कहानी---
सफ़ेद कपड़ों मेँ लिपटा झूठ
-अब माधुरी बहिन जी आपसे कुछ कहेंगीं । माधुरी बहिन ने माइक संभाला। बोलना शुरू किया। धर्म, अध्यात्म से होकर वे पारिवारिक जिम्मेदारियों पर खूब अच्छा
बोलीं। उनका सम्बोधन सभी को भा रहा था। फिर गीता
का ज्ञान। मानस पर मीमांसा। कुछ मिनट बोल के माधुरी बहिन ने अपने गुरु की तरफ
देखा। गुरु जी ने नजरों के माध्यम से उसे सराहा। माधुरी बहिन अपने
स्थान पर जा विराजीं। अब राजेश्वरी बहिन...एंकर ने कहा। राजेश्वरी अपने स्थान से हिचकती हुई उठीं। बड़ी सधी हुई मधुर वाणी मेँ जन्म से मृत्यु तक की बात की। जगत को मिथ्या
बताया। वासनाओं को छोड़ने का आग्रह किया। हर बात पर पॉज़िटिव रूख अपनाने की सलाह दी।
मीठा बोलने को प्रेरित किया। संयम का महत्व बताया। तप, साधना, पूजा, आराधना की विवेचना की। सत्संग की सार्थकता को समझाया। सब
सुन रहे थे बड़ी तन्मयता से। एक एक शब्द जैसे सभी के अंदर तक प्रवेश कर रहा था।
अपनी वाणी को विराम दे राजेश्वरी बहिन ने गुरु के सामने सिर झुकाया। गुरु ने
आशीर्वाद दिया और स्नेह से उसकी ओर देखा। एंकर ने राजेश्वरी के बारे मेँ बताया कि उन्हें
धर्म अध्यात्म मेँ रुचि कैसे हुई। अब तक कितना कितना ज्ञान वे पा चुकीं है। गुरु की विशेष कृपा हैं इन पर। गृहस्थी होने के बावजूद वैरागन जैसा जीवन है
राजेश्वरी बहिन जी का। ये दृश्य एक भवन मेँ हो रहे धार्मिक, आध्यात्मिक आयोजन का है। आयोजन मेँ बड़ी संख्या मेँ महिलाएं मौजूद थीं। सभी महिलाएं सफ़ेद वस्त्रों मेँ। उन सफ़ेद वस्त्रों मेँ
से कितनी ही महिलाओं के अंतरंग वस्त्र/अधो वस्त्रों की हल्की झलक वहां बैठे पुरुषों की नजर को
आनंदित कर रहे थी। उनकी पता नहीं
कौन कौन सी कुंठा शांत भी कर रही थी। अनेक महिलाओं ने सभा मेँ आने के बाद से
हुए परिवर्तन के संबंध मेँ अपने अनुभव साझा करते हुए गुरु के प्रति आभार जताया। अचानक! बंद करो ये पाखंड! झूठ का राज है यहां! दिखावा है! परिवारों को बर्बाद
किया जा रहा है! सब उस तरफ देखने
लगे जिधर से आवाज आई थी। सभी ने देखा, एक व्यक्ति को बीच सभा मेँ खड़े हुए। सांस चढ़ी हुई। चेहरा
तमतमाया हुआ। लगभग सभी के लिए अंजान था वह व्यक्ति। एकदम से किसी की हिम्मत नहीं हुई उसके पास जाने की। वह
बोलने लगा, कौनसा धर्म ? कौनसा अध्यात्म? कैसा आचरण और किस
प्रकार का गृहस्थ आश्रम? मैं समझाता हूँ।
व्यक्ति ने बोलना शुरू किया तो सब जड़ हो गए। वह कहने लगा, यहाँ अधिकतर वो महिलाएं हैं जिन्होने अपने व्यवहार, धर्म, अध्यात्म के पीछे छिपे पाखंड से अपनी अपनी गृहस्थी का बेड़ा
गरक करने मेँ कोई कसर नहीं छोड़ी है। या तो इनका गुरु ना समझ है या फिर
ये गुरु की शिक्षा को ग्रहण करने मेँ सक्षम नहीं। धर्म और अध्यात्म के अर्थ को ये सब ना तो जान पायीं और समझ सकीं। वो! वो जो साइड मेँ है, उसने अपने पति को घास तक नहीं डाली। बरसों तक साधना के नाम
पर पति को दूसरे कमरे मेँ सुलाती रही। ना मन का सुख दिया ना तन का। आखिर काला पड़ गया उसका शरीर। मगर पत्नी को अध्यात्म
से प्रेम हो चुका था। पति ने यूं तड़प तड़प के जान दे दी। और वो! वो जो उसका हाथ थामे गुरु
के निकट बैठी है, उसने कभी अपने घर
की परवाह नहीं की। पति को इतना ही महत्व दिया कि वह सुहागन समझी जाए। ऐसा नहीं है
