Monday, June 29, 2009
Friday, June 26, 2009
तेजाब से जली लड़की की मौत
Thursday, June 25, 2009
यस, कमेंट्स प्लीज़
कोई ये ना समझ ले कि हम गुलामी या आपातकाल के पक्षधर हैं। किंतु यह तो सोचना ही पड़ेगा कि बीमार को कौनसी दवा की जरुरत है। कौन सोचेगा? क्या लोकतंत्र इसी प्रकार से विकृत होता रहेगा? कोमन मैन को हमेशा हमेशा के लिए स्टुपिड ही रखा जाएगा ताकि वह कोई सवाल किसी से ना कर सके। सुनते हैं,पढ़तें हैं कि एक राज धर्म होता है जिसके लिए व्यक्तिगत धर्म की बलि दे दी जाती है। यहाँ तो बस एक ही धर्म है और वह है साम, दाम,दंड,भेद से सत्ता अपने परिवार में रखना। क्या ऐसा तो नहीं कि सालों साल बाद देश में आजादी के लिए एक और आन्दोलन हो।
Tuesday, June 23, 2009
नो कमेन्ट प्लीज़
Monday, June 22, 2009
परिवार के चार लोगों का गला काटा
कोई आदमी इतना भी निर्दयी हो सकता है! छोटी-छोटी मासूम सी बच्चियों का गला काटते हुए उसके हाथ तक नहीं काम्पे,उसका दिल इतना पत्थर था कि उसको बिल्कुल दया नहीं आई। ऐसा क्या अपराध कर दिया उन लड़कियों ने। आज सुबह सबसे पहले यही ख़बर मिली।
इस हत्या काण्ड से किसी की दिनचर्या में कोई असर नहीं पड़ा। सिवाय पुलिस,प्रेस जैसे काम से जुड़े लोगों के। इनके भी असर कहाँ पड़ता है,हाँ भागदौड थोडी अधिक हो जाती है।
Sunday, June 21, 2009
तूफान पर भी नहीं पड़ती नजर
पत्ता भी गिरता,तो,हो जाती थी ख़बर,
अब तो तूफान भी, पास से
निकल जाए, तब भी, पड़ती नहीं नजर।
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ना जाने किस किस की ख़बर
रहती थी, जेब में हमारे,
अब तो, ख़ुद के बारे में भी
ख़ुद को, कुछ पता नहीं होता।
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ये समय का फेर है कोई
या फ़िर, भाग्य का कोई खेल,
जो मिलते थे बाहें पसार कर
होता नहीं कभी, अब, उनसे कोई मेल।
Friday, June 19, 2009
पी,पी,पी और एक और पी

Thursday, June 18, 2009
आपातकालीन स्थिति के लिए
We all carry our mobile phones with names & numbers stored in its memory। But nobody, other than ourselves, knows which of these numbers belong to our closest family or friends। If we were to be involved in an accident or were taken ill, the people attending on us would have our mobile phone but wouldn't know who to call। Yes, there are hundreds of numbers stored ; but which one is the contact person in case of an emergency? Hence this "ICE" (In Case of Emergency) Campaign।
The concept of "ICE" is catching on quickly। It is a method of contact during emergency situations. As cell phones are carried by the majority of the population, all you need to do is store the number of a contact person or persons who should be contacted during emergency under the name "ICE" ( In Case Of Emergency).
The idea was thought up by a paramedic who found that when he went to the scenes of accidents, there were always mobile phones with patients, but they didn't know which number to call। He therefore thought that it would be a good idea if there was a nationally recognized name for this purpose. In an emergency situation, Emergency Service personnel and hospital Staff would be able to quickly contact the right person by simply dialing the number you have stored as "ICE." For more than one contact name, simply enter ICE 1, ICE 2 and ICE 3 etc. A great idea that will make a difference!Let's spread the concept of ICE by storing an ICE number in our mobile phones today!!! !
Please forward this. It won't take too many "forwards" before everybody will know about this. It really could save your life, or put a loved one's mind at rest .
यह पोस्ट मेरे एक शुभचिंतक ने भेजी है। उन्होंने इसे मेल किया ताकि इसको अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। उसी मकसद से पोस्ट यहाँ डाली गई है। इस उम्मीद के साथ कि है कोई इसे आगे और आगे भेजेगा।
Wednesday, June 17, 2009
एक टेंशन तो समाप्त हुई
हमारे मुहं में रोटी का निवाला होता है,आँख टीवी पर,एक हाथ रिमोट पर,दिमाग बाजार के किसी काम या दफ्तर में और कान वो सुन रहे होते हैं जो बीबी,मां या बच्चे कुछ बोल रहे हैं। फ़िर हम कहते हैं कि आजकल भोजन में स्वाद नहीं आता। स्वाद , स्वाद तो जब आएगा जब तुम भोजन करोगे। रिमोट हाथ में लेकर बार बार चैनल बदल रहें हैं। पता नहीं आपके अन्दर का आदमी कौनसा चैनल देखना चाहता है। जीरो से लेकर सौ तक देखा,फ़िर जीरो पर आ गए। उसके बाद वही एक,दो,तीन लगातार सौ तक। इसका कारण है कि हमारा दिमाग टीवी में नहीं कहीं ओर है।
कल एक जैन मुनि श्री प्रशांत कुमार से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने एक पुस्तक"सफलता का सूत्र" दी। इस किताब में एक जगह लिखा है-शिक्षित सा दिखने वाला एक युवक दौड़ता हुआ आया और टैक्सी ड्राईवर से बोला-"चलो,जरा जल्दी मुझे ले चलो। " हाथ का बैग उसने टैक्सी में रखा और बैठ गया। ड्राईवर ने टैक्सी स्टार्ट कर पूछा ,साहब कहाँ जाना है?युवक बोला,सवाल कहाँ -वहां का नहीं है,सवाल जल्दी पहुँचने का है। बस हम जल्दी पहुंचना चाहते हैं, लेकिन लक्ष्य तय नहीं किया।
Tuesday, June 16, 2009
श्रीगंगानगर को मिला नया कलेक्टर
Monday, June 15, 2009
पूर्व मंत्री को बिरादरी ने दुत्कारा
राधेश्याम गंगानगर अपने घर हुई इस हार को किस प्रकार लेंगें,फिलहाल कुछ कहना मुश्किल है। सम्भव है वे बीजेपी को अलविदा कहकर अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में लौट जायें। राधेश्याम कांग्रेस को अपनी मां कहा करते थे। हो सकता है किसी दिन वे प्रेस कांफ्रेंस में यह कहते नजर आयें, सपने में मेरी कांग्रेस मां आई, कहने लगी,बेटा अब लौट आ मेरे पास। इसलिए मैं कांग्रेस में आ गया,मतलब मां के पास लौट आया। वे ये भी कह सकते हैं, माता कुमाता नहीं होती,बेटा कपूत हो सकता है। देखो, आने वाले दिनों में श्रीगंगानगर की राजनीति में नया क्या होता है। क्योंकि कोई ये सोच भी नहीं सकता था की राधेश्याम गंगानगर को अपनी बिरादरी में ही मात खानी पड़ सकती है। बिरादरी के दम पर जिसने हमेशा राजनीति की हो,उसको बिरादरी दुत्कार दे तो कुछ ना कुछ सोचना तो पड़ता ही है। जब राधेश्याम गंगानगर कुछ सोचेंगें तो तब कुछ न कुछ तो नया होगा ही। आख़िर उन्हें यहाँ की राजनीति का राज कपूर ऐसे ही तो नहीं कहा जाता। राज कपूर फिल्मो के शो मेन थे तो राधेश्याम यहाँ की राजनीति के।
Saturday, June 13, 2009
आप नहीं होते तो.......
आप नहीं होते तो
हम,खूब अंगडाई
लेते हैं,इठलाते हैं,
आपके आते ही
छुई-मुई की भांति
अपने आप में
सिमट जाते हैं।
ये क्या है
ऐसा क्यों होता है
हम नहीं जानते,
हाँ,इतना तो है
आप के सिवा
हम किसी को
अपना नहीं मानते।
Friday, June 12, 2009
ज़िन्दगी और मौत के बीच
विडियो में जो बिस्तर पर दिख रहा है, वह है, सुशील कुमार। यह आजकल यहाँ, श्रीगंगानगर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में भर्ती है। गर्दन से नीचे का उसका शरीर काम नही करता। उसकी यह हालत कई साल पहले हुई। उसकी गर्दन में कोई तकलीफ थी। उसने देश के जाने माने हॉस्पिटल, आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस,नई दिल्ली, में अपना इलाज करवाया। लगातार दो दिन दो ओपरेशन किए गए। यह युवक इसी प्रकार बिस्तर पर पड़ा भगवान और डॉक्टर से मौत मांग रहा है। जिस मेडिकल कॉलेज में यह भर्ती है,वहां इससे कोई पैसा नहीं लिया जा रहा। कॉलेज के एमडी घनश्याम शर्राफ ने बताया कि मैनेजमेंट इसके इलाज और भोजन का खर्च तो वहां कर ही रही है,इसके साथ साथ इसके बच्चे को भी संस्थान में फ्री शिक्षा दी जायेगी। समाजसेवा भावी कई नागरिक लाचार सुशील की मदद को आगे आ रहें हैं। आज श्रीराम तलवार,लालचंद,प्रेम तंवर आदि ने हॉस्पिटल जाकर सुशील को आर्थिक सहायता दी। उन्होंने और भी सहायता करने का वादा किया। सुशील का परिवार आर्थिक रूप से बिल्कुल टूट चुका है। आज परिवार पैसे पैसे को मोहताज हो गया। उसको आर्थिक मदद की जरुरत है।
नारदमुनि ने सुशील कुमार की तमाम रिपोर्ट्स एक बड़े डॉक्टर से कंसल्ट की। डॉक्टर ने बताया कि सुशील को जो तकलीफ है,वह गंभीर है। ऐसे में रोगी के बचने के चांस एक-दो प्रतिशत ही होते हैं। एम्स की बजाय कहीं ओर इलाज करवाता तो लाखों रुपये लग जाते। उनका कहना था कि आदमी को फांसी लगाने के बाद जिस हड्डी के टूटने से मौत होती है,वही हड्डी सुशील की टूटी हुई थी। एम्स की रिपोर्ट्स के अनुसार वहां इसी बीमारी का ओपरेशन किया गया। एम्स की रिपोर्ट्स में इस बात का उल्लेख है कि रोगी के हाथ-पाँव पहले ही ठीक से काम नहीं कर रहे थे।
Wednesday, June 10, 2009
प्रेम-प्रसंग में मचा बवाल
मां-बाप का कसूर क्या है
बाप होने का यह मतलब है कि वह सब कुछ खोता ही चला जाए! एक पिता होने कि इतनी बड़ी सजा कि उसको वह दर छोड़ के जाना पड़े जहाँ उसने अपनी पत्नी के साथ अपना परिवार बनाया,घर को उम्मीदों,सपनों से सजाया संवारा। फ़िर बाप भी ऐसा जो किसी बच्चे पर बोझ नहीं। उसकी पेंशन है। वैसे भी वह अपनी पत्नी के साथ अलग ही तो रहता था। क्या विडम्बना है कि आदमी को अपने ही घर से यूँ रुसवा होना पड़ता है। क्या मां-बाप इसलिए पुत्र की कामना करते हैं?
केवल यह उनके घर का मामला है,यह सोचकर हम चुप नहीं रह सकते। क्योंकि यह हमारे समाज का मामला भी तो है। ठीक है हम कुछ कर नहीं सकते ,परन्तु चिंतन मनन तो कर सकते हैं,ताकि ऐसा हमारे घर में ना हो।सम्भव है कसूर मां-बाप का भी हो। हो सकता है उन्होंने संतान को सब कुछ दिया मगर संस्कार देना भूल गए हों।
Tuesday, June 9, 2009
इम्पोर्टेंट ऑफिस रुल
रुल-२-- इफ बॉस इज रोंग, प्लीज सी रुल नंबर फर्स्ट।
ऐसे में कोई क्या कर लेगा। है कि नहीं।
Monday, June 8, 2009
कलेक्टर था तो क्या......
टिप्पणी--- जिला कलेक्टर था तो क्या खास बात थी !
श्रीगंगानगर के जिला कलेक्टर राजीव सिंह ठाकुर एक केन्द्रीय मंत्री के निजी सचिव बन गए। राजस्थान सरकार ने अभी तक नया कलेक्टर नही लगाया है। इस बात को सात दिन हो गए।
Sunday, June 7, 2009
कोई जवाब है क्या
एक बार बरसात में भीगा हुआ मैं घर पहुँचा।
भाई बोला, छाता नहीं ले जा सकता था।
बहिन ने कहा, मुर्ख बरसात के रुकने तक इन्तजार कर लेता।
पापा चिल्लाये, बीमार पड़ गया तो भागना डॉक्टर के पास। सुनता ही नहीं।
मां अपने आँचल से मेरे बाल सुखाते हुए कहने लगी, बेवकूफ बरसात, मेरे बेटे के घर आने तक रुक नहीं सकती थी।
क्यों है कोई जवाब। यह सब मेरे एक शुभचिंतक ने मुझे मेल किया है। उनका दिल से धन्यवाद।
Friday, June 5, 2009
रास्ते का पत्थर, जस्ट फॉर चेंज
अगर तुम समझती हो
मैं रास्ते का पत्थर हूँ,
तो मार दो ठोकर मुझे
पत्थर की ही तरह,
ध्यान रखना तुम्हारे पैर में
कोई चोट ना लग जाए,
कहीं तुम्हारे दिल से
कोई आह ना निकल जाए,
निकली अगर आह तो
इस पत्थर को दुःख होगा,
हट गया रास्ते से तो
दोनों को ही सुख होगा,
फ़िर मैं सड़क के
किनारे पर पड़ा रहूँगा,
इस राह जाने वाले को
कुछ भी नहीं कहूँगा,
बस, मेरा इतना काम
तुम आते जाते जरुर करना,
उसके बाद मेरा फर्ज होगा
दुआ से तुम्हारा दामन भरना।
Thursday, June 4, 2009
राजशाही आने को है हिंदुस्तान में
बचपन में [मेरे बचपन में] मेरे दादा नगरपालिका के मेंबर रहे थे। अगर वे आगे बढ़ते और मैं या परिवार का कोई सदस्य उनका हाथ पकड़ कर आगे बढ़ता तो शायद हम भी इसका हिस्सा बन जाते। ऐसा हो ना सका। ऐसा होता तो यह सब लिखने के कहाँ से आता। तब तो कोई लिखता भी तो बुरा लगता।
खैर! प्रश्न वही कि कितने सांसद परिवार वाद को आगे बढ़ा रहें हैं? अगर किसी को पता हो तो जरुर बताये। जिससे हमारी जानकारी में बढोतरी हो सके।
Tuesday, June 2, 2009
सौ सौ रूपये बस, इतनी मंदी है क्या
चैनल वाले न्यूज़ एंकर ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि पत्रकार क्यों भड़के? केवल और केवल सौ रूपये देख कर या रूपये देख कर। वैसे जब चुनाव में खुल्लम खुल्ला रूपये लेकर खबरें छापी और छपवाई गई तो उसके बाद यही तो होना था। सब नेता जानते हैं कि ख़बर तो मालिक ने छापनी है। प्रेस कांफ्रेंस में आने वाले तो बस कर्मचारी हैं। इसलिए जो उनके दे दिया वह उनपर अलग से मेहरबानी ही तो है। इसमे इतना लफड़ा करने की क्या बात है। जिसने लेना है ले जिसने नही लेना ना ले।
कोई शिकायत नहीं तो राम राज्य ही है
कुल्हे से नीचे गिरने को तैयार घीसी हुई जींस,पैरों में हवाई चप्पल या पट्टी वाले स्लीपर। बाल बिखरे हुए। ये वो लडकें हैं जो पैदल या बाइक पर आपको ऐसे स्थानों पर आते जाते दिखाई देंगे जहाँ लड़कियों का अधिक आना जाना होता है। ये लड़के लड़कियों का पीछा करतें हैं,उनको पीछे घूम कर देखते हैं,उन पर कमेंट्स करतें हैं,और किस्म किस्म की आवाज अपनी बाइक ने निकालते हैं। लड़कियों के निकट जाकर मुस्कुरातें हैं। लड़कियों के पास इनकी यह बदतमीजी सहने के अलावा कोई चारा नहीं होता। यह रोज होता है। अभिभावक कहाँ तक उनकी रक्षा करें? सम्भव है कुछ लड़के लड़कियों का आपस में दोस्ती का रिश्ता हो, लेकिन लड़कों की आवारा आंखों का सामना सभी लड़कियों को करना पड़ता है।
कुछ बनने की चाह में लड़कियां किसी ने किसी कोचिंग सेंटर में कुछ पढ़ने जातीं हैं। कोई भी कोचिंग सेंटर ऐसा नहीं होगा जो लड़के लड़कियों को अलग अलग कोचिंग देता हो। लड़कियों को अलग कोचिंग हो तो लड़के नहीं आते। यह कोचिंग सेंटर चलाने वालों की मज़बूरी है। उनके तो बस धन चाहिए। पुलिस ने काफी हाय तौबा के बाद एक अभियान चलाकर कुछ आवारा लड़कों को पकड़ा। उनके माता पिता को थाने बुलाया और उनकी आवारा सम्पति उनको सौंप दी गई। पुलिस चाहती तो ऐसे लड़कों की फोटो अख़बारों में छपवा कर बता सकती थी,सावधान ये हैं आवारा लड़के! मगर पुलिस तो शरीफ है। वह ऐसा क्यों करने लगी। पुलिस अफसरों के परिवारों की लड़कियां तो गाड़ी में आती जाती हैं इसलिए उनकी बला से किसी और की लड़की के साथ कुछ भी हो उनको क्या! लड़कियों के परिजन मान,अपमान के डर,पुलिस के सौ प्रकार के सवाल जवाब,उनके झंझट के भय से कोई शिकायत नहीं करते। जब कोई शिकायत ही नहीं है तो शहर में राम राज्य है। नारायण नारायण।