गोविंद गोयल
श्रीगंगानगर। दिन मेँ फेसबुक
फ्रेंड का एक संदेश मिला। उसने लिखा, गोविंद जी, काहे की करवा चौथ! कैसी करवा चौथ! किस
के लिए करवा चौथ! सब पति को पूरी तरह से कुली बनाने के बहाने हैं। उस पर तुर्रा ये
कि ये सब आपके लिए ही तो है। फ्रेंड ने अपनी पीड़ा इन शब्दों मेँ बताई, सुबह से कुली बना रखा है मुझे। कभी मेहँदी लगवाने के लिए बीवी को लाद के ले
गया बाइक पर। फिर ले के आया। कभी बाजार से ये लाना, वो लाना।
हर बार मुझे ही जाना पड़ा। ड्रेस को मैच करता मेकअप का सामान। मेकअप को मैच करती
ड्रेस। मतलब, ये, वो मेँ ही आधा दिन
निकल गया। इतने मेँ ही सब्र नहीं किया बीवी ने , फिर ये भी
बता दिया कि रात को कितने बजे घर आना है। क्या पहनना है। हैरान था मैं। समझ नहीं
पाया कि ये व्रत पति की खुशहाली, खुशी,
आनंद और उम्र बढ़ाने के लिए है या उसे सताने के लिए। बात तो ठीक थी । ऐसा दिखाई भी
दे रहा था। लेकिन कोई कर भी क्या सकता है। ये व्रत है ही ऐसा। जो रखा तो पति के
लिए जाता है और फिर सबसे अधिक परेशान भी वही होता है। तड़के चार बजे पेट भरने के
लिए कल रात को ही इंतजाम कर लिया गया था। सुबह होते ही खटर,
पटर शुरू हो गई। रात तक निराहार रहने के लिए तड़के पेट भर के व्रत की शुरुआत हुई।
पति की नींद उड़ गई। बीवी पेट भर के सो गई।
नींद खुली तो सौ प्रकार के फरमान। जल्दी तैयार हो जाओ। कई काम है। व्रत है। मुझे
तैयार होना है। ब्यूटी पार्लर जाना है। मेहँदी लगवानी है। व्रत की जल्दबाज़ी मेँ
कैसा चाय नाश्ता मिला। उसकी दास्तां फिर कभी। लेकिन घर-घर व्रत की तैयारी का
सिलसिला शुरू हो चुका था। जो वीर पति कुली नहीं बन सकते थे,
उन्होने जल्दी घर से विदा ली। इधर उधर रेहड़ी पर विभिन्न प्रकार के लजीज आइटम से
अपना शानदार नाश्ता किया। डकार ली और चले गए काम पर। जिनकी बीवियों ने कुली गिरि
करवाई उनको नाश्ता तो क्या भोजन भी नहीं
मिला। क्योंकि महारानी तो सिंगार मेँ लग गई। सेवा चाकरी तो बीवी की करे। भोजन
दूसरा कोई क्यूँ करवाए। यह तो वही बात हो गई, करवा चौथ का
रखा व्रत, कई सौर रुपए कर दिये खर्च,
सिंगार मेँ उलझी रही, घर से भूखा चला गया मर्द। नए जमाने के
जोड़ों की दास्तां कुछ और अलग है। सिंगर गई। अब फोटो खींचो। फेसबुक पर डालो।
व्हाट्सएप पर कभी पति को तो कभी सास, ननद को भेजो। अगर ससुराल मेँ है तो सहेलियों और
पीहर वालों को भेजी। बताना और दिखाना तो पड़ता ही है कि कैसे मनाई करवा चौथ। इस
पूरी प्रक्रिया मेँ शाम हो जाती है। उसके बाद कोई काम नहीं। वैसे सुबह से काम किया
ही क्या था? खैर कोई काम नहीं तो इधर उधर खड़ी हो चर्चा का
दौर। रात आ गई। चाँद का इंतजार। कभी पति
छत पे तो कभी कोई घर का दूसरा सदस्य। क्योंकि खुद तो थकी हुई है। देरी चाँद कर रहा
है, लेकिन आँखों आँखों मेँ कसूरवार पति को ठहराया जाता है।
चाँद निकला तो छलनी नहीं मिली। उसे भी पति ही ढूँढे। पता नहीं इस व्रत को पति के
नाम क्यों किया हुआ है? पति तो आम दिनों की तुलना मेँ अधिक
पिसता है। क्योंकि बीवी तो सिवा व्रत के कुछ करती ही नहीं। कुछ कह दो तो वही
पुरानी बात सुनने को मिलती है, बात बनाना आसान है, रह कर दिखाओ पूरा दिन भूखे। एक तो आपके लिए व्रत करो, ऊपर से ताने सुनो। दो लाइन पढ़ो—
चाहे मैं कितना भी पूरा हूँ
तुम बिन मगर अधूरा हूँ ।
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