
अपनी अदाओं को
कितना
करवाएगी कैश,
राजनीति में ऐश
गोविन्द गोयल, श्रीगंगानगर
"सुनहू भरत भावी प्रबल बिलख कहें मुनिराज,लाभ -हानि,जीवन -मरण ,यश -अपयश विधि हाथ" रामचरितमानस की ये पंक्तियाँ श्री एस एस महेश्वरी को समर्पित, जिनको पदमश्री सम्मान देने की घोषणा की गई है।यह मेरे लिए गर्व,सम्मान,गौरव... की बात है। क्योंकिं श्री महेश्वरी मेरे शहर के हैं। लेकिन दूसरी तरफ़ इस बात का अफ़सोस भी है कि क्या पदमश्री की गरिमा इतनी गिर गई की यह किसी को भी दिया जा सकता है। श्री महेश्वरी जी को यह सम्मान सामाजिक कार्यों के लिए दिया जाएगा। उनके सामाजिक कार्य क्या हैं ये सम्मान की घोषणा करने वाले नहीं जानते। अगर जानते तो श्री महेश्वरी को यह सम्मान देने की घोषणा हो ही नहीं सकती थी।
उन्होंने कुछ समाजसेवा भावी व्यक्तियों के साथ १९८८ में एक संस्था "विद्यार्थी शिक्षा सहयोग समिति"का गठन किया। समिति ने आर्थिक रूप से कमजोर उन बच्चों को शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता दी जो बहुत होशियार थे। यह सहायता जन सहयोग से जुटाई गई।इसमे श्री महेश्वरी जी का व्यक्तिगत योगदान कितना था? वैसे श्री महेश्वरी जी एक कॉलेज में लेक्चरार है और घर में पैसे लेकर कोचिंग देते हैं। श्रीगंगानगर में ऐसे कितने ही आदमी हैं जिन्होंने समाज में महेश्वरी जी से अधिक काम किया है। स्वामी ब्रह्मदेव जी को तो इस हिसाब से भारत रत्न मिलना तय ही है। उन्होंने ३० साल पहले श्रीगंगानगर में नेत्रहीन,गूंगे-बहरे बच्चों के लिए काम करना शुरू किया। आज तक उनके संरक्षण में कई सौ लड़के लड़कियां अपने पैरों पर खड़े होकर अपना घर बसा चुके हैं। जिनसे समाज तो क्या उनके घर वालों तक को कोई उम्मीद नहीं थी आज वे सब की आँख की तारे हैं। सम्मान की घोषणा करने वाले यहाँ आकर देखते तो उनकी आँखें खुली की खुली रह जाती। आज स्वामी जी के संरक्षण में नेत्रहीन,गूंगे-बहरे बच्चों की शिक्षा के लिए क्या किया जा रहा है वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। पता नहीं ऐसे लोग क्यूँ सम्मान देने वालों को नजर नहीं आते। आज नगर के अधिकांश लोगों को श्री महेश्वरी के चयन पर अचम्भा हो रहा है। अगर श्री महेश्वरी को इस सम्मान का हक़दार मन जा रहा है तो फ़िर ऐसे व्यक्तियों की तो कोई कमी नही है।
यहाँ बात श्री महेश्वरी जी के विरोध की नहीं पदमश्री की गरिमा की है। सम्मान उसकी गरिमा के अनुकूल तो होना ही चाहिए ताकि दोनों की प्रतिष्ठा में और बढोतरी हो, लेकिन यहाँ गड़बड़ हो गई। सम्मान की प्रतिष्ठा कम हो गई, जिसको दिया जाने वाला है उसकी बढ़ गई। मैं जानता हूँ कि जो कुछ यहाँ लिखा जा रहा है वह अधिकांश के मन की बात है किंतु सामने कोई नहीं आना चाहता। मेरी तो चाहना है कि अधिक से अधिक इस बात का विरोध हो और सरकार इस बात की जाँच कराये कि यह सब कैसे हुआ। मेरी बात ग़लत हो तो मैं सजा के लिए तैयार हूँ। यह बात उन लोगों तक पहुंचे जो यह तय करतें हैं कि पदमश्री किसको मिलेगा।
मेरे दिल में शहीद भगत सिंह की आत्मा ने प्रवेश कर लिया है। वह जय हिंद का नारा बुलंद कर रही है। जी करता है पाक में जाकर उसकी मुंडी मरोड़ कर किस्सा ख़तम कर दूँ। कमशब्दों में कहूँ तो मेरे अन्दर फिल्मी स्टाइल वाला देशप्रेम का जज्बा पैदा हो गया है। ना, ना, ना , ग़लत मत सोचो, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मुझे कोई दौरा नहीं पड़ा और ना ही मैंने कोई देशप्रेम से ओत प्रोत फ़िल्म देखी है। यह भाव तो आजकल अख़बार पढ़ कर आ गए। जिनमे इन दिनों इस प्रकार के लेख छप रहे हैं कि मेरे जैसे एक पाव वजन वाले इन्सान केमुहं से इन्कलाब जिंदाबाद के नारे बुलंद हो रहे हैं। चिंता की कोई बात नहीं,ये भाव स्थाई नहीं है। ये तो कल तक हवा हो जायेंगें। अगर दो चार दिन देशप्रेम के लेख से ऐसे भाव स्थाई रहते तो देश की ऐसी हालत तो नहीं होती। पहले गोरे थे, अब काले हैं,जन जन के हाल तो वही पुराने वाले हैं। देश में पहले चार मौसम हुआ करते थे,फिल्मो ने पांचवा मौसम प्यार का कर दिया और अब छठा मौसम देशप्रेम का हो जाता है २६ जनवरी और १५ अगस्त के आस पास। इस बीच पाकिस्तान हिम्मत कर दे तो ऐसा मौसम तब भी बन जाता है। इसको मजाक मत समझो यह गंभीर बात है। किसी में एक घटना से देश प्रेम पैदा हो जाए ऐसे बच्चे पैदा करने वाली कोख है क्या? देश प्रेम को मजाक के साथ साथ बाज़ार बना दिया गया है। बच्चों में देश के प्रति प्रेम,समर्पण तभी आएगा जब हम उनको हर रोज इस बारे में बतायेंगें। किसी ने कहा भी है--करत करत अभ्यास तो जड़ मति होत सूजान,रस्सी आवत जात तो सिल पर पड़त निशान। स्कूलों में इस प्रकार की व्यवस्था हो कि बच्चा बच्चा अपने देश और उसके प्रति उसके क्या कर्तव्य हैं,उसके बारे में जाने। उसके टीचर,सरकारी कर्मचारी,नेता,मंत्री और समारोहों में बोलने वाले खास लोग ऐसा आचरण करें जिस से बच्चा बच्चा उनसे प्रेरणा ले सके। आज हम केवल दो चार दिन में लेख लिख कर,देशप्रेम वाले फिल्मी गाने सुनकर,सुनाकर ये सोच लें कि हमारे देश में देशप्रेम का समुद्र बह रहा है तो ये हमारी गलतफहमी है। भला हो पाकिस्तान का जो इसको तोड़ता रहता है। थोड़ा लिखा घणा समझना।
देश के पूर्व वाइस प्रेजिडेंट भैरों सिंह शेखावत ने आज श्रीगंगानगर में प्रेस से बात करते हुए करप्शन,करप्शन हाय करप्शन की रट लगाये रखी। उन्होंने कहा--करप्शन से गरीबी,बेकारी ओर अराजकता बढेगी। करप्शन सबसे सबसे बड़ा विषय है हिन्दुस्तान में। पत्रकारों करप्शन करने वालों को बख्शो मत,जनता आन्दोलन करे, जेल जाए, गिरफ्तारी दे। राजस्थान की सरकार केस दर्ज करे। पाँच साल में करप्शन के रिकॉर्ड टूटे। [ वसुंधरा राजे के राज में] परन्तु राजवी [ श्री शेखावत के दामाद और वसुंधरा सरकार में मंत्री] पर आरोप नहीं है। वे ऐसे हैं भी नही। मेरे राज में करप्शन नहीं था। मुझ पर भी कोई आरोप नहीं है। राजनीति में आने से पहले पुलिस में था और खेती करता था। राजनीति की बात की लेकिन अधिक नहीं। बाद में "नारदमुनि" ने उनके दामाद नरपत सिंह राजवी से बात की। श्री राजवी ने उनकी बात का समर्थन किया। श्री शेखावत, श्री राजवी श्रीगंगानगर के निकट एक गाँव में पूर्व मंत्री गुरजंट सिंह बराड़ के यहाँ एक समारोह में शामिल होने के लिए आए थे। लोगो ने उनको खूब मालाएं पहनाई।
श्रीगंगानगर में अवकाश के दिन किसी अधिकारी ने सोचा भी नहीं होगा कि ठण्ड में उनको एक नई परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। प्रशासन तो सच्चा सौदा के मुखी संत गुरमीत राम रहीम सिंह को जिले से सकुशल वापिस भेज चैन की बंसी बजा रहा था। अचानक दिन में डेरा प्रेमियों ने जिला कलेक्टर राजीव सिंह ठाकुर के निवास के सामने डेरा जमा लिया। डेरा मुखी १५ जनवरी को अपने गाँव आए थे। कल रात को उनको वापिस भेज दिया गया। डेरा के प्रवक्ता ने कहा कि उनको पाँच मिनट में ना जाने पर पर्चा दर्ज कर लेने की धमकी दी गई। जबकि पहले उनको रहने की अनुमति देने का भरोसा दिलाया गया था। जिला कलेक्टर ने इस बात से इंकार किया है। बाद में डेरा प्रेमी सी एम के नाम एक ज्ञापन देकर लौट गए। श्रीगंगानगर में १५ मई २००७ को डेरा प्रेमियों और सिख समाज के लोगों के बीच हिंसक टकराव हो गया था। उसके बाद से प्रशासन से डेरा प्रेमियों और उनके गुरु पर अंकुश लगा रखा है। सिख समाज के कुछ लोग प्रशासन को आँख दिखाकर यह सब करने को मजबूर करते रहते है। हाल ये है कि डेरा प्रेमियों को अपने घरों में भी सत्संग करने के लिए सौ बार सोचना पड़ता है। प्रशासन बेवजह चन्द सिख व्यक्तियों को सिख समाज का लीडर मान रहा है। जबकि सालों से डेरा मुखी का सत्संग श्रीगंगानगर जिले में होता आ रहा है। आज पहली बार डेरा प्रेमियों ने प्रशासन पर अपना उसी तरीके से बवाब बनाया है जैसे दूसरा पक्ष करता है।