कि उसके अंदर की तमाम कामनाओं का अंत हो गया हो। शमन करना उसे आया नहीं इसलिए दमन करने लगी अपनी कामनाओं का । चूंकि धर्म और अध्यात्म
की ज्ञाता हो गई, इसलिए किसी को कुछ कह भी नहीं पाती। पति से कहे तो धर्म, अध्यात्म, संयम, वैरागी, त्यागी और साधना का जो लेवल लगा है, वह झूठा पड़ने का भय। पति नहीं चाहता
फिर भी वह यहां आती है। आखिर पति ने उसे कहना बंद कर दिया। जो मर्जी करे। जहां
मर्जी जाए। बोलने वाले व्यक्ति ने एक क्षण सांस लिया, फिर बोला, वो जो सिर पर
पल्लू किए बैठी है उसका पति सड़क पर मरा मिला। क्योंकि
मैडम को धर्म, अध्यात्म से
फुरसत नहीं थी। गुरु की वंदना अधिक जरूरी थी, पति से। पति क्या
करता। बेक़द्र हो घूमता रहता, इधर उधर। एक दिन
कुर्बान हो गया अपनी पत्नी के धर्म और अध्यात्म पर। बात करते हो धर्म की! अध्यात्म
की! प्रेम की! संयम और अच्छे आचरण की! किसको बता रहो हो? किसको समझा रहे
हो? पहले खुद तो अपने अंदर उतारो इन सब बातों को। वह बोले जा रहा था। जैसे आज खाली कर देना चाहता हो
अपने आप को। अंजाम की परवाह किए बिना। उसने फिर जहर उगला….धर्म, अध्यात्म की सभा
मेँ सच कहना जहर उगलना ही होता
है, वो पतली दुबली सी, पूछो उससे, उसने अपने पति को क्यों छोड़ रखा है? क्या कसूर है उसके पति का? कौनसा धर्म
निभाया है उसने पत्नी होने का। पति को पता भी नहीं
होगा कि उसका कसूर क्या है। आपसे कह रहा हूँ, उस व्यक्ति ने
दूसरी महिला की तरफ इशारा करते हुए कहा, तुमने अपने पति
को कभी पति समझा है क्या? सच्ची बताना!
सिवाए नौकर के उसे कुछ जाना ही नहीं। और वो जो मोटा सा व्यक्ति! वही, बड़े बड़े नितंब वाला! तू, बता तो, पुरुष होकर भी कितने पुरुषों के साथ सोया है! …..तुझे, यहां धर्म की चर्चा करते लाज नहीं आई। देखा है
कभी तेरे घर कौन कौन आता था। तू यहां आता है महिलाओं के सफ़ेद कपड़ों से झाँकते, उनके अधो वस्त्रों को देखने। ताकि तेरी कुंठा शांत होती रहे। और तेरा गुरु, पूछ उससे ......जो त्याग, संयम की बात करता है, वह सब कुछ बटोर लेता है आप सब से। आप से ले लेकर
उसने अपना घर भर लिया....और...और बस इससे अधिक व्यक्ति कुछ नहीं बोल सका। कई
व्यक्ति खड़े हो गए। उससे हाथा-पाई और फिर मार पीट। इसमेँ वे भी शामिल हुईं, जिनके बारे मेँ बोला गया था। कुछ ही देर मेँ सच बोलने वाला व्यक्ति सड़क पर लहूलुहान पड़ा हुआ
था। खून से लथपथ सच सड़क पर कराह रहा था। कोई उसे उठाने वाला नहीं था। उधर अंदर
धर्म सभा मेँ सफ़ेद कपड़ों मेँ लिपटा झूठ धर्म और अध्यात्म की बात कर रहा था। झूठ कह रहा था, हमें सच का दामन नहीं छोड़ना, चाहे कुछ भी करना पड़े। धर्म और अध्यात्म के खिलाफ समय समय
पर ऐसे नास्तिक आते रहे हैं। उनको सबक सिखा धर्म की रक्षा करनी है, ऐसे नास्तिक और
पाखंडियों से । और वो महिलाओं की तरह मटक
मटक के चलने वाला खास अंदाज से महिलाओं की सेवा कर रहा था। गुरु ने कहा, ऐसी बाधा आती ही है इस मार्ग पर। धर्म का पथ है ही मुश्किलों से भरा हुआ। उधर
बाहर सड़क पर सच कुछ देर तक कराहता रहा और फिर धीरे धीरे सरकता सरकता आँखों से ओझल
हो गया। ना तो किसी ने उसका हाथ पकड़ा और ना कोई उसके साथ चला। सफ़ेद कपड़ों मेँ
लिपटे झूठ की आवाज और बुलंद हो गई।
--गोविंद गोयल, 237-मुखर्जी नगर,
श्रीगंगानगर।