नहीं। किसी और से नहीं तो खुद से तो
होती ही होगी। भाई, किसी को बुरा लगा हो तो सॉरी। मगर इतना तो कहना ही पड़ेगा कि
सच नहीं तो आधा सच तो हो। आधा सच नहीं तो कम से कम सच के निकट तो हो। दो लाइन पढ़ो-
उसकी आँखें जो गीली रहती है
कुछ ना कुछ तो जरूर कहती है।
[शब्दों और वाक्यों मेँ बदलाव करके खबर/आलेख
को सोशल मीडिया पर फारवार्ड करने वाले के खिलाफ
कार्यवाही की जा सकती है।]
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