लोकतन्त्र मेँ सत्ता का अपहरण
गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। लगभग साढ़े चार दशक पुरानी गोपी फिल्म के एक गीत की पंक्ति है, जिसके हाथ मेँ होगी लाठी भैंस वही ले जाएगा। देख लो, गोवा और मणिपुर मेँ बीजेपी वाले ले गए। क्योंकि वर्तमान मेँ लाठी इनके हाथ मेँ है। लोकतन्त्र का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है। जहां के वोटरों
ने बीजेपी को बहुमत नहीं दिया। बहुमत क्या, सबसे बड़े दल के रूप मेँ भी पसंद नहीं किया, वहां बीजेपी सरकार बना रही है। इसे कहते हैं सत्ता का अपहरण।
जब सबसे बड़ा दल कांग्रेस है तो फिर उसे ही सरकार बनाने के लिए बुलाया जाना चाहिए। मगर
नहीं। शर्म और बेहद शर्म की बात है ये, सभी के लिए। लोकतन्त्र के वास्ते भी और देश
की राजनीति के वास्ते भी। अगर ऐसा ही कुछ यूपी मेँ होता तब! बीजेपी यूपी मेँ सबसे बड़े
दल के रूप मेँ सामने आती तो बीजेपी को ही बुलाया जाता! उसी का हक बनता। मगर उत्तर से पूर्व की ओर जाते जाते लोकतन्त्र के मायने ही बदल गए।
लाठी को हाथ मेँ ले सत्ता इस प्रकार हथियाई जाएगी, किसने सोचा होगा। राजनीति से नीति को निकाल
फेंक दिया गया। राज को हासिल करने के लिए नैतिकता, मर्यादा सब को हवा
मेँ उड़ा दिया गया। पूछे कौन? सवाल करने की हिम्मत किसकी है? सब देख रहे हैं। कोई कुछ बोलेगा तो भी कुछ नहीं होने वाला।
ये तो कुछ भी नहीं एक छोटे से राज्य मेँ अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए विधायकों की
इस मांग को भी मान लिया गया कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को सीएम बनाया जाए। जिस
नेता ने बढ़िया मंत्री के रूप मेँ देश भर मेँ पहचान बनाई। इज्जत कमाई। जिसने देश की सेना का मनोबल बढ़ाया। जिस मंत्री
ने सेना मेँ नई ऊर्जा का संचार किया, उसे छोटे से राज्य मेँ भेज दिया गया। बात
ये नहीं कि पर्रिकर जैसा रक्षा मंत्री बीजेपी के पास नहीं होगा। खूब होंगे। किन्तु कोई ये तो बताए कि राजनीति
मेँ उज्ज्वल छवि के मनोहर पर्रिकर को क्यों एक छोटे से स्थान पर सीमित किया जा रहा
है। इस बात से एक बड़ा प्रश्न
भी लोकतन्त्र के सामने ही नहीं बीजेपी के सामने भी आ खड़ा हुआ है। आज तो गोवा विधायकों की डिमांड पर मनोहर पर्रिकर
को केंद्र से हटा वहां भेजा गया है। कल को यह स्थिति गुजरात मेँ सामने आई तब क्या होगा!
विधायकों ने ये डिमांड कर ली कि वे तो केवल नरेंद्र मोदी के साथ ही आएंगे। तब क्या
बीजेपी नरेंद्र मोदी को पीएम पद से हटा गुजरात की कमान सौंप देगी? क्या ये संभव है? सवाल ही पैदा नहीं होता। कल्पना भी नहीं हो सकती। बीजेपी को कांग्रेस मुक्त भारत की अपनी सोच को आगे बढ़ाने
की इतनी जल्दी है कि उसने गोवा और मणिपुर मेँ सत्ता का अपहरण करने से भी परहेज नहीं किया। यूपी जैसे बड़े
राज्य की सत्ता भी उसे संतुष्ट नहीं कर पाई और सत्ता की अपनी भूख शांत करने के लिए
वहां भी सत्ता पर कब्जा कर लिया जहां, पहला हक बड़े दल का था। बेशक, बीजेपी वाले खुशी मनावें। शानदार विजय के गीत गावें। परंतु
लोकतन्त्र मेँ यह ठीक नहीं है। आज बीजेपी ने अपनी सत्ता के दम पर ये किया है, कल को दूसरे दल भी सत्ता के नशे मेँ ऐसा कर सकते हैं। बीजेपी
की शान तो तब बढ़ती जब वह गोवा और मणिपुर दोनों मेँ चुनाव मेँ सबसे अधिक सीट लेने वाले
दल को पहले सरकार बनाने का मौका देती। वो इनकार करती या असमर्थता जताती तब वह सामने
आती और सरकार बनाने का दावा पेश करती। परंतु ऐसा करने की जरूरत ही महसूस नहीं की गई।
झट से सत्ता का अपहरण करने की योजना बनी और सबकी आँखों के सामने यह सब हो गया। कोई
कुछ नहीं कर सकता। किसी की हिम्मत नहीं। आज का लोकतन्त्र यही है। चार लाइन पढ़ो-
वतन
से इश्क की बात करते हो
सड़े, गले पुराने दौर के लगते हो,
अपने मतलब की बात करो जनाब
दिलों मेँ क्यों फिजूल की बात भरते हो।
सड़े, गले पुराने दौर के लगते हो,
अपने मतलब की बात करो जनाब
दिलों मेँ क्यों फिजूल की बात भरते हो।
